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कॉलेज से पढ़कर निकले दोस्तों की वो फिल्म, जिसमें लाश का भी एक चरित्र था, आज भी मरीद है सागरना

कुंदन शाह, ओम पुरी, रवि बासवानी, नसीरुद्दीन शाह, पंकज कपूर, विधु विनोद चोपड़ा, सतीश शाह…फिल्मी दुनिया से जुड़े इन सभी नामों से आप वाकिफ होंगे। इन सभी की मिली- जुली जोर आजिश ने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को एक ऐसा नायाब तोहफा बख्शा है, जिसका नाम सुनकर आज भी लोग कहकहे लगाने को मजबूर हो जाते हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं 80 के दशक की बेजोड़ फिल्म’जाने भी दो यारो‘ की। फिल्म्स एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट, पांच से पढ़े निकले कुंदन शाह और उनके चंद दोस्त फिल्मी दुनिया में आज ही की मशक्कत कर रहे थे। सबने साथ काम पैसे में ऐसी शानदार फिल्म बनाई है, जिसका सब्जेक्ट आज भी मौजूम है।

‘जाने भी दो यारो’ सरकारी भ्रष्टाचार की कलंक-कथा परखने वाली फिल्म है। आज भी इसे देखने के बाद लोगों को पेट पकड़-पकड़कर हंसने की वजह है। दीगर बात यह है कि कुंदन शाह के पास इस फिल्म को बनाने के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए उन्होंने अपने प्रोजेक्ट की मदद के लिए सरकार का ही सहयोग लिया। नेशनल फिल्म एक्सपोजर कॉरपोरेशन यानी एनएफडीसी, जो फिल्म निर्माण के लिए रोक लगाती है, उसकी मदद से 7 लाख रुपये जुटाए और ऐसी नायाब फिल्म बना दी।

‘गांधी’ को छोड़कर अपनी फिल्म बनाई
कुंदन शाह ने जब तक ‘जाने भी…’ शुरू नहीं किया था, उस समय उनके पास रिचर्ड एटनबरो की मशहूर फिल्म ‘गांधी’ में काम करने का ऑफर भी था। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार इसके लिए वे एक लाख रुपए भी मिलने वाले थे। लेकिन शाह ने दोस्तों के साथ मिलकर इस फिल्म को बनाने का फैसला किया। कहानी उनके दोस्तों की थी, जो फोटो स्टूडियो के तजुर्बे से निकली थी। शाह के दोस्त और दिल्ली के जाने-माने थिएटरकर्मी रंजीत कपूर ने ऐसी ही कहानी को फिल्मी-जामा पहनाने का बीड़ा उठाया है। कलाकार नए इसलिए फिर नहीं गए, क्योंकि तब के रूप में स्थापित अभिनेताओं के लिए फिल्म का बजट ही नहीं था। सबसे ज्यादा लाइसेंस नसीरुद्दीन शाह को दिया गया, 15000 रुपए। बाकी किसी को 3000 तो किसी को 5000 रुपए।

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सतीश शाह और लाश का कनेक्शन
‘जाने भी दो यारो’ की कहानी बिल्डिंग माफिया, सरकारी अधिकारी और नेताओं के भ्रष्ट कनेक्शन पर आधारित है। मशहूर हास्य अभिनेता सतीश शाह इसमें सरकारी अधिकारी की भूमिका निभाते हैं, जिसकी फिल्म की शुरुआत में ही मौत हो जाती है। इसी दौरान कुछ ऐसी घटनाएं घटती हैं, ग्लैमर लेकर भ्रष्टाचार की ये कहानी आगे बढ़ती जा रही है। यही कहानी का अहम सबूत है वह लाश, जिसे एक चरित्र के रूप में सतीश शाह ने ढाला है। शुरुआत से लेकर आखिरी तक, कभी बंद तो कभी खुले गड्ढों में या फिर महाभारत वाले उस सबसे चर्चित दृश्य में, द्रौपदी के वेश में लाश को अलग-अलग पहनावा मंच पर चढ़ता है, सतीश शाह ने जादू का आभास दिया है।

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महाभारत के सीन, मैजिक के डायलॉगलॉग
कुंदन शाह की कल्ट-फिल्म ‘जाने भी दो यारो’ में शुरू से ही सामाजिक-राजनीतिक प्रकृति पर आधारित है। मगर फिल्म के क्लाइमेक्स में महाभारत ड्रामा के मंचन के हास्य के दौरान जो गुबार फूटता है, वह अपने आप में अद्भुत है। इस सीन में सभी कलाकारों की अपीयरेंस, उनके डायलॉग, बॉडी मूवमेंट, आपको सब कुछ अच्छा लगेगा। फिल्म का डायलॉग ‘मैंने द्रौपदी के चीरहरण का कोको ड्रॉप कर दिया है’ या ‘ओए धृत के पुत्तर…’ या फिर ‘शांति गदाधारी भीम शांत…’ जैसे संवाद आपको हंसने पर मजबूर कर देंगे, साथ ही सामाजिक विदरूपता पर विचार का संदेश भी।

टैग: एंटरटेनमेंट थ्रोबैक, नसीरुद्दीन शाह

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Saurabh Namdev

| PR Creative & Writer | Ex. Technical Consultant Govt of CG | Influencer | Web developer
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