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प्यार और जंग का जहानाबाद का आखिरी एपिसोड काफी दिलचस्प है Read Review – Web Series Review: ‘जहानाबाद

वेब सीरीज ‘जहानाबाद- ऑफ लव एंड वॉर’ रिव्यू: लेखक निर्देशक राजीव बरनवाल के लिए फरवरी 2023 का पहला हफ्ता ही बड़ा शुभ रहा। उनकी फिल्म वध नेटफ्लिक्स पर लिखी गई और साथ ही लिखी गई और सह-निर्देशित वेब सीरीज ‘जहानाबाद- ऑफ लव एंड वॉर’ ने भी सोनी लिव के जरिए ओटीटी पर शुरू की। राजीव खुद बड़े ही कमाल के लेखक हैं और बड़े ही खराब स्टोरी शूट हैं, इसलिए उनकी फिल्म वध और उनकी वेब सीरीज ‘जहानाबाद’ में एक भी सीन ऐसा नजर नहीं आता जिसे हटाया जा सकता है या फिर ऐसा नहीं लगता कि मेरा मतलब और ट्रैक होते हैं तो शायद वेब सीरीज़ का मज़ा और बढ़ जाता है। एक सही डिश बनाने के लिए हर इंग्रेडिएंट को सही मात्रा में सही समय पर डाला जाता है। जहानाबाद एक ऐसी ही सीरीज है। थोड़ी गति कम है लेकिन क्लाइमेक्स स्मोकाधार है।

जहानाबाद नाम सुनकर और शुरुआती कुछ दृश्य देख कर लगता है कि बिहार की कहानी एक बार और देखने की सलाह और दूल्हा पकड़ का काम फिर से जितना मिलेगा यानी ये सीरीज में ज्यादा मजा नहीं आएगा। फिर एक दो एपिसोड के बाद कुछ और एक्ट्स की एंट्री होती है, तो पक्का हो जाता है कि पक्की गैंगवॉर या फिर पुलिस द्वारा गुंडों के खात्मे की कहानी होगी। जो बात उम्मीद से परे दावा करता है वो है “लाल सलाम” दावेदारों की एंट्री। जैसे कि एक वास्तविक कहानी सामने आती है और फिर आता है एक जबरदस्त क्लाइमेक्स वाला एपिसोड, जो पहले ही मिनट से आपको कुछ इस तरह की चोरी में ले जाता है कि बार बार रिवाइंड करने के लिए एक सीन जिम्मेदार होता है। वेब सीरीज में ऐसा होना हैरानी भरा है। लेखन और निर्देशन के लिए उपलब्धि है। सत्यांशु सिंह और राजीव बरनवाल ने आखिरी एपिसोड में जो कहानी को समेटा है वो काबिल-ए-तारीफ है।

ऋत्विक भौमिक की दोहरी पतली काया न तो उनकी भारी सी आवाज के साथ मेल खाती है और न ही उनकी अभिनय की क्षमता के साथ। पूरी सीरीज में वो साइलेंट वॉरियर बनते जा रहे हैं। यहां तक ​​कि जब उनके राज दर्शक समझ जाते हैं तब भी उनसे घृणा नहीं करते। अपने भाई के प्रति अगाध प्रेम, एक लेक्चरर के छात्र के प्रति प्रेम, और फिर लाल सलाम, तीनों ही प्रकार में उनका चेहरा अलग एक्सप्रेशन के लिए आता है। गजब किया है। ऋत्विक को पहले बंद किए गए डाकू, मजा मा और द व्हिसलब्लोवर में देख रहे हैं लेकिन जहानाबाद उनके बिना भावातिरेक का प्रमुख उदाहरण है। जब उनकी स्टूडेंट हर्षिता गौर से उनकी शादी पक्की हो जाती है और वो फिर भी उसी क्लास में लगे होते हैं तो हर दिन पता चलता है कि सर की शादी तय हो गई है। ऋत्विक के चेहरे के एक्सप्रेशन, सीन को और टेंशन को बड़े ही कायदे से डिफ्यूज करते हैं। क्लाइमेक्स से पहले जब ऋत्विक अपने मामा सुनील सिन्हा के सामने फटकारते हैं, तो कुछ खास मायने ही अपनी बात को समझाते हैं।

हर्षिता रंग का किरदार अच्छे से रचा गया है। वो सुंदर हैं। जीनियस हैं ऐसा कहना तो जल्दबाजी होगी मगर मिर्जापुर के बाद अब जहानाबाद में उन्हें बड़ा रोल मिला है। बिहार के शीर्ष समाज के राजनेताओं के तौर पर रजत कपूर को देखकर लगता है कि अच्छी भली सीरीज़ डूबे हुए विचार हैं, लेकिन सिल्वर कपूर की कहानी पूरी तरह से फिल्मी नहीं है। उनकी पहचान की वजह से कहानी में थोड़ी सौखता और ठहराव आता है। हमेशा शहरी भूमिका में नजर आने वाले एक बिहारी राजनेता की तरह चालाकी दिखाते हुए एक बिहारी राजनेता रजत कपूर हैं, हालांकि वो जरा भी फिल्मी नहीं है। एसपी के तौर पर सत्यदीप मिश्रा की डिटेल ही सामान्य है, लेकिन कुछ महत्वपूर्ण बनते रहे। परमब्रता चटर्जी को अंततः अपनी इमेज से मुक्ति पाने का एक मौका मिला है जिसे उन्होंने बड़े ही अंदाज में निभाया है। नवंबर 2005 में जहानाबाद में अपराधियों ने हमला किया था, जिस वजह से जेल से करीब 300 से ऊपर कैदी भाग निकले थे। इस कहानी पर ये सीरीज आधारित है लेकिन ताना बाना बड़ी ही सुघड़ता से जानी जाती है।

स्नेहा खानवलकर का संगीत भी है और नहीं भी है, लेकिन निश्चित रूप से शीर्ष पर हैं। राघव-अर्जुन द्वारा रचा ये शीर्षक ट्रैक काफी देर तक याद रखा जाएगा। स्टॉकहोम और प्राग के रहने वाले जोआहेर मुसाविरने ने इस पूरी सीरीज को शूट कर लिया है। उनके सिनेमैटोग्राफी में परफेक्शन का विज़ुअल व्यू दिखता है। हर शॉट आपके लिए एक कहानी है। संपादन के लिए कमलेश पारुई जिम्मेदार हैं। हर सीन और हर किरदार को तवज्जो देने के चक्कर में कहीं भी धीमी धीमी होने लगी लेकिन क्लाइमेक्स वाला एपिसोड आपको नहीं उभरेगा।

जहानाबाद में कुछ भी भेद्यता नहीं है। सभी चीजें नपी तुली अनुबंध। काली मिर्च ज्यादा न नमक कम करने वाला है। क्लाइम बसमेक्स के बाद जो एंटी-क्लाइमेक्स डाला गया है वो भी सिर्फ इस उम्मीद से कि दूसरा सीजन देखने को मिलेगा, वो खटक रहा था। इस सीरीज के लिए प्रेरणा स्रोत और शो रनर सुधीर मिश्रा हैं जो समान पर पहले भी दो फिल्में बनायीं हैं -ये वो मंजिल तो नहीं और हजारों खवाहिशें ऐसी। लेकिन श्रृंखला के सही काम करते हैं धर्ता राजीव बरनवाल और सत्यांशु सिंह। संलग्न है कि सत्यांशु सिंह स्वयं बहुत बढ़िया लेखक है। आयबी के साथ मिलकर उन्होंने प्रथम प्रथम ड्राफ्ट के माध्यम से उदीयमान लेखकों को पढ़ने के लिए लिखना सिखाया। अपने साथी रामकुमार सिंह के साथ मिलकर उन्होंने “कैसे धारणा है फिल्म का लेखक” जैसा ज्ञानवर्धक और व्यावहारिक अनुमान से भरपूर किताब लिखी है। सीरीज हालांकि राजीव ने लिखी है लेकिन सत्यांशु ने राजीव की लेखनी को फैलाने का मौका दिया, इस वजह से ये दमदार सीरीज हमारे सामने आई है। लव एंड वॉर का जहानाबाद, तुरंत देख डालिये।

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कहानी:
स्क्रिनप्ल:
डायरेक्शन:
संगीत:

टैग: वेब सीरीज

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