
UNITED NEWS OF ASIA. अमृतेश्वर सिंह, रायपुर | दृढ़ संकल्प और असीम ईश्वरभक्ति के बल पर कोई व्यक्ति राष्ट्र निर्माण की धारा को कैसे दिशा दे सकता है, इसकी अनुपम झलक हमें वंदनीय लक्ष्मीबाई केलकर—अर्थात वं. मौसी जी—के जीवन से मिलती है। वे विश्व के सबसे विशाल महिला संगठन ‘राष्ट्र सेविका समिति’ की संस्थापिका थीं। उनका जीवन एक दीर्घकालीन संकल्प और सेवा की निष्कलंक साधना रहा।
यह वह समय था जब भारत पराधीन था, बालिकाएँ शिक्षा से वंचित थीं, संचार व यातायात के साधन सीमित थे और समाज जाति-पंथ एवं रूढ़ियों में जकड़ा हुआ था। ऐसे युग में एक स्त्री ने विचार, विश्वास और व्यवहार के माध्यम से नई दिशा दी — और वही थीं लक्ष्मीबाई केलकर।
राष्ट्र सेविका समिति का प्रारंभ
सन् 1936 में उन्होंने राष्ट्र सेविका समिति की स्थापना कर हजारों नहीं, लाखों नारियों के जीवन को दिशा दी। उनका मानना था कि जब स्त्रियाँ राष्ट्र सेवा में संगठित होंगी, तभी भारत का नवजागरण साकार होगा। उनके विचार उस काल में जितने प्रगतिशील थे, आज भी उतने ही प्रासंगिक और प्रेरक हैं।
आज के समाज के लिए आवश्यक पाँच प्रमुख विषयों पर उनके विचार किसी जीवन-दर्शन से कम नहीं।
1️⃣ स्वदेशी: आत्मनिर्भरता की आधारशिला
बचपन से ही उनमें राष्ट्रभक्ति के बीज पड़े थे। उनकी माता यशोदाबाई ‘केसरी’ पत्र का सामूहिक वाचन करती थीं, जिसने उनके बालमन पर गहरा प्रभाव डाला। उन्होंने ‘पाँच स्व’ बताए—स्वदेशी, स्वभाषा, स्वसंस्कृति, स्वधर्म और स्वावलंबन, जो स्वाधीनता के आधार हैं।
उनका विश्वास था कि जब हम देश में बनी वस्तुओं का उपयोग करते हैं, तो इससे किसान, कारीगर और स्थानीय उद्योग सशक्त होते हैं। यही आत्मनिर्भर भारत की जड़ है। वे स्वयं विदेशी वस्त्रों के विरोध में थीं और स्वदेशी वस्त्रों को प्राथमिकता देती थीं।
2️⃣ सामाजिक समरसता: विचार नहीं, व्यवहार का विषय
वं. मौसी जी का मानना था कि समरसता सिर्फ भाषण या आंदोलन का विषय नहीं, बल्कि जीवन व्यवहार में झलकनी चाहिए। उन्होंने छुआछूत के विरुद्ध कार्य किया, हरिजन सहयोगियों को अपने घर स्थान दिया, और विधवाओं को सम्मान सहित सामाजिक आयोजनों में आमंत्रित कर समाज में क्रांतिकारी परंपराएँ शुरू कीं।
3️⃣ नागरिक कर्तव्य: राष्ट्र सर्वोपरि भावना
उन्होंने वर्धा में एक विशेष बालिका विद्यालय की स्थापना की। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान गांधीजी के आवाहन पर उन्होंने तत्काल अपनी सोने की माला दान की। वे बालक-बालिकाओं में राष्ट्रीय चेतना जागृत करने के लिए चित्रकला प्रतियोगिताएँ आयोजित करती थीं। उनके संपर्क में आया हर व्यक्ति राष्ट्रचिंतन से युक्त हो जाता था।
4️⃣ पर्यावरण: प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व
वे प्रकृति को केवल संसाधन नहीं, ‘माँ’ मानती थीं। उनका मानना था कि जैसे माँ की सेवा की जाती है, वैसे ही हमें प्रकृति की भी करनी चाहिए। वे स्वदेशी जीवनशैली, जैविक खेती, जल संरक्षण, वृक्षारोपण जैसे कार्यों को जीवन में उतारती थीं। श्रीरामकथा के दौरान वे नियमित वृक्षारोपण का आग्रह करती थीं।
5️⃣ आदर्श कुटुंब: परिवार से राष्ट्र तक की यात्रा
वं. मौसी जी के अनुसार, सुसंस्कारित परिवार ही राष्ट्र निर्माण की नींव है। वे महिलाओं को यह सिखाती थीं कि परिवार के सदस्यों में प्रेम, आदर, सेवा, धर्म, शिक्षा और संस्कृति का भाव बना रहे। उन्होंने हजारों माताओं को यह सिखाया कि घर से ही राष्ट्र का उत्थान संभव है।
अविरल प्रेरणा की स्रोत…
आज जब हम आत्मनिर्भर भारत, सामाजिक समरसता, पर्यावरण संरक्षण और राष्ट्रभक्ति की बात करते हैं, तो वं. मौसी जी का संकल्प और योगदान और भी अधिक प्रासंगिक प्रतीत होता है। उनका जीवन केवल अतीत का गौरव नहीं, बल्कि भविष्य के भारत के लिए दिशा-संकेत है।
ऐसे युगप्रवर्तक, दूरदर्शी, साहसी और तपस्विनी व्यक्तित्व को शत-शत नमन।
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