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सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों के संविधान पीठ ने एक मई को बड़ा फैसला किया है। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने शादी को लेकर काफी अहम फैसला सुनाया है। इसमें कहा गया है कि अगर पति पत्नी के बीच रिश्ते की दरार खत्म नहीं होती तो रिश्ते खत्म हो सकते हैं।
नई दिल्ली। भारत में विवाह को पवित्र बंधन माना जाता है, जिसमें सात जन्मों तक ग्लेन की शपथ ली जाती है। मगर आज के समय में कई रिश्ते लंबे नहीं होते हैं। इन संबंधों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक मई का अहम फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने पति पत्नी के रिश्तों को लेकर ये बड़ा फैसला सुनाया है।
सोमवार को पति-पत्नी के बीच रिश्तों में आई दरार खत्म ना होने की सूरत में दोनों का साथ रहने का अर्थ नहीं रहा। ऐसे में दोनों के रिश्ते और शादी को खत्म करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सहमति जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को व्यवस्था दी कि जीवनसाथियों के बीच आई दरार भरने के आधार पर किसी की शादी खत्म हो सकती है। यानी अगर दो लोगों के लिए शादी करना बिल्कुल असंभव है तो वो तलाक ले सकता है।
संयुक्त एस के कौल की अध्यक्षता वाले पांच न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि उच्चतम न्यायालय को संविधान के लेख 142 के तहत पूर्ण न्याय करने का अधिकार है। संविधान का लेखा-जोखा 142 उच्चतम न्यायालय द्वारा किसी मामले में ‘संपूर्ण न्याय’ करने के लिए उसके द्वारा दिए गए निर्णय से संबंधित है। प्लैटफॉर्म में आपसी संजीव कार्य, एस ओका, घबराना, और जे के माहेश्वरी भी शामिल हैं। पीठा ने कहा, ”शिष्ट व्यवस्था दी गई है कि इस अदालत के लिए किसी विवाहित रिश्ते में आई दरार के भर नहीं पाने के आधार पर उसे खत्म करना संभव है।” कई याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया।
जानकारी के लिए बताएं कि हिंदू मैरिज एक्स 1955 की धारा 13बी के तहत पति पत्नी का रिश्ता ठीक नहीं चलता है तो वो तलाक के लिए फैमी कोर्ट में आवेदन दे सकते हैं। हालांकि फैमिली कोर्ट में बड़ी संख्या में केस होने के कारण जजमेंट आने में समय लगता है, जिसके लिए लगभग छह महीने का समय भी लगता है। हालांकि इस बेंच ने अपने फैसले में कहा कि जब शादी को जारी रखना असंभव हो तो सुप्रीम कोर्ट भी सीधे तलाक दिए जाने का आदेश दे सकता है। ऐसी स्थिति में तलाक के मामले में मिलने वाले 6 महीने के इंतजार वाले कानूनी रोक को लागू नहीं करना चाहते। इसके अलावा कोर्ट ने गुजारा भत्ता, बच्चों की परवरिश को लेकर भी चर्चा की है।
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