गरियाबंदछत्तीसगढ़

मलेरिया मरीजों को ले जा रही एंबुलेंस कीचड़ में फंसी, ट्रैक्टर से खींचकर निकाला गया

UNITED NEWS OF ASIA. गरियाबंद।छत्तीसगढ़ के गरियाबंद ज़िले के आदिवासी अंचल आमामोरा में स्वास्थ्य सुविधा की बदहाली और अधूरी सड़क निर्माण की हकीकत ने बीती रात एक बार फिर खुद को दोहरा दिया। मलेरिया से पीड़ित 5 गंभीर मरीजों को लेकर अस्पताल जा रही एंबुलेंस बीच रास्ते कीचड़ में बुरी तरह फंस गई। आखिरकार ट्रैक्टर बुलाकर एंबुलेंस को टोचन करके निकाला गया।

ये दृश्य केवल एक रात की कहानी नहीं, बल्कि 15 साल से अधूरी पड़ी सड़क और विकास से कटे ग्रामीणों की नियति है।

मलेरिया के मरीज, कीचड़ में धंसी एंबुलेंस और ट्रैक्टर का सहारा

बीती शाम कुकरार गांव में ग्राम भ्रमण के दौरान CHO दुर्गेश पुरैना और उनकी टीम को कमर जनजाति के 5 मरीज – पवित्रा (6), रूपेश (13), धानबाई (50), शुक्रुराम (54) और प्रमिला बाई (34) बुखार से तपते मिले। झाड़-फूंक के सहारे इलाज करा रहे परिवारों को समझाकर अस्पताल ले जाने की सहमति बनी।

जैसे ही मरीजों को लेकर एंबुलेंस निकली, हथौड़ाडीह के पास अधूरी सड़क और कीचड़ में गाड़ी फंस गई। करीब 2 घंटे की मशक्कत और ट्रैक्टर बुलाने के बाद मरीजों को अस्पताल पहुंचाया जा सका।

टाइगर रिज़र्व की आपत्ति ने रोका 24 करोड़ का सड़क निर्माण

दरअसल, यह सड़क 15 साल पहले स्वीकृत हुई थी, लेकिन टाइगर रिजर्व की एनओसी नहीं मिलने के कारण 31.65 किमी लंबे सड़क परियोजना का काम ठप पड़ा है। पीएमजीएसवाय द्वारा बनाई जा रही यह सड़क नेशनल हाइवे 130C को आमामोरा और ओड़ से जोड़ती है। अब तक सिर्फ 12 किमी ही पक्की सड़क बन पाई है।

उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व के उपसंचालक वरुण जैन के अनुसार, सड़क का करीब 17 हेक्टेयर हिस्सा बफर जोन में आता है, जिसके लिए वाइल्डलाइफ और फॉरेस्ट विभाग की एनओसी जरूरी है।

फॉरेस्ट क्लियरेंस में खर्च होंगे 10 करोड़ से अधिक

निर्माण एजेंसी के अनुसार, फॉरेस्ट क्लियरेंस की औपचारिकताएं पूरी करने में 10 करोड़ रुपये से अधिक का खर्च आएगा। एनओसी के लिए 44 बिंदुओं में से तीन प्रमुख बिंदु वन्य जीव और पौधारोपण से जुड़े हैं। कुल 17 हेक्टेयर क्षेत्र को दोगुना जंगल क्षेत्र में बदलने की बाध्यता है।

गांव की हालत और भी भयावह, बरसात में बनेगा टापू

अधूरी पुलिया, मिट्टी की सड़कें, डूबते नाले — बरसात में आमामोरा और आसपास की पांच बस्तियों के 1500 से ज्यादा लोग लगभग टापू में तब्दील हो जाने वाली स्थिति का सामना करते हैं। सड़क न होने से दोपहिया वाहन भी चलना मुश्किल हो जाता है, मरीजों और गर्भवती महिलाओं के लिए हालात भयावह हो जाते हैं।

जिला पंचायत सदस्य का बयान: ‘सड़क की लड़ाई लड़ेंगे’

जिला पंचायत सदस्य संजय नेताम ने कहा कि –
“बारिश में आवाजाही पूरी तरह ठप हो जाएगी। सरकार और प्रशासन को चाहिए कि निर्माण पर लगी रोक हटवाने में तत्परता दिखाएं, वरना हम ग्रामीणों के साथ मिलकर सड़क की लड़ाई लड़ने से पीछे नहीं हटेंगे।”

क्या कहता है प्रशासन?

निर्माण एजेंसी के कार्यपालन अभियंता अभिषेक पाटकर ने बताया कि –
“एनओसी के लिए 44 में से अधिकतर बिंदुओं पर काम हो चुका है। बरसात के तीन महीनों में सभी औपचारिकताएं पूरी कर ली जाएंगी। जैसे ही एनओसी मिलेगी, काम युद्ध स्तर पर शुरू किया जाएगा।”

आमामोरा की यह घटना जंगल बनाम जीवन की उस बहस को फिर जीवित कर गई है, जहां आदिवासी इलाकों में विकास वन्य जीवन की रक्षा की आड़ में थमा हुआ है। सवाल यह नहीं कि टाइगर बचाएं या सड़क बनाएं — सवाल है, क्या इंसानों की जिंदगी वन्य जीवों से कम मूल्यवान है?

 


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