
<दिव दिर ="ऑटो" शैली ="टेक्स्ट-एलाइन: जस्टिफ़ाई करें;"HimachaL News: हिमाचल की आर्थिक स्थिति पर आज-कल प्रदेश भर में चर्चा जोरों पर है, लेकिन आरोप-प्रत्यारोप के दौर के बीच हिमाचल की अर्थव्यवस्था में बड़ा हिस्सा रखने वाले सेब का जिक्र पीछे छूटता हुआ नजर आ रहा है। हिमाचल को भारत का ‘फ्रूट आर्किटेक्चर’ कहा जाता है। उत्पाद के होश से देखें, तो प्रदेश में पहाड़ के कुल उत्पाद में सेब की 83.14 फीसदी की झलक है। यह आंखों के सामने सेब उत्पाद का 28.55 प्रतिशत है। उतारना, प्रदेश की उद्योगों में सेब का अहम योगदान रहा है, लेकिन मौसम बदलना सेब के भविष्य की राह बड़ी चुनौती है। हिमाचल प्रदेश में सेब के उत्पादन की शुरुआत बेहद दिलचस्प है।
<एच3 दिर="ऑटो" शैली ="टेक्स्ट-एलाइन: जस्टिफ़ाई करें;">अमेरिका से भारत चैनल
साल 1904 में अमेरिका के फिलाडेल्फिया में पैदा हुआ सैम्युअल इवांस स्टोक्स भारत आया। इसके बाद फेयरेस्ट माउंटेन की वादियां उन्हें ऐसी पसंद आईं कि वे रिकॉर्ड्स के चक्कर में चले गए। हिमाचल में कुष्ठ रोग का इलाज करते-करते देवभूमि में वे अपना मन बैठे हुए हैं। साल 1910 में उन्होंने संचार के कोटगढ़ में बसने का फैसला किया। उन्होंने कोटगढ़ में ही शादी भी कर ली। आर्य समाज के रास्ते सनातन का हिस्सा बन गए और सत्यानंद स्टोक्स हो गए। बताया जाता है कि सत्यानंद स्टोक्स ने हिमाचल में सेब के लिए अनुकूल पाया, तो खाली पेन में भरकर अमेरिका से सेब के बीज आए और हिमाचल में सेब रोपण की शुरुआत की। उन्हें हिमाचल प्रदेश के लोगों को सेब की तोड़ने के लिए प्रेरित करने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी। उस वक्त तक हिमाचल प्रदेश के लोग केवल व्हीट, धान और मक्की जैसी सफलता ही परिणाम देते थे।
लाखों के सेब के पीछे करोड़ों की मेहनत
अमेरिका से हिमाचल की यात्रा तय करने वाले सेब की लाली, बागवानों के कठिन परिश्रम का परिणाम है। साल भर की मेहनत के बाद ही पेड़ की डालियों पर लाल सेब की चमक नजर आती है। साल भर सूट पर काम चलता रहता है। दिसंबर-जनवरी की ठंड में संयंत्रों की छंट-छांट हुई है। बस के बाद कीट और फंगस से बचाने की जद्दोजहद चलती रहती है। फसल आने पर भी मुश्किलें कम नहीं होंगी। पेड़ की टहनी से फल का फल सेब तक पहुंचने में एक लंबा और कठिन रास्ता तय करना है। इसके बाद सेब उपभोक्ता तक पहुंच जाता है।
बिगड़ते पर्यावरण ने आवर्धन बागवानों की सिरदर्दी
सेब साल में एक बार होने वाली असफलता है। आर्थिक रूप से सेब पर स्थायी रूप से लोग अपने साल भर के व्यय राशि से संबंधित हैं। इसी तरह अच्छी-खासी गिरावट बहुत जरूरी है, लेकिन मौसम परिवर्तन बागवानों की राह का सबसे बड़ा रोड़ा है। बे-मौसम बरसात और ते घट चिलिंग आवर ने सेब बागवानों की चिंता बढ़ा दी है। युवा बागवान मोहित शर्मा देख रहे हैं कि मौसम परिवर्तन की वजह से पारंपरिक खेती करना मुश्किल हो गया है। ऐसे में एचडीपी यानी सघन खेती की दिशा में वृद्धि का एक उपाय नजर आता है।
बदलते मौसम ने सेब के लिए भी वैसा ही बढ़ा दिया है। ऐसे में बागवान भी रोपण में नई तकनीकों का प्रयोग कर रहे हैं। पुराने विशाल वृक्षों की जगह अब छोटे पेड़ ले जा रहे हैं। आज मौसम के चलते पारंपरिक डंडे पर उत्पाद और गुणवत्ता को बनाए रखना मुश्किल हो गया है। आज प्रगतिशील बागवान वनोनल रूटस्टॉक और एचडीपी में सेब रोपण का भविष्य देख रहे हैं।
नई बागवानी की ओर बढ़ रहा हिमाचल
बागवान मोहित शर्मा ने वनोनल रूट स्टॉक से हो रही रोपण को समझाते हुए कहा कि अब बीज की बजाए क्लोन पेड़ तैयार किए जा रहे हैं। यह पेड़ पुराने दशकों में अधिक गुणवत्ता वाले सेब देने में सक्षम हैं। ऐसे में धीरे-धीरे लोग सेब की खेती में अब इस ओर बढ़ रहे हैं।













