
UNITED NEWS OF ASIA. लखनऊ। इटावा में कथावाचक के साथ हुए दुर्व्यवहार के मामले ने अब धार्मिक और राजनीतिक दोनों ही आयाम पकड़ लिए हैं। ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने इस मुद्दे पर बयान देते हुए कहा कि सार्वजनिक रूप से कथा कहने का अधिकार शास्त्रों के अनुसार केवल ब्राह्मणों को है। उनका मानना है कि अन्य जातियों को कथा कहने का अधिकार नहीं है, क्योंकि शास्त्रों की परंपरा में केवल ब्राह्मण ही योग्य माने गए हैं।
प्रकरण का मूल विवाद
मामला दो दिन पूर्व इटावा का है, जहां एक अन्य पिछड़ी जाति (OBC) से आने वाले कथावाचक के साथ कथित तौर पर दुर्व्यवहार किया गया। रिपोर्ट्स के अनुसार, कथावाचक पर महिलाओं से अभद्रता का आरोप लगा, जिसके बाद सामूहिक रूप से उनका मुंडन करवाया गया। इस घटना की सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली।
अखिलेश यादव ने जताया विरोध
इस मामले पर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सख्त प्रतिक्रिया देते हुए कहा,
“हमारा संविधान जातिगत भेदभाव की अनुमति नहीं देता। यह व्यक्ति की गरिमा और मौलिक अधिकारों के खिलाफ है। संबंधित सभी दोषियों की तत्काल गिरफ्तारी होनी चाहिए।”
उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि यदि तीन दिनों के भीतर कार्रवाई नहीं हुई, तो पीडीए (पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक) के मान-सम्मान की रक्षा हेतु बड़ा आंदोलन शुरू किया जाएगा।
बयान से बढ़ी बहस, धार्मिक बनाम संवैधानिक दृष्टिकोण
शंकराचार्य के बयान से विवाद को नया मोड़ मिल गया है। एक ओर यह शास्त्रीय परंपरा और धर्माचार्य की व्याख्या मानी जा रही है, तो दूसरी ओर संविधान की मूल भावना— समानता और स्वतंत्रता— के साथ इसके टकराव को लेकर गंभीर सवाल उठने लगे हैं।
विरोधी दलों ने इसे जातिगत भेदभाव को वैधानिक ठहराने का प्रयास बताया है, जबकि समर्थक इसे धार्मिक परंपरा की रक्षा के रूप में देख रहे हैं। इस बयान के बाद आने वाले दिनों में राजनीतिक हलचल और सामाजिक बहस और तेज़ होना तय है।
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