
UNITED NEWS OF ASIA. गरियाबंद। छत्तीसगढ़ के सीतानदी-उदंती टाइगर रिजर्व में आखिरकार ढाई साल बाद एक बाघ की मौजूदगी की पुष्टि हो गई है। रविवार रात अभ्यारण्य के अरसीकन्हार रेंज में बाघ का एक वीडियो सामने आया है, जिसमें वह बैल का शिकार करते हुए दिखाई दे रहा है। इससे पहले कई दिनों तक पदचिह्न तो मिले थे, लेकिन ट्रैप कैमरों में तस्वीर नहीं आ पाई थी। वन विभाग की आठ दिन की अथक मेहनत के बाद आखिरकार कैमरे में बाघ की स्पष्ट तस्वीर कैद हुई है।
DFO वरुण जैन ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि अब यह जानने की कोशिश की जा रही है कि यह बाघ किस राज्य से आया है। इसके लिए तस्वीरें देहरादून स्थित वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया भेजी जा रही हैं।
तीन साल बाद बड़ी वापसी, वन विभाग की मेहनत लाई रंग
सीतानदी-उदंती टाइगर रिजर्व में पिछली बार बाघ की मौजूदगी 2022 में दर्ज की गई थी, जब तेलंगाना से महाराष्ट्र होते हुए एक बाघ यहां पहुंचा था। अब 2025 में एक बार फिर बाघ की वापसी ने न सिर्फ रिजर्व को फिर से सक्रिय बना दिया है, बल्कि यह वन विभाग की पर्यावरण सुधार पहल की बड़ी सफलता भी मानी जा रही है।
पिछले डेढ़ साल में वन विभाग ने 700 हेक्टेयर क्षेत्र को अतिक्रमण मुक्त कराया और कोर ज़ोन में स्थित 8 बड़े जलस्रोतों को सोलर पंप की मदद से भरा गया। साथ ही बाघों की आवाजाही के लिए बनाए गए कारीडोर में 1000 से अधिक झिरियों का निर्माण किया गया, जिससे पानी की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित हो पाई है।
शिकार पर लगाम, इंसान-वन्य जीव संघर्ष में कमी
विभाग के अनुसार, अतिक्रमण हटाए जाने के बाद अब मानव-वन्य जीव संघर्ष के मामले भी कम हुए हैं। पहले हर वर्ष 8-10 वन्य जीव शिकार का शिकार होते थे और ग्रामीण भी हमलों में घायल होते थे। अब वन्यजीवों को सुरक्षित और प्राकृतिक माहौल मिलने से उनकी संख्या में बढ़ोतरी हो रही है।
टाइगर रिजर्व के 1852 वर्ग किमी क्षेत्र में बसे 110 गांवों में वन विभाग द्वारा लगातार जनजागरूकता और संरक्षण अभियान चलाया जा रहा है, जिससे स्थानीय सहयोग भी बढ़ा है। वहीं ओडिशा सीमा से सटे इस क्षेत्र में सक्रिय शिकारियों के खिलाफ एंटी-पोचिंग टीम ने कई बार ऑपरेशन चलाकर कार्रवाई की है।
बाघ की वापसी – उम्मीदों की नई किरण
वन्य जीवन संरक्षण के क्षेत्र में सीतानदी-उदंती की यह प्रगति छत्तीसगढ़ ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए एक सकारात्मक संकेत है। बाघ की मौजूदगी न केवल इस अभ्यारण्य की जैव विविधता को समृद्ध करेगी, बल्कि पर्यावरणीय संतुलन और इको-टूरिज्म की संभावनाओं को भी नई दिशा देगी।
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