
UNITED NEWS OF ASIA. राहुल जायसवाल। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि धर्मांतरण करने वाले व्यक्ति को जनजातीय समुदाय के श्मशान स्थल पर शव दफनाने का अधिकार नहीं होगा। न्यायालय ने निर्देश दिया कि ऐसे व्यक्तियों के शव उनके धर्म के अनुसार चर्च के कब्रिस्तान में ही दफनाए जाएंगे, ताकि जनजातीय रीति-रिवाज और परंपराओं की अखंडता बनी रहे।
मामले की पृष्ठभूमि
यह निर्णय रमेश बघेल बनाम छत्तीसगढ़ राज्य मामले में सुनाया गया, जिसमें अपीलकर्ता ने मृतक के अवशेषों को जनजातीय समुदाय के श्मशान में दफनाने की अनुमति मांगी थी। न्यायालय ने इस मांग को खारिज करते हुए राज्य सरकार को आदेश दिया कि वह मृतक के अंतिम संस्कार की वैकल्पिक व्यवस्था सुनिश्चित करे।
न्यायालय का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में निम्नलिखित निर्देश दिए
1. कब्रिस्तान में वैकल्पिक व्यवस्था: अपीलकर्ता और उसके परिवार को करकापाल गांव के निर्दिष्ट ईसाई कब्रिस्तान में शव दफनाने की अनुमति दी जाए।
2. सरकारी सहायता: राज्य सरकार मृतक के अवशेषों को मेडिकल कॉलेज के शवगृह से ईसाई कब्रिस्तान तक स्थानांतरित करने के लिए सभी आवश्यक सुविधाएं प्रदान करे।
3. पुलिस सुरक्षा: अपीलकर्ता और उसके परिवार को पर्याप्त पुलिस सुरक्षा दी जाए, जिसकी समीक्षा सात दिनों बाद की जाएगी।
4. सार्वजनिक शांति सुनिश्चित करना: राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया कि करकापाल या छिंदवाड़ा गांव में कोई सांप्रदायिक तनाव न उत्पन्न हो।
5. जल्द से जल्द अंतिम संस्कार: मृतक के अंतिम संस्कार की प्रक्रिया को शीघ्र पूरा किया जाए, और अपीलकर्ता परिवार को प्रशासन के साथ सहयोग करने के निर्देश दिए गए।
सामाजिक और कानूनी प्रभाव
यह निर्णय न केवल जनजातीय परंपराओं की सुरक्षा को बल देता है, बल्कि धर्मांतरण के बाद धार्मिक अधिकारों और कर्तव्यों को भी स्पष्ट करता है। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से भविष्य में इसी तरह के मामलों के लिए एक नजीर स्थापित होगी।
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