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एकनाथ शिंदे की बड़ी चिंता सुप्रीम कोर्ट छीन सकता है सीएम पद 2016 के मामले से चिंता को समझें

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कांगेस नेता राहुल गांधी की अयोग्यता और मानहानि से जुड़े कार्यों पर महाराष्ट्र के एकनाथ शिंदे भी फ्रंटफुट पर आकर खेल रहे हैं। वे भाजपा के प्रिय पात्र रहे सावरकर का नाम लेकर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष पर निशाना साधते हुए कहते हैं कि उन्हें एक और मानहानि का मुकदमा दायर हो सकता है। शिंदे महाराष्ट्र में बीजेपी के साथ सरकार चला रहे हैं। वह बीजेपी पर किसी भी हमले को व्यक्तिगत रूप से हुए हमले की तरह ले रहे हैं।

दरअसल, शिंदे भी कानूनी चाबुक की वजह से मार से आशंकित होते हैं। उन्हें इस बात की चिंता सता रही है कि शिंदे बनाम उड़ने की लड़ाई में सुप्रीम कोर्ट उनसे अपनी कुर्सी छोड़ सकता है। और अगर ऐसा हुआ तो उनका सियासी भविष्य कैसा होगा क्योंकि इनसाइडखाने इस बात की भी चर्चा है कि वॉकर ठाकरे और बीजेपी फिर से एक राह पर चल सकते हैं।

शोक, मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता संविधान खंडपीठ ने भाजपा के एकनाथ शिंदे और छत्ते के गुटों के बीच झिलमिलाहट से संबंधित याचिकाओं पर अपना निर्णय सुरक्षित रखा है।

इसके साथ ही महाराष्ट्र में सियासी भी जारी होता है कि क्या एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के सदस्य बने रहेंगे? क्या उडवर्डर ठाकरे के भागीदार के रूप में रिटर्न की सुविधा के साथ यथास्थिति बहाल हो जाती है? क्या शिंदे गुट के विधायक अपरिचितता का सामना करेंगे? क्या सदन को भंग कर दिया जाएगा और जल्द ही चुनाव होंगे? या मौजूदा स्थिति ही बनी रहेगी?

ऐसे में एक सवाल यह भी उठ रहा है कि सुप्रीम कोर्ट किसी को हटा सकता है? एनडीटीवी पर लिखे एक कॉलम में राजनीतिक रणनीतिकार अमिताभ तिवारी ने लिखा है कि आखिरी सवाल का जवाब हां है। अतीत में भी सत्तासीन सुप्रीम कोर्ट पद से हटा दिया गया है।

मामला सात साल पुराना है। 2016 की जुलाई में सुप्रीम कोर्ट ने अरुणाचल प्रदेश के आर्टिकल पुल को पोस्ट से हटा दिया था। वह 145 दिन ही विशेषाधिकार प्राप्त किए। पुल को पद से हटाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राज्य में यथास्थिति बहाल कर दी थी। साथ ही उनके सभी फैसलों को गलत करार दिया था।

हालांकि, महाराष्ट्र का मामला बहुत ही पेचीदा और पेचिदा है, जो संविधान की दसवीं अनुसूची से संबंधित है, जो दल बदल से संबंधित है, फिर से चर्चा में आ गया है। मामले में शिंदे खेमे के रूप में बदली या किसी अन्य पार्टी में विलय नहीं किया और वास्तविक बीजेपी होने का दावा किया।

शिंदे गुट ने नियामक भगत सिंह कोश्यारी की मदद से (जैसा कि रेडियो समूह द्वारा आरोप लगाया गया था) विश्वास मत परीक्षण में भाजपा के साथ मिलकर बहुमत हासिल करने में सुनिश्चित हासिल करने की और अपना वक्ता नियुक्त कर लिया। मुख्य न्यायाधीश, डीवाई चंद्रचूड़ ने दोनों गुटों और राज्यपाल द्वारा रखी गई प्रमुख याचिकाओं पर सवाल उठाए हैं।

माना जा रहा है कि खंडपीठ का फैसला इन सीमित पहलुओं पर टिका हो सकता है। हालांकि, सीजेआई ने एयरलाइंस गुट के सामने यह सवाल भी उठाया है कि आपने विश्वास मत परीक्षण से पहले ही इस्तीफ़ा क्यों दिया? कोर्ट की नजर में ठाकरे का यह बड़ा पॉलिटिकल ब्लंडर है।

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