
शरद यादव
शरद यादव पांचवीं सदी में 1974 में उपचुनाव के जरिए भी पहुंचे थे। यह उपचुनाव मध्य प्रदेश की जबलपुर सीट से जीता था। जो सुप्रसिद्ध हिंदी सेवी सेठ गोविंददास के निधन से खाली हुई थी। यह उपचुनाव कई तरह से बेहद महत्वपूर्ण था। सेठ गोविंददास इस सीट पर कांग्रेस के टिकट पर 1952 से लगातार जीतते आ रहे थे। जिस समय यह उपचुनाव हुआ उस समय जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में राष्ट्रव्यापी छात्र आंदोलन पूरे चरम पर था। शरद यादव उस समय जबलपुर विश्वविद्यालय के छात्र संघ के अध्यक्ष और आंदोलन के अधीन थे, आंतरिक सुरक्षा कानून के तहत जेल में बंद थे।
जेल में लाइव उपचुनाव
जयप्रकाश नारायण की पहल पर उन्हें सभी विरोधी दलों की ओर से जनता के लिए उम्मीदवार बनाया गया। वे जेल में रहकर ही चुनाव लड़ेंगे और जीते रहेंगे। उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर लड़ाई सेठ गोविंद दास के बेटे रविमोहन दास को हराया। हालांकि वे ज्यादा दिन तक इस सभा के सदस्य नहीं रहे। 1976 में घायल के दौरान गवाह प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने जब रोड़े के तरीके से एक दशक की अवधि पांच से छह साल बढ़ाई तो उनके इस कदम के विरोध में शरद यादव ने समाजवादी नेता मधुर लिमये के साथ जेल में रहते हुए ही आज की सदस्यता से इस्तीफा दिया दे दिया। माना जाता है कि जबलपुर का जनता उम्मीदवार का यह प्रयोग ही आगे चलकर 1977 में उस जनता पार्टी के लिए गठित की प्रेरणा बना। जिन्होंने सत्ता पर तीन दशक पुराने कांग्रेस का एकाधिकार समाप्त करने का ऐतिहासिक कार्य किया।



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