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बद्रीनाथ का प्रवेश द्वार तोड़ा जा रहा है जोशीमठ, क्या है इसके पीछे की वजह उत्तराखंड क्यों बर्बाद हो रहा बद्रीनाथ का प्रवेश द्वार जोशीमठ, क्या है इसके पीछे की वजह?

जोशीमठ- इंडिया टीवी हिंदी

छवि स्रोत: पीटीआई
जोशीमठ

जोशीमठ, जिसे बद्रीनाथ का प्रवेश कहा जाता है। बद्रीनाथ जाने के लिए समझौते से यात्रा शुरू होती है। अब जोशीमठ बर्बादी का परदा है। धीरे-धीरे इस पावन से धरती की जमीन दरक रही है। घरों पर खतरों के निशान दिए गए हैं। यह घर कभी भी मित्तीमे मिल सकते हैं। यहां सैकड़ों परिवार और हजारों लोग रहते हैं, जिनके ऊपर आज अस्तित्व का संकट छाया हुआ है। अब सवाल उठता है कि आखिर के बसा बसाया शहर में असली इस वर्जिन पर कैसे पहुंचें? क्या किसी ने पहले इस ओर ध्यान नहीं दिया? अगर दिया भी जहर रहना जरूरी कदम क्यों नहीं बोले? क्या इस बर्बादी को रोका जा सकता है? और सरकार अब क्या कदम उठा रही है?

जोशीमठ के संकट की ओर पहले तो किसी का ध्यान ही नहीं गया। फिर वहां के लोगों ने प्रदर्शन आदि करना शुरू किया। जिसके बाद वहां के स्थायी समाचार पत्रों और चैनलों ने इस संकट की ओर ध्यान आकर्षित किया और उसके कुछ दिनों बाद यह दुनिया भर में चर्चा का विषय बन गया। अख़बारों में हेडिंग स्प्री का जोशीमठ डूब रहा है या यहाँ ज़मीन दरक रही है। जोशीमठ की इस स्थिति के पीछे कई कारण हैं। झटके, चरम मौसम की घटनाएँ और भूवैज्ञानिक संभावनाओं के क्षेत्र में स्थान शामिल हैं। ऐसा नहीं है कि यह बर्बादी केवल नैचुरल है। इसके बर्बादी के पीछे ज्यादातर इंसानी कारण हैं।

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क्यों दरी जोशीमठ की नींव पड़ी

इस इलाके में विकास और पहुंच के नाम पर जमकर दोहर किए गए। चट्टान को काट दिया गया। इसके अलावा सुनियोजित निर्माण कार्यों ने जोशीमठ की जमीन को धंसाने में योगदान दिया। तमाम जलविद्युत योजनाओं का निर्माण किया गया। जिसमें विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजना सहित जोशीमठ और तपोवन के आसपास जलविद्युत योजना प्रमुख हैं। इसके साथ ही कई अन्य परिस्थियों के लिए खुदाई और चबूतरे का दोहन किया गया। सूचनाओं का मनाना है कि यह सभी योजनाओं का भार जोशीमठ की धरती सह न सकी और दरक गई। यह दरकना ऐसा नहीं है कि यह पहली बार हुआ हो, इससे पहले भी जोशीमठ की जमीन धंसी और दरकी थी। उस वक्त भी चेतावनी जारी की गई थी, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया और सब अपने मन के मुताबिक काम करते रहे। जोशीमठ की चिंता किसी ने नहीं की और आज परिणाम सबके सामने हैं।

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बारिश और बाढ़ की वजह से भी दरकी पड़ती है

इसके साथ ही अगस्त 2022 से उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, जोशीमठ के धंसने में भूगर्भीय कारक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। अत्यधिक भारी बारिश और बाढ़ ने भी जोशीमठ के धंसने में योगदान दिया है। जून 2013 और फरवरी 2021 में बाढ़ की घटनाओं से भी क्षेत्र की जमीन कमजोर होने से धंसने का खतरा बढ़ गया है।

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बढ़ती जनसंख्या और अनियमित योजना ने तोड़ दिया जोशीमठ

वहीं जमीन दरकने का एक प्रमुख कारण यहां लगातार बढ़ती मानव आबादी भी है। यहां लगातार लोग बसते गए। इसके साथ ही यहां घूमने के लिए सैलानी भी आगे बढ़े। जिनके लिए सुविधाएँ जुड़ी हुई हैं। इनके लिए अनियमित पदानुक्रम का विकास हुआ है। इस विकास या यूं कहने की टैपिंग को रोकने के लिए किसी ने ध्यान ही नहीं दिया। इसके साथ ही पनबिजली प्रोजेक्ट के लिए माइन बनाने में ब्लास्टिंग का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे स्थानीय भूकंप के संकेत मिलते हैं और रॉकी के ऊपर मलबा हिलता है, जिससे दरारें आती हैं। इस बार हलकी-फुल्की दरारों ने बड़ा रूप ले लिया और इस बार यह बड़ा संकट सामने आया।

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जोशीमठ

क्या जवाब देने के लिए कदम ?

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शनिवार (7 जनवरी) को जोशीमठ में यात्रियों के घरों का दौरा किया और उनकी सुरक्षा और पुनर्वास सुनिश्चित करने का वादा किया। धामी ने कहा कि यह तय नहीं था कि निवासियों को शहर से स्थानांतरित किया जाएगा या नहीं, लेकिन कहा कि उन्हें तत्काल खाली करने की आवश्यकता है। इसके साथ ही विशेषज्ञ समिति के अध्ययन द्वारा रिटर्नी कमेटी ने शासन से उन संभावनाओं को जल्द से जल्द छोड़ने की अनुमति दी है, जिनमें से कई अधिक खामियां अटकी हुई हैं। शासन ने ऐसे अटकलों को गिराने का फैसला लिया है। हालांकि, जल्दबाजी में कोई कदम उठाने से पहले हर पहलू पर विचार किया जा रहा है। इससे पहले जोशीमठ और आसपास हो रहे निर्माण कार्यों सहित सभी परियोजनाओं पर रक लगा दिया गया है।

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