अपने जीवन भर का बना हुआ सब कुछ पीछे छोड़ दिया जाता है। शांति एक दूसरे के खिलाफ रहने वाले हमारे भाई-बहनों को एक दूसरे के साथ होने से बहुत प्रभावित करती है।
कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने बुधवार को शोक संदेश में कहा कि उपराष्ट्रपति राष्ट्र की अंतरात्मा पर गहरा आघात है। उन्होंने प्रदेश के लोगों से शांति एवं स्मारक की अपील की और आशा की कि लोकतंत्र के लोग इस दुखद सेंगे। कांग्रेस मंडल की प्रमुख सोनिया गांधी ने एक वीडियो संदेश में कहा, ”मणिपुर के प्रिय भाइयों और बहनों, पिछले लगभग 50 दिनों से हम चांदनी में एक बड़ी मानव त्रासदी देख रहे हैं। इस हिंसा ने आपके राज्य में हजारों लोगों की जान ले ली।” उन्होंने कहा कि इस घटना ने राष्ट्र की अंतरात्मा पर गहरा आघात किया है। उनका कहना था, ”मेरी उन सभी के प्रति गहरी संवेदनाओं के समर्थकों ने इस हिंसा को जेल में डाल दिया है।”
मुझे यह देखकर बेहद दुख होता है कि लोग उस जगह को छोड़ने के लिए मजबूर हैं जिसे वे अपना घर कहते हैं। अपने जीवन भर का बना हुआ सब कुछ पीछे छोड़ दिया जाता है। शांति एक-दूसरे के साथ रहने वाले हमारे भाई-बहनों को एक-दूसरे के साथ होने का दृश्य बहुत दिखता है।”सोनिया गांधी के अनुसार, ”मणिपुर के इतिहास में विभिन्न जाति, धर्म और पृष्ठभूमि के लोगों को गले की शक्ति दी गई है। क्षमता है. यह एक विविध समाज की संभावनाओं का प्रमाण है। भाईचारे की भावना को जीवित रखने के लिए विश्वास और भाईचारे की जरूरत है, वहीं अपमान और विभाजन की आग को भड़काने के लिए सिर्फ एक गलत कदम की जरूरत है।” उन्होंने कहा, ”आज हम एक विरोधाभासी मोड़ पर हैं।किसी भी रास्ते पर हमारा चुनाव एक ऐसे भविष्य को आकार देगा जो हमारे बच्चों की विरासत में मिलेगा।
मैं, विशेष रूप से, अपनी बहादुर विरासत से, यह अपील करता हूं कि वे इस खूबसूरत धरती पर शांति और सौहार्द का नेतृत्व करें।” उन्होंने कहा, ”एक मां के रूप में मैं आपके दर्द को समझता हूं। मैं आप सभी से यह निवेदन करता हूं कि अपनी अंतरात्मा की आवाज को पहचानें। मुझसे उम्मीद है कि आने वाले समय में हम मित्रता विश्वास का पुनर्निर्माण करेंगे।” मुझे लगता है कि हम सभी ने मिलकर इस एग्जाम की घड़ी को भी पार कर लिया है।” नेताओं में मैइती और कुकी के बीच एक महीने पहले हुई भीषण हिंसा में 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई है। राज्य में जनजाति (एसटी) का स्तर देने की मेइती समुदाय की मांग के विरोध में तीन मई को पर्वतीय नेटवर्क में ‘आदिवासी यूनिटीता’ मार्च के आयोजन के बाद हिंसक झड़पें शुरू हो गईं।
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