छत्तीसगढ़

वनांचल के स्कूली बच्चों का सपना अधूरा, आधा-अधूरा स्कूल भवन बना सिस्टम की पोल खोलता आईना

सालो से ठप निर्माण कार्य....

UNITED NEWS OF ASIA. रुपेश साहू, मैनपुर ।ठेकेदारों की मनमानी और अफसरशाही की लापरवाही से बच्चों को अब भी झोपड़ीऔर पेड़ के नीचे छांव और खंडहरों मकान में पढ़ाई करने को बच्चे मजबूरी…..

जिला गरियाबंद के सुदूर वनांचल क्षेत्र मैनपुर विकासखंड के आदिवासी बहुल गांवों में स्कूली बच्चों के लिए बनाए जा रहे नवीन स्कूल भवन अधूरे पड़े हैं। शिक्षा विभाग की ‘स्कूल जतन योजना’ के तहत स्वीकृत लाखों रुपये की राशि के बावजूद अधिकांश स्कूल भवनों का निर्माण सालो से अधर में लटका हुआ है। जिन भवनों का निर्माण कार्य शुरू भी हुआ, वे आज तक पूरा नहीं हो सका है, सायद इस वर्ष भी एक बार फिर से यह सत्र बच्चों को झोपड़ी, खंडहर मकान या पेड़ की छांव में अपना पढ़ाई करना पड़ सकता है।

इस गंभीर समस्या को लेकर ग्रामीणों में रोष है, लेकिन सबसे बड़ी चिंता यह है कि शासन और प्रशासन के जिम्मेदार अफसर इस पूरे मामले में अब तक मौन क्यों हैं। निर्माण कार्यों में लापरवाही, ठेकेदारों की मनमानी, मजदूरों को मजदूरी न मिलना, निर्माण सामग्री की गुणवत्ता में कमी और समयसीमा की अवहेलना जैसे कई मुद्दे उजागर हो चुके हैं, लेकिन इसके बावजूद न तो किसी अधिकारी के खिलाफ कोई कार्रवाई हुई, न ही ठेकेदारों पर शिकंजा कसा गया।

कहां है सिस्टम की गड़बड़ी?

शोभा, मोतीपानी, भूतबेड़ा, भद्रीपारा, गाजीमुड़ा, मौहानाला, भाँठापानी, नगबेल, लाटापारा जैसे गांवों में स्कूल भवन निर्माण कार्य अधूरा पड़ा है। यहां के बच्चों को बरसों से खराब हालत में, जर्जर और असुरक्षित झोपड़ियों में पढ़ाई करनी पड़ रही है। शासन द्वारा स्वीकृत नई स्कूल इमारतों का निर्माण कार्य समय पर पूरा न होना यह सवाल खड़ा करता है कि आखिर गड़बड़ी कहां है? राशि जारी हुई या नहीं, यह जानने की कोशिश भी अब तक किसी अधिकारी ने नहीं की है।

ठेकेदारों की मनमानी, मजदूरों को नहीं मिली मजदूरी

स्थानीय मिस्त्रियों और मजदूरों का आरोप है कि उन्हें महीनों से ठेकेदार द्वारा मेहनताना नहीं दिया गया है। इसका सीधा असर निर्माण कार्यों पर पड़ा है। मजदूरों की आर्थिक तंगी और ठेकेदार की मनमानी के कारण काम ठप पड़ा है। सवाल उठता है कि जब ठेकेदारों को एडवांस राशि दी जाती है, तब भी मजदूरी का भुगतान क्यों नहीं हो रहा? क्या यह राशि किसी और मद में खर्च हो गई या फिर जिम्मेदारों की मिलीभगत से हड़पी जा रही है?

जिम्मेदार अधिकारी चुप क्यों हैं?

शिक्षा विभाग के अधिकारी, पंचायत सचिव, जनपद सीईओ से लेकर जिला कलेक्टर तक को इन स्कूल भवनों की स्थिति की जानकारी है, लेकिन किसी ने अब तक मौके पर पहुंचकर निर्माण कार्य की समीक्षा नहीं की। अफसरशाही की यह लापरवाही अब बच्चों के भविष्य पर भारी पड़ रही है। यह स्थिति शिक्षा के मूल अधिकार की खुलेआम अनदेखी है।

राजापड़ाव क्षेत्र की सूरत बदलेगी कब?

यह एक बड़ी विडंबना है कि शिक्षा को लेकर सरकार करोड़ों रुपये खर्च करने का दावा करती है, लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि बच्चों को पक्की छत तक नसीब नहीं हो रही। बरसात में जब झोपड़ियां टपकती हैं और कीचड़ में बच्चे बैठकर पढ़ते हैं, तब क्या यही है ‘नवभारत’ की तस्वीर?

अब वक्त है कि शासन-प्रशासन इस गंभीर समस्या का संज्ञान ले और संबंधित अधिकारियों की जवाबदेही तय करे। अधूरे भवनों को समयसीमा में पूरा कराने के लिए ठेकेदारों पर कड़ी कार्यवाही की जाए, मजदूरों को भुगतान दिलाया जाए और निर्माण गुणवत्ता की जांच कराई जाए।

यदि ऐसा नहीं किया गया, तो वनांचल के इन मासूम बच्चों का सपना महज एक सरकारी फाइल में दफन होकर रह जाएगा — और इस लापरवाही की कीमत एक पूरी पीढ़ी को चुकानी पड़ेगी।

 


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