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Sukma News: मनीष कुंजाम के ठिकानों पर छापेमारी की छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने की कड़ी निंदा, कहा:–यह आदिवासी नेता को बदनाम करने और लोकतांत्रिक आंदोलनों को कुचलने की साजिश है।

UNITED NEWS OF ASIA. कृष्णा नायक, सुकमा । छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने सुकमा जिले में तेंदूपत्ता बोनस वितरण में भ्रष्टाचार के एक मामले में आदिवासी नेता और पूर्व भाकपा विधायक मनीष कुंजाम के ठिकानों पर एसीबी-ईओडब्ल्यू द्वारा की गई संयुक्त छापेमारी की कड़ी निंदा की है। आंदोलन ने इसे न केवल मनीष कुंजाम को बदनाम करने की कोशिश बताया है, बल्कि इसे प्राकृतिक संसाधनों की कॉर्पोरेट लूट के खिलाफ चल रहे लोकतांत्रिक आंदोलनों को कुचलने की एक सुनियोजित साजिश के रूप में देखा है।

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने कहा है कि भ्रष्टाचार का खुलासा करने और उसकी शिकायत करने वाले व्यक्ति के विरुद्ध ही इस तरह की कार्रवाई यह दर्शाती है कि यह पूरा घोटाला राज्य सरकार के संरक्षण में हुआ है। अब जबकि मामला उजागर हो चुका है, तो भ्रष्टाचारियों को बचाने और शिकायतकर्ता को प्रताड़ित करने का प्रयास किया जा रहा है।

ज्ञातव्य है कि भाकपा नेता मनीष कुंजाम ने इस वर्ष की शुरुआत में सुकमा जिले में तेंदूपत्ता बोनस वितरण में ₹3.62 करोड़ के भ्रष्टाचार को ठोस सबूतों के साथ उजागर किया था, जिसके चलते सुकमा कलेक्टर को संबंधित वन मंडलाधिकारी को निलंबित करने के लिए बाध्य होना पड़ा था। लेकिन दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई करने की बजाय अब मनीष कुंजाम के निवास एवं अन्य ठिकानों पर छापेमारी की गई है, जिसका राजनीतिक और सामाजिक हलकों में व्यापक विरोध हो रहा है। छापेमारी में कोई भी आपत्तिजनक सामग्री न मिलने के बावजूद उनके दो मोबाइल फोन और एक निजी डायरी जब्त की गई है।

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के नेताओं ने अपने वक्तव्य में कहा है कि यह जब्ती पूर्णतः अवैध है और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों तथा सीबीआई के दिशा-निर्देशों का स्पष्ट उल्लंघन है, क्योंकि मनीष कुंजाम को जब्त मोबाइल फोनों की कोई हैश वैल्यू नहीं दी गई है। इससे यह आशंका प्रबल होती है कि पुलिस इन मोबाइलों के साथ छेड़छाड़ कर फर्जी सामग्री डालने की कोशिश कर सकती है।

सीबीए ने अपने बयान में बस्तर में प्राकृतिक संसाधनों की लूट के खिलाफ मनीष कुंजाम द्वारा वर्षों से चलाए जा रहे संघर्षों को रेखांकित करते हुए कहा है कि पूर्ववर्ती भाजपा शासन के दौरान सलवा जुडूम के खिलाफ अभियान में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है, जिसके परिणामस्वरूप सुप्रीम कोर्ट ने उस राज्य प्रायोजित अभियान को अवैध घोषित किया था। टाटा कंपनी द्वारा लोहंडीगुड़ा क्षेत्र में आदिवासियों की ज़मीन हड़पने के खिलाफ हुए आंदोलन में भी उनका नेतृत्व निर्णायक रहा, जिसके चलते टाटा को उस क्षेत्र से पीछे हटना पड़ा। इसके अलावा, कांग्रेस शासनकाल में रावघाट और नंदराज की पहाड़ियों को बचाने के आंदोलन में भी वे अग्रणी भूमिका में रहे। हाल ही में बस्तर की तीन लौह अयस्क खदानों को कॉर्पोरेट घरानों को सौंपे जाने के खिलाफ भी वे विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।

सीबीए का मानना है कि मनीष कुंजाम को निशाना बनाकर वर्तमान भाजपा सरकार जल, जंगल, जमीन, खनिज और अन्य प्राकृतिक संसाधनों की लूट के खिलाफ चल रहे शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक आंदोलनों को दबाना चाहती है।

अंततः छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने वामपंथी विचारधारा से जुड़े नेताओं को डराने-धमकाने के लिए जांच एजेंसियों के दुरुपयोग की आलोचना की है और राज्य सरकार से तेंदूपत्ता घोटाले की निष्पक्ष जांच की मांग की है। साथ ही, प्रदेश की आम जनता से अपील की है कि वे छत्तीसगढ़ को कॉर्पोरेट लूट से बचाने के संघर्ष में शामिल कार्यकर्ताओं के खिलाफ हो रहे दमन के विरुद्ध खुलकर आवाज उठाएं।

[जारीकर्ता: आलोक शुक्ला, संजय पराते, विजय भाई, सुदेश टेकाम, रमाकांत बंजारे, शालिनी गेरा एवं सीबीए से संबद्ध संगठन – जिला किसान संघ, राजनांदगांव; छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा (मजदूर कार्यकर्ता समिति); अखिल भारतीय आदिवासी महासभा; हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति (कोरबा, सरगुजा); ग्राम सभा संघ, जिला बस्तर; जन स्वास्थ्य कर्मचारी यूनियन; भारत जन आंदोलन; माटी (कांकेर); अखिल भारतीय किसान सभा (छत्तीसगढ़ राज्य समिति); छत्तीसगढ़ किसान सभा; किसान संघर्ष समिति (कुरुद); आदिवासी महासभा (बस्तर); दलित-आदिवासी मंच (सोनाखान); गाँव गणराज्य अभियान (सरगुजा); आदिवासी जन वन अधिकार मंच (कांकेर); सफाई कामगार यूनियन; मेहनतकश आवास अधिकार संघ (रायपुर); जशपुर जिला संघर्ष समिति; राष्ट्रीय आदिवासी विकास परिषद (छत्तीसगढ़ इकाई, रायपुर); जशपुर विकास समिति; रिछारिया कैंपेन; भूमि बचाओ संघर्ष समिति

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