
मुंबई: 15 अगस्त 1975 को सिर्फ अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, हेमा मालिनी, संजीव कुमार स्टारर ‘शोले’ (शोले) की ही रिलीज नहीं हुई थी, बल्कि आस्था से भरपूर फिल्म ‘जय संतोषी मां’ (जय संतोषी मां) भी रिलीज हुई थी। जहां भारी भरकम बजट और मल्टी स्टारर फिल्म ‘शोले’ ने तहलका मचा दिया था, वहीं बेहद कम बजट में आम अभिनेताओं के साथ बनी फिल्म ने विश्वास का सैलाब ला दिया था। इस फिल्म को देखने के लिए दूर से लोग बैलगाड़ी पर आते थे। वहीं इसकी तारीफ सुनकर लता मंगेशकर ने अपने घर पर ही नजर रखने का एक दस्तावेज बनाया था।
अगर ‘शोले’ को कालजयी फिल्म कहा जाता है तो ‘जय संतोषी मां’ भी कालजयी फिल्म है, क्योंकि इसकी टक्कर की धार्मिक फिल्म आज तक नहीं बनी है। इस फिल्म ने कमाई में भी ‘शोले’ को जबरदस्त टक्कर दी थी। महज 25 लाख में बनी फिल्म ने 5 करोड़ की कमाई की थी। बजट तो कम था ही इस फिल्म के निर्माता-निर्देशक ने न प्रचार-प्रसार किया और न ही फिल्म का प्रीमियर तक रखा। इसकी किस्सा खुद लता मंगेशकर की बहन उषा मंगेशकर ने बताया था। फिल्म के इतने बड़े गाने मशहूर हुए कि सिनेमा के बाहर कैसे लेने वालों की भीड़ जमा हो गई थी।
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लता मंगेशकर भी फिल्म के चमत्कार से दंग रह गईं
‘जय संतोषी मां’ फिल्म के दो गाने तो ‘ऐ मेरे वतन के लोगो’ फेम कवि प्रदीप ने गाए हैं तो ‘मैं तो आरती उतारूं रे संतोषी माता की’ लता की बहन उषा मंगेशकर ने गाए हैं। शायद ही किसी को पता होगा कि उषा कभी फिंगर बनना नहीं चाहती थीं सिर्फ लता दीदी के कहने पर गाना शुरू किया और इस आरती गीत ने उषा को रातों-रात पॉपुलर कर दिया था। विजय शर्मा के निर्देशन में बनी ये फिल्म इतनी लोकप्रिय हुई कि इसे देखने की इच्छा लता मंगेशकर को भी हुई। एक इंटरव्यू में उषा ने बताया था कि ‘फिल्म की रिलीज के बाद लोगों की संतोषी मां में विश्वास हो गया था। सभी नए लोगों ने फिल्म बनाई थी और सबकी किस्मत पलट गई। फिल्म को जबरदस्ती मिली। दीदी ने मुझसे कहा कि फिल्म में ऐसा क्या है, मुझे भी दिखाओ। हम उन्हें थिएटर नहीं ले जा सकते थे, सीढ़ीदार घर पर फिल्म देखने की व्यवस्था की गई। जय संतोषी की मां के निर्माता ने प्रीमियर तक नहीं रखा था. फिल्म ऐसे ही रिलीज हुई और चल पड़ी। इस तरह के चमत्कार सिर्फ एक बार ही होते हैं’।
जय संतोषी मां की फिल्म 25 लाख में बनी 5 करोड़ की कमाई कर चुकी है। (पोस्टर)
साइट के बाहर प्रसाद भेजा गया था
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, फिल्म देखने के लिए गांव से लोग बैलगाड़ियों में भर-भर कर आते थे और चप्पल सिनेमाघर के अंदर चले जाते थे। उद्र स्क्रीन पर आरती हुई तो शोक जनता अपनी थाल सजाकर आरती करने लगती है। बाक़ा अधिकार होकर आते थे, और थियेटरों के बाहर भी फूल-माला-पूजा-प्रसाद का अधिकार होता था। फिल्म खत्म होने पर सिनेमैटोग्राफिक के बाहर एक प्रसाद साझाता था। सिनेमा के बाहर कुछ दुकानों ने तो संतोषी माता की फोटो फ्रेम और व्रतकथा की किताब बेची कर खूब कमाई की थी। वहीं कुछ लोगों ने जूतों-चप्पलों के स्टॉल पर खूब कमाई की थी। सिनेमा में नहीं देखने वालों को सिक्के चढ़ाए जाते थे, जिससे कर्मचारियों की अलग से कमाई होती थी।
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पहले प्रकाशित : 24 मार्च, 2023, 17:05 IST



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