
विशेष ऑप्स 1.5 समीक्षा: भारत में जासूसी दुनिया का इतिहास बहुत पुराना है। अक्सर ऐसा होता है कि ये जासूस सर्गुण संपन्न, सभी प्रकार की कलाओं में दक्ष और जांबाज होता है जो चुटकियों में हर समस्या का हल ढूंढ लेता है। अकेले ही दस लोगों से मिल जाता है और बिना गोली या चोट खाये दुश्मन के सारे मसूबों पर पानी फेर के वो अपनी मकसद पाने में पहुंच जाता है। इंटरनेशनल लेवल की कॉन्सपिरेसी को बस यूं ही दिल लगा देता है, बीच बीच में रोमांस के लिए भी जगह ढूंढ लेता है। दुर्भाग्य से जब आप किसी वास्तविक जासूस की आत्मकथा होते हैं तो आपको एहसास होता है कि जासूसी करना आसान है, लेकिन सबसे कठिन कामों में से एक होता है। डिज़्नी+ हॉटस्टार जारी पर ‘स्पेशल ऑप्स 1.5’ आपको भारत में जासूसों की परिस्थिती से अवगत है और 4 एपिसोड की ये सीरीज़ देखने के बाद एहसास होता है कि नीरज पांडेय की रुचि हुई इस दुनिया में कोई काम आसानी से नहीं होता और जासूसों पर फिल्म मेकर्स को एक बार नीरज की फिल्में और वेब सीरीज देखते हुए फिल्म बनानी चाहिए।
पिछले साल निर्देशक नीरज पांडेय और शिवम् नायर ने स्पेशल ऑप्स सीजन 1 प्रस्तुत किया था जिसमें रॉ के एजेंट हारे सिंह (केके मेनन) को संसद हमले में शामिल एक गुमनाम चेहरे को ढूंढते हुए दिखाया गया था। हिम्मत, उनकी टीम और दिल्ली पुलिस के निरीक्षक अब्बा शेख (विनय पाठक) कैसे उस आतंकवादी को ढूंढ निकालती है और सरकारी सिस्टम से जूझते हुए, कभी-कभी काली, कभी रिश्वत और कभी लड़कियां का इस्तेमाल करते हुए एक बड़े शाडयंत्र का मुश्किल से खात्मा करती है . स्पेशल ऑप्स 1.5 उस कहानी का मुख्य चरित्र है जो वीर सिंह की हिम्मत सिंह बनने की कहानी को दर्शाता है। ये कहानी अब्बा शेख के नजरिए से तय होती है और फ्लैशबैक और फ्लैश की मदद से बग राष्ट्रभक्ति के भ्रम के लिए अपने लक्ष्य तक पहुंच सकते हैं, एक नए ऑपरेशन की तैयारी खत्म हो गई है।
सीरीज़ का पहला सीज़न मैजिक था। ये ड्योढ़ा सीजन और भी है हैरान करने वाला। केके मेनन को प्रोस्थेटिक्स, मेकअप और स्पेशल विग्स की मदद से युवा दिखाया गया है कि क्यों कहानी उनके करियर की शुरुआत के दिनों में है। केके कभी-कभी अपनी शख्सियत को सत्ता पर हावी होने नहीं देता। वो गलतियां करते हैं, चोट खाते हैं, दुश्मन के कब्ज़े से भाग कर अपनी जान बचाते हैं और उनके पास कोई जादुई शक्ति भी नहीं है। अक्षर को लिखने वाले नीरज, बेनजीर अली फिदा और दीपक किंगरानी ने पहले और इस ड्योढ़े सीजन में लॉजिक को सर्वोपरि रखा है। कुल सागर दो चार सीन ऐसे हैं जो फिल्मी लेते हैं लेकिन उनके अलावा जासूसों को सुपर ह्यूमन नहीं बनाया गया है। ये बात सभी जानते हैं कि सरकार के जासूसों के लिए काफी गुप्त फण्ड चला जाता है लेकिन हिम्मत सिंह ऐसा कोई काम नहीं करता जो उन्हें हाई-टेक प्रतिष्ठान या आसानी से मिलने वाले स्थानीय संपर्क की मदद से करता है।
विनय पाठक अभिनय के गिरगिट हैं। अपने ही अंदाज को इतना दफा हुए कभी वो घोंचू शख्स से अव्वल दर्ज के चतुर पुलिस वाले बन जाते हैं कि यकीन नहीं होता है। इस बार कहानी विनय सुन रहे हैं और इसलिए कहानी का नजरिया और विश्वसनीय है। छोटी अर्से के बाद आफताब शिवदासानी नजर आते हैं। अच्छा काम किया है और उनकी क्यूट बॉय इमेज से मुक्ति नज़र आ रही है। उन्हें और काम करना चाहिए। परमीत से तय करने के लिए अभिनेता कम काम करते हैं जबकि शक्ल और कद के लिए वे काफी प्रभावशाली हैं। उनके साथ काली प्रसाद मुखर्जी भी अपनी एक्सप्रेशन से आपको हंसा ही देते हैं। इस बार जिन दो नए लोगों ने प्रभावित किया है वो हैं वो करिश्मा की पहचान में ऐश्वर्या सुष्मिता (दो विश्व सुंदरियों के नाम पर उनका नाम अजूबा है लेकिन उनका जन्म ईश 1994 की है जब ऐश्वर्या और सुष्मिता दोनों ने अपना खिताब जीता था, इसलिए ये नाम चुना हो) और नवल कमोडोर चिंतामणि शर्मा की भूमिका में विजय विक्रम सिंह। ऐश्वर्य का रोल लॉक है और उनके किंगफिशर मॉडल होने का भरपूर लाभ उठाया गया है। विजय विक्रम ने हनी ट्रैप में टैटू गुच्छे से बहुत अच्छे चेहरे पर प्रतिबिंबित किए हैं।
सीरीज में दो तीन सीन दिए गए हैं। एक तो नीरज पांडेय की हर कृति में होता है। कहानी के स्लो मोशन में चलते हुए लम्बे शॉट जो पता नहीं क्या प्रतिबिंबना चाहते हैं। दूसरा था हिम्मत सिंह और मनिंदर सिंह (आदिल खान) के बीच के सीन। आदिल की पर्सनालाइट तो अच्छी है लेकिन गिरफ्तार हो गई है और वो मुफ्त की डायलॉगबाज़ी कर के सीन का मज़ा किरकिरा दे देते हैं। एक और सीन जहां केके मेनन, उनके पुराने सहपाठी आफताब के घर जा कर उनकी बीवी (गौतमी) से मिलते हैं। ये सीन और बेहतर हो सकता है क्योंकि ये राख में दबे हुए प्यार की बात कहते हैं, क्योंकि आगे हिम्मत अपनी सहेली की विधवा गौतमी के साथ शादी कर ही लेती हैं।
सीरीज छोटी है। अच्छी बनी है। नीरज और शिवम् के साथ लेखक मंडली इसकी सफलता के लिए जिम्मेदार हैं। सुधीर पलसाने और अरविंद सिंह की सिनेमेटोग्राफी अच्छी है। कीव (यूक्रेन) के शॉट्स बहुत अच्छे होते हैं। रफ़्तार भी तेज़ है, ज़्यादा थिंक की गुंजाईश नहीं रहती। आप सीन में और सीरीज में डूब के देख रहे हैं और अचानक एक नया झटका लगता है। एक अच्छा स्पाय रोमांच की कल्पना अप्रत्याशित घटना है। विशेष ऑप्स 1.5 इस बात में संभव रहता है। जरूर देखिये। एक आम हिंदी फिल्म बहुत तेज है। वीकेंड पर इंस्टाल किया जा सकता है।
विस्तृत रेटिंग
कहानी | : | |
स्क्रिनप्ल | : | |
डायरेक्शन | : | |
संगीत | : |
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प्रथम प्रकाशित : 19 नवंबर, 2021, 14:57 IST
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