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स्वास्थ्य मितानों की गुहार, मंत्री ने कहा- समायोजन पर विचार होगा

UNITED NEWS OF ASIA. रायपुर। छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य मितानों की नौकरी पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। आयुष्मान भारत योजना के तहत सेवाएं दे रहे इन कर्मचारियों को बीते तीन महीनों से वेतन नहीं मिला है, वहीं कंपनी का टेंडर खत्म हो जाने के बाद अब भविष्य को लेकर अनिश्चितता भी गहराती जा रही है। इस स्थिति से व्यथित सैकड़ों स्वास्थ्य मितान बुधवार को स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल से मिलने उनके निवास पहुंचे।

मंत्री को सौंपा ज्ञापन, जताई बेरोजगारी की चिंता

कर्मचारियों ने मंत्री को सौंपे ज्ञापन में कहा कि वे राज्य में 750 से अधिक स्वास्थ्य मितान हैं, जो पिछले 10 से 12 वर्षों से थर्ड पार्टी एजेंसी के माध्यम से लगातार सेवा दे रहे थे। इनका कहना है कि FHPL कंपनी का टेंडर 30 अप्रैल 2025 को समाप्त हो गया, और उसे बिना किसी विकल्प या विस्तार के रद्द कर दिया गया है, जिससे वे एक झटके में बेरोजगार हो गए हैं।

इन स्वास्थ्य मितानों की जिम्मेदारियों में आयुष्मान कार्ड, वय वंदना कार्ड, ABHA कार्ड बनाना, क्लेम प्रोसेसिंग, वेरिफिकेशन, ऑडिट व अपलोडिंग, और विभिन्न स्वास्थ्य शिविरों के माध्यम से ग्रामीण-शहरी क्षेत्रों में मरीजों को योजना का लाभ दिलाना शामिल था।

स्वास्थ्य मंत्री ने दिया भरोसा, अनुभव वालों को मिलेगी प्राथमिकता

स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने कर्मचारियों की बात ध्यानपूर्वक सुनी और उन्हें भरोसा दिलाया कि उनके अनुभव को ध्यान में रखते हुए सरकार नियमानुसार निर्णय लेगी। उन्होंने कहा,

“इन सभी स्वास्थ्य मितानों के पास वर्षों का व्यावहारिक अनुभव है। विभागीय समीक्षा और ऑडिट के बाद इन्हें समायोजित करने की दिशा में कार्य किया जाएगा। यदि कोई नई एजेंसी नियुक्त होती है, तब भी इन लोगों को प्राथमिकता दी जाएगी।”

मंत्री ने यह भी माना कि इन कर्मचारियों को समय-समय पर वेतन संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ा है। उन्होंने स्पष्ट किया कि भुगतान एजेंसी के माध्यम से किया जा रहा है और यदि भविष्य में किसी नई व्यवस्था की आवश्यकता पड़ी, तो सरकार कलेक्टर दर या केंद्र सरकार की गाइडलाइंस के अनुसार समायोजन पर विचार करेगी।

संकट में सेवा भाव से जुड़ी संविदा व्यवस्था

स्वास्थ्य मितानों की यह स्थिति न केवल सरकारी योजनाओं की आधारभूत कार्यशैली पर सवाल खड़े करती है, बल्कि इससे जुड़े हजारों परिवारों की आर्थिक अस्थिरता और नौकरी की असुरक्षा को भी उजागर करती है। अब देखना होगा कि राज्य सरकार अपने वादों को किस तेजी और संवेदनशीलता से ज़मीन पर उतारती है।

 


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