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रोशनी खत्म हो गई…पंडित नेहरू की मौत वाले दिन क्या हुआ था, चीन के ‘धोखे’ ने क्या जान लिया था?

देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का 27 मई 1964 को हार्ट अटैक से निधन हो गया। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की मौत की वजह क्या थी। ये विषय आज भी चर्चित रहता है।

27 मई 1964 को 16 अक्टूबर का एक खास सत्र बुलाया गया। इसका मकसद सिर्फ मेरा था जिस पर खुद देश के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू बोलने वाले थे। लेकिन थोड़े ही देर में नेहरू सरकार के इस्पात मंत्री चिंदबरम सुब्रमण्यम राज्यसभा में पैर रखते हैं। उठे चेहरे और उहांसी आंखों के साथ उन्होंने बस एक लाइन के-कहीं रौशनी खत्म कर दी। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का 27 मई 1964 को हार्ट अटैक से निधन हो गया। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की मौत की वजह क्या थी। ये विषय आज भी चर्चित रहता है। नेहरू की मौत को लेकर एक दो नहीं बल्कि कई सवाल हैं, कई पहलू हैं, जिन्हें समझने की कोशिश कर रहे हैं।

चीन से मिली हार ने नेहरू को तोड़कर रख दिया

प्रधानमंत्री के पद पर रहने वाले वर्ष 1962 के बाद लगातार पंडित नेहरू की सेहत गिर रही थी। उस साल चीन ने भारत पर हमला किया था और नेहरू इसे विश्वास मानते थे। कहा तो ये भी जाता है कि चीन के हाथों जबरदस्त हार ने उन्हें काफी हद तक तोड़ दिया था। 1963 के वर्षों में नेहरू ने कश्मीर में कब्जा कर लिया था। उसके बाद वो चला गया। साल 1964 में वो बैठने से दिल्ली लौटे थे। जो बाद में प्रकट होता है वो रात जिन दिन भारतीय राजनीति का ये बड़ा चेहरा हमेशा के लिए हमसे जुदा हो जाता है।

आंख से टकराएं और फिर…

पंडित जवाहरलाल नेहरू अपनी मौत से ठीक एक दिन पहले 1964 को छत से वापस अपने सरकारी आवास दिल्ली लौट गए। उस दिन की रात को नेहरू जी की तबीयत बिल्कुल सामान्य थी। लेकिन अगले ही दिन 27 मई की सुबह करीब 6:30 बजे नेहरू को हार्ट अटैक आया। उनकी बेटी इंस्पिरेशन गांधी ने तुरंत ही तीन डॉक्टरों से बात की और उन्होंने इलाज की कोशिश भी की। लेकिन पंडित नेहरू को बचा नहीं जा सका। लेकिन ये कोई पहला दफा नहीं था कि जब नेहरू को हार्ट अटैक आया हो। इससे पहले 1964 की जनवरी में ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर के दौरे के बाद उन्हें हार्ट अटैक आया था। जिसके बाद उनका पूरा रूट ही बदल दिया गया था।

चीन से मिली हार से सदमे में थे नेहरू

”एक मुल्क लाई हिंदुस्तान दोस्ती उसने कि चीनी हुकूमत से वहां के लोगों से चीनी सरकार ने इस झूठ का जवाब बुराई से दिया। जिसके लिए वह खुद एक लेखक भी थे, चरित्र भी और अंत में शिकार भी। साथ ही छला गया था पूरा भारत। चीन से 1962 के युद्ध में भारतीय सेना की करारी हार हुई और युद्ध चीन की ओर से जारी किए गए युद्ध विराम करने से समाप्त हो गया। सुरक्षा मंत्री वीके कृष्णमेनन को इस्तीफा देना पड़ा था। नेहरू को ही इस हार के लिए जिम्मेदार ठहरा रहा था। राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने भी इस हार के लिए पंडित नेहरू को जिम्मेदार ठहराया था। कहा जाता है कि ये नेहरू के लिए जॉकं सरखा था। वो चीन के खिलाफ सोवियत संघ से सहयोग नहीं मिला और भारत का साथ दे रहे हैं अमेरिका का भी अटक सहयोग नहीं मिला से निराश थे।

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Saurabh Namdev

| PR Creative & Writer | Ex. Technical Consultant Govt of CG | Influencer | Web developer
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