छत्तीसगढ़राजनांदगांव 

तीखे विरोध और पुलिस तैनाती के बीच संपन्न हुआ माँ बम्लेश्वरी मंदिर ट्रस्ट समिति का चुनाव, आदिवासी समाज ने उठाई 50% आरक्षण की मांग

UNITED NEWS OF ASIA. नेमिष अग्रवाल, राजनांदगाव | डोंगरगढ़ में रविवार का दिन पूरी तरह तनावपूर्ण रहा। माँ बम्लेश्वरी मंदिर ट्रस्ट समिति के चुनाव के बीच सर्व आदिवासी समाज ने जबरदस्त विरोध प्रदर्शन करते हुए ट्रस्ट में 50% आरक्षण की मांग की। आदिवासी समाज का आरोप है कि माँ बम्लेश्वरी उनकी आराध्य देवी हैं और ट्रस्ट समिति में उनकी उपेक्षा की जा रही है।

पुलिस तैनाती और प्रशासनिक सतर्कता

चुनाव को लेकर डोंगरगढ़ में हाई अलर्ट रहा। शहर के कोने-कोने पर भारी पुलिस बल तैनात किया गया था। एसडीएम अभिषेक तिवारी सहित जिला प्रशासन के कई वरिष्ठ अधिकारी हाई स्कूल मैदान में डटे रहे, जहां सर्व आदिवासी समाज प्रदर्शन कर रहा था। प्रशासन की निगरानी में ट्रस्ट समिति का चुनाव शांतिपूर्वक संपन्न हुआ।

ट्रस्ट समिति पर आदिवासी समाज का आरोप

प्रदर्शन कर रहे आदिवासी समाज के नेताओं का कहना था कि माँ बम्लेश्वरी देवी उइके गोत्र की आराध्य हैं, और ऐतिहासिक रूप से यह मंदिर आदिवासी परंपरा से जुड़ा हुआ है। समाज ने आरोप लगाया कि कुछ लोगों ने मंदिर ट्रस्ट पर कब्जा कर लिया है और आदिवासी समुदाय को लगातार हाशिए पर रखा जा रहा है।

इतिहास में जड़ें, आज विवाद की वजह

बताया जाता है कि माँ बम्लेश्वरी मंदिर का निर्माण खैरागढ़ रियासत के राजा कमल नारायण सिंह ने करवाया था और बाद में राजा बीरेन्द्र बहादुर सिंह ने 1976 में ट्रस्ट गठन कर मंदिर का प्रबंधन सौंपा। तभी से मंदिर का संचालन पारंपरिक ट्रस्ट समिति के हाथों में रहा है। अब आदिवासी समाज इस पर पुनर्विचार की मांग कर रहा है।

चुनाव में भारी मतदान, सोमवार को परिणाम

रविवार को तीन श्रेणियों में हुए मतदान में भारी भागीदारी दर्ज की गई —

  • सामान्य श्रेणी: 1537 में से 1465 मतदाता

  • आजीवन श्रेणी: 917 में से 804 मतदाता

  • संरक्षण श्रेणी: 522 में से 496 मतदाता

चुनाव परिणाम सोमवार को घोषित किए जाएंगे।

तीन माह की चेतावनी, उग्र आंदोलन की तैयारी

प्रदर्शन के अंत में सर्व आदिवासी समाज ने प्रशासन को ज्ञापन सौंपते हुए तीन महीने का समय दिया है। समाज ने चेतावनी दी है कि यदि माँगें पूरी नहीं हुईं, तो आगे और अधिक उग्र आंदोलन किया जाएगा।

माँ बम्लेश्वरी मंदिर ट्रस्ट समिति का यह चुनाव अब एक सामाजिक संघर्ष का प्रतीक बन चुका है, जहां परंपरा, आस्था और अधिकारों की टकराहट दिखाई दे रही है। आने वाले समय में यह विवाद डोंगरगढ़ में धार्मिक और सामाजिक समीकरणों को गहराई से प्रभावित कर सकता है।

 


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