United News Of Asia. आज रामनवमी है। दोपहर 12 बजे अयोध्या में रामलला का सूर्य तिलक हुआ। सूर्य तिलक इसलिए, क्योंकि राम सूर्यवंशी थे। सूर्य उनके कुल का प्रतीक हैं और उनके पूर्वज भी।
सूर्य के बाद इस वंश में इक्ष्वाकु, पृथु, सगर, भगीरथ, रघु और दशरथ जैसे बड़े राजा हुए। इनके बाद श्रीराम सूर्यवंश के 64वें राजा थे।
राम नवमी के मौके पर जानिए सूर्य वंश की शुरुआत कैसे हुई और इस वंश के खास राजा कौन-कौन हैं…
- कश्यप ऋषि
- देवता, असुर, नाग, गंधर्व, किन्नर, गरुड़ के साथ सभी जीवों के पिता कश्यप ऋषि ही हैं। इनका विवाह दक्ष प्रजापति की 17 पुत्रियों से हुआ था। इनके पिता मरीचि एक ऋषि थे।
- मरीचि ब्रह्मा के मानसपुत्र और सप्तर्षियों में से एक हैं। सप्तऋषियों में कश्यप ऋषि का नाम भी है।
- सभी देवता कश्यप ऋषि और अदिति के पुत्र हैं। जबकि सभी असुर कश्यप और दिति के पुत्र हैं।
- कश्यप के पुत्र देवताओं में एक विवस्वान भी हैं, इनका एक नाम सूर्य नारायण भी है।
- विवस्वान (सूर्य)
- श्रीराम को सूर्यवंशी इसी वजह से कहा जाता है, क्योंकि भगवान सूर्य से ही इनका वंश शुरू हुआ है।
- सूर्य देव का विवाह विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा से हुआ था। सूर्य की संतानों में मनु, धर्मराज, शनि देव, भद्रा, यमुना, दोनों अश्विनी कुमार शामिल हैं।
- रामायण के समय सुग्रीव सूर्य पुत्र माने गए हैं। महाभारत में कर्ण सूर्य पुत्र थे। सूर्य देव से हनुमान जी ने साथ चलते-चलते ज्ञान हासिल किया था। सूर्य से ही पूरी सृष्टि चल रही है।
- राजा इक्ष्वाकु
- राजा इक्ष्वाकु सूर्य पुत्र मनु के पुत्र थे। इनकी वजह से श्रीराम के वंश को इक्ष्वाकु वंश भी कहते हैं।
- इक्ष्वाकु कौशल देश के राजा थे। इनकी राजधानी अयोध्या थी। बाद में अयोध्या में ही श्रीराम का जन्म हुआ था।
- राजा इक्ष्वाकु के 100 पुत्र माने गए हैं। इनमें एक पुत्र का नाम विकुक्षि था। विकुक्षि से इनका वंश आगे बढ़ा।
- राजा पृथु
- इक्ष्वाकु के पुत्र विकुक्षि हुए। विकुक्षि के पुत्र ककुत्स्थ थे और इनके पुत्र अनेनस थे। अनेनस के पुत्र हुए पृथु। पृथु के नाम पर ही पूरे ग्रह का नाम पृथ्वी पड़ा है।
- जब पृथु राजा बने थे, उस समय धरती पर अकाल था। पौराणिक कथाओं के मुताबिक, एक दिन भूमि माता ने गाय रूप में राजा पृथु को दर्शन दिए थे।
- भूमि ने राजा पृथु से कहा था कि अकाल दूर करने के लिए पहले मुझे समतल कीजिए, इसके बाद इंद्र देव जब वर्षा कराएंगे तो मैं अपने उदर से अन्न दूंगी।
- राजा पृथु ने ऐसा ही किया और इसके बाद से खेती के जरिए अन्न पैदा होने लगा। माना जाता है कि राजा पृथु की तपस्या से प्रसन्न होकर विष्णु जी ने उन्हें दर्शन दिए थे।
- राजा हरिश्चंद्र
- सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र भी सूर्यवंशी ही थे। हरिश्चंद्र के पिता सत्यव्रत थे। इनकी पत्नी का नाम तारा था और पुत्र का नाम रोहित था।
- पौराणिक कथा के मुताबिक, राजा हरिश्चंद्र ने अपनी पूरी धन- संपत्ति विश्वामित्र को दान करने का संकल्प लिया और दान भी कर दी थी।
- विश्वामित्र ने पूरी धन-संपत्ति राजा से ले ली, इसके बाद उन्होंने राजा से दक्षिणा भी मांग ली। राजा के पास धन नहीं बचा था तो उन्होंने खुद को बेच दिया था।
- विश्वामित्र ने हरिश्चंद्र की कठोर परीक्षा ली थी, लेकिन हरिश्चंद्र अपने सत्यव्रत पर टिके रहे और अंत में अपना पूरा राज्य और मान-सम्मान हासिल कर लिया।
- राजा सगर
- श्रीराम के पूर्वजों में एक राजा सगर थे। राजा सगर के पिता का नाम आसित था। इनकी दो रानियां थीं। विवाह के बाद इन्हें लंबे समय तक संतान नहीं थी।
- ऋषि भृगु ने राजा सगर को वरदान दिया था कि एक रानी को 60 हजार पुत्र होंगे और दूसरी रानी को एक ऐसा पुत्र होगा, जिससे तुम्हारा वंश आगे बढ़ेगा।
- कुछ समय बाद एक रानी के गर्भ से एक बेजान पिंड प्रकट हुआ। बाद में इसी पिंड से 60 हजार बीज मिले और इन बीजों से राजा सगर के 60 हजार पुत्र पैदा हुए।
- दूसरी रानी से असमंज नाम का पुत्र हुआ। एक बार राजा सगर ने अश्वमेघ यज्ञ किया। यज्ञ के घोड़े की रक्षा 60 हजार पुत्र कर रहे थे, लेकिन देवराज इंद्र ने उस घोड़े को चुराकर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया।
- जब यज्ञ का घोड़ा नहीं मिलता तो सभी 60 हजार पुत्र धरती को खोदने लगे। खोदते-खोदते सभी पुत्र कपिल मुनि के आश्रम में पहुंच गए। आश्रम में घोड़े को देखा तो सभी पुत्रों ने कपिल मुनि का अपमान कर दिया।
- कपिल मुनि उस समय ध्यान कर रहे थे, उन्होंने गुस्से में जैसे ही अपनी आंखें खोलीं तो सभी 60 हजार पुत्र वहीं भस्म हो गए।
- असमंज के पुत्र का नाम अंशुमान था। जब ये समाचार राजा सगर को मिला तो सगर ने अंशुमान को कपिल मुनि के पास भेजा। अंशुमान ने कपिल मुनि से प्रार्थना की और पूछा कि सभी 60 हजार वंशजों का उद्धार कैसे होगा।
- कपिल मुनि ने यज्ञ का घोड़ा लौटाते हुए कहा कि तुम्हारा पौत्र स्वर्ग से गंगा को धरती पर लाएगा और गंगा के स्पर्श से सगर के सभी 60 हजार पुत्रों का उद्धार हो जाएगा।
- राजा भगीरथ
- अंशुमान के पुत्र हुए दिलीप और दिलीप के पुत्र हुए भगीरथ। भगीरथ ने अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए गंगा को स्वर्ग से धरती पर लाने के लिए तपस्या की थी। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर गंगा प्रकट हुईं।
- गंगा ने भगीरथ से कहा कि मेरा वेग धरती संभाल नहीं पाएगी और मैं सीधे पाताल में चली जाऊंगी। तुम पहले शिव जी को प्रसन्न करो, वे मेरा वेग शांत करेंगे, इसके बाद ही मैं धरती पर आ पाऊंगी।
- देवी गंगा की बात मानकर भगीरथ ने शिव जी को प्रसन्न किया। बाद में जब गंगा स्वर्ग से धरती पर आईं तो शिव जी ने गंगा को अपनी जटाओं में धारण किया और उसका वेग शांत करके गंगा की धार धरती पर छोड़ी।
- गंगा नदी की वजह से राजा सगर के सभी मृत 60 हजार पुत्रों का उद्धार हो गया और उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति हुई। भगीरथ की वजह से ही गंगा को भगीरथी भी कहते हैं।
- राजा रघु
- सूर्यवंशी राजा दीर्घबाहु की संतान थे राजा रघु। रघु के नाम पर ही श्रीराम को रघुवंशी, रघुवर, रघुवीर, रघुनाथ जैसे नामों से भी जाना जाता है।
- रघु ने राजा बनने से पहले ही एक बार देवराज इंद्र को भी युद्ध में हरा दिया था।
- कुलगुरु वशिष्ठ के कहने पर राजा रघु ने विश्वजीत यज्ञ किया था और अपनी पूरी संपत्ति दान कर दी थी। ऋषि विश्वामित्र के शिष्य कौत्स ने रघु से गुरु दक्षिणा मांगी थी, लेकिन उस समय रघु के पास धन-संपत्ति नहीं थी। रघु का संकल्प था कि उनके यहां से कोई भी खाली हाथ नहीं जाता था।
- विश्वामित्र के शिष्य को गुरु दक्षिणा देने का संकल्प पूरा करने के लिए रघु ने देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर से युद्ध किया और उससे सोना जीत कर गुरु दक्षिणा दी थी।
- दशरथ
- श्रीराम के पिता दशरथ राजा अज के पुत्र थे। दशरथ की तीन रानियां कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी थीं। दशरथ ने संतान पाने के लिए पुत्रकामेष्ठी यज्ञ करवाया था। ये यज्ञ श्रृंगी ऋषि ने किया था।
- यज्ञ की वजह से दशरथ के यहां चार पुत्रों का जन्म हुआ। राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न ।
- जब दशरथ युवा थे, उन समय एक दिन शिकार करते हुए उन्होंने गलती से श्रवण कुमार को तीर मार दिया था।
- श्रवण कुमार के माता-पिता अंधे थे और जब उन्हें अपने पुत्र श्रवण कुमार के मरने की खबर मिली तो उन्होंने दशरथ को भी पुत्र वियोग में मरने का शाप दे दिया था।
- इसी शाप की वजह से राम के वनवास जाने के बाद दशरथ की मृत्यु पुत्र वियोग में हो गई थी।
- सूर्यवंश: कश्यप ऋषि से राम तक…
1. ऋषि कश्यप | 23. मान्धाता | 45. दिलीप (प्रथम) |
2. सूर्य | 24. पुरुकुत्स | 46. भगीरथ |
3. मनु | 25. त्रसदस्यु | 47. श्रुत |
4. इक्ष्वाकु | 26. संभूत | 48. नाभाग |
5. विकुक्षी | 27. अनरण्य | 49. अंबरीश |
6. ककुत्स्थ | 28. त्राशदस्व | 50. सिंधुद्वीप |
7. अनेनस | 29. हर्यस्व (द्वितीय) | 51. अयुतायुस |
8. पृथु | 30. वसुमाता | 52. ऋतुपर्ण |
9. विश्वरास्व | 31. तृधन्वन | 53. सर्वकाम |
10. आर्दा | 32. त्रैयारुण | 54. सुदास |
11. युवनाष्व (प्रथम) | 33. त्रिशंकु | 55. मित्राशा |
12. श्रावस्त | 34. सत्यव्रत | 56. अस्मक |
13. वृहष्व | 35. हरिश्चंद्र | 57. मूलक |
14. कुलष्व | 36. रोहित | 58. सतरथ |
15. दृघाष्व | 37. हरित | 59. अदिविद |
16. प्रमोद | 38. विजय | 60. विश्वसह |
17. हर्यष्व (प्रथम) | 39. रुरूक | 61. दिलीप |
18. निकुंभ | 40. वृक | 62. दीर्घबाहु |
19. सहंताष्व | 41. बाहु | 63. रघु |
20. अकृषाष्व | 42. सगर | 64. अज |
21. प्रसेनजित | 43. असमंज | 65. दशरथ |
22. युवनाष्व | 44. अंशुमान | 66. राम |