
UNITED NEWS OF ASIA. नई दिल्ली। गोधरा कांड के बाद भड़के दंगों से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में सुप्रीम कोर्ट ने छह आरोपियों को बरी कर दिया है। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि केवल घटनास्थल पर मौजूद होने या वहां से गिरफ्तार होने को गैरकानूनी भीड़ का हिस्सा मानना उचित नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को पलटा
जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने गुजरात हाईकोर्ट के 2016 के उस आदेश को अस्वीकार कर दिया, जिसमें निचली अदालत द्वारा बरी किए गए छह लोगों को फिर से दोषी करार दिया गया था। बेंच ने कहा कि साक्ष्यों के अभाव में किसी को दोषी ठहराना न्यायसंगत नहीं है।
क्या था मामला?
28 फरवरी 2002 को गुजरात के वडोद गांव में एक भीड़ ने कब्रिस्तान और मस्जिद को घेर लिया था। पुलिस ने मौके से छह लोगों को गिरफ्तार किया था। निचली अदालत ने 2003 में सभी 19 आरोपियों को निर्दोष करार दिया था, लेकिन हाईकोर्ट ने इनमें से छह को दोषी ठहराया था।
कोर्ट ने कहा- निर्दोष को अपराधी नहीं ठहरा सकते
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जब किसी स्थान पर दंगा या झड़प होती है, तो वहां कई निर्दोष लोग भी मौजूद हो सकते हैं। ऐसे में केवल मौजूदगी को आधार बनाकर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। न्यायालय का यह भी कहना था कि अगर अभियुक्त पर प्रत्यक्ष हिंसा या विध्वंसक गतिविधि का आरोप नहीं है, तो उसे गैरकानूनी भीड़ का हिस्सा नहीं माना जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने सामूहिक हिंसा के मामलों में न्यायिक सतर्कता की आवश्यकता को दोहराया है। अदालत ने साफ कहा कि किसी को दोषी ठहराने के लिए ठोस सबूत जरूरी हैं, केवल संदेह के आधार पर किसी की स्वतंत्रता नहीं छीनी जा सकती।
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