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चैत्र नवरात्रि पर रिलीज हुई फिल्म, देवी गीत ने मचाई धूम, जितेंद्र-रीना रॉय की चमक किस्मत में थी

मुंबई: 80 के दशक की ब्लॉकबस्टर फिल्म ‘आशा’ (आशा) के भजन ‘तूने मुझे शेरावलिये कहा’ के बिना नवरात्रि फीकी लगने लगी है। 21 मार्च 1980 को चैत्र नवरात्रि के मौके पर रिलीज की इस फिल्म में यूं तो जितेंद्र (जीतेंद्र)-रीना रॉय (रीना रॉय) की जोड़ी थी लेकिन इस भजन को जितेंद्र और टी रामेश्वरी पर फिल्माया गया था। इस फिल्म में रामेश्वरी ने जितेंद्र की ऑनस्क्रीन वाइफ की भूमिका निभाई थी, लेकिन जितेंद्र और रीना रॉय की जोड़ी हिट हो गई थी। रोशन तो नवरात्रि के पावन पर्व पर ‘आशा’ फिल्म का किस्सा दे रहे हैं।

जे ओम प्रकाश के निर्देशन में बनी 1980 में बनी फिल्म ‘आशा’ को लक्ष्मीकांत-प्यारे लाल की जोड़ी ने संगीत से जोड़ दिया था। यूं तो इस फिल्म में 6 गाने हैं लेकिन दो गाने ऐसे जबरदस्त हैं कि जिसे आज भी म्यूजिक लव सुन कर झूम उठा रहे हैं। एक तो ‘तूने मुझे शेरावलिये’ कहा है, दूसरा है ‘शीशा हो या दिल हो जाता है’। इस गाने को लता मंगेशकर ने गाया था, वहीं प्रसिद्ध भजन को एक बार मोहम्मद रफी ने तो एक बार नरेंद्र च्यवन ने गाया था। माता रानी पर दी गई इस भजन की कशिश 43 साल भी बरकार है। इस फिल्म के गाने आनंद बक्षी ने लिखे थे।

तमिल, बंगाली में भी बनी ‘आशा’
बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त हिट रही ‘आशा’ टाइम के साथ कल्ट फिल्मों में शामिल हुई। इस फिल्म के साथ ही जितेंद्र और रीना रॉय की जोड़ी ने तहलका मचा दिया था। फिल्म ने जबरदस्त कमाई भी की थी। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अपनी लागत की दोहरी कमाई करने में फिल्म सफल रही थी। ‘आशा’ फिल्म की सफलता का अंदाजा से लग सकता है कि यह इसी साल 1982 में चेतावनी में ‘अनुराग भगवान’ के नाम से बनाया गया था तो अगले साल यानी 1983 में तमिल में ‘सुमंगली’ और 1990 में बंगाली में ‘मंदिरा’ के नाम से बनाया गया है। फिल्मयुग प्राइवेट लिमिटेड के पहले से बनी ‘आशा’ फिल्म की कहानी राम केलकर ने लिखी थी जबकि डायलॉग जे ओम प्रकाश ने रमेश पंत से लिख रहे थे।

80 के दशक की ब्लॉकबस्टर फिल्म ‘आशा’। (पोस्टर)

‘आशा’ फिल्म की कहानी
इस फिल्म की कहानी में एक ट्रक ड्राइवर दीपक ने अपनी इस विशेषता को जितेंद्र ने निभाया है, जिसकी दोस्ती लिफ्ट देने के बाद एक छोटी सी आशा से हो जाती है। आशा का रोल रीना रॉय ने किया था। दीपक पहले से मातृभूमि (रामेश्वरी) से प्यार करता है और उससे शादी करता है। दीपक का एक्सीडेंट हो जाता है और उसकी मौत हो जाती है। उसकी मां गर्भवती माता को घर से जाने के लिए कहती है, तो मातृभूमि उसके पिता के घर जाती है, रविवार को उसकी मृत्यु हो जाती है। परेशान नदी पुल से पानी में कूजकर जान देने की कोशिश करती है और जिसे मंदिर के लोग बचा लेते हैं लेकिन इस दुर्घटना में मला की आंख चली जाती है। वह एक बेटी को जन्म देती है जिसका नाम दीपमाला है। दीपक जिंदा है और जब घर आता है तो मां खुश हो जाती है और माला के सुसाइड की बात बताती है तो वह डिप्रेशन में चला जाता है। फिर दीपक की जिंदगी में आशा की फिर से एंट्री होती है और दीपक अवसाद से बाहर आता है।

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‘आशा’ फिल्म का दिलचस्प क्लाइमैक्स
इसी बीच गेमिंग हालात में बच्ची दीपमाला से टकरा जाती है। ग्लामा से आशा मिलती है और उसकी आंखों का ऑपरेशन कराती है। इस बीच दीपक और आशा शादी करने वाले होते हैं, आशा को आशा अपनी शादी पर बुलाती है। मातृभूमि की आंख ठीक हो जाती है और आशा की शादी पर पहुंचती है तो दीपक को देखकर हैरान रह जाता है। वह वहां से आता है लेकिन दीपक के एक दोस्त उसे मातृभूमि और दीपमाला के बारे में बताता है, आशा जानने के बाद शादी कैंसिल कर देती है और शीशा हो या दिल हो स्टेज पर गाकर अपना दर्द ब्यां करती है।

टैग: चैत्र नवरात्रि, मनोरंजन विशेष, जितेंद्र, रीना राय

 


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