राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत) के प्रमुख मोहन भागवत ने बुधवार को कहा कि समाज में ‘असमानता’ अब भी मौजूद है क्योंकि लोगों ने करीब 2,000 साल तक अधर्म को ही धर्म समझा था। परिवार, संपत्ति या शारीरिक अस्पष्टता का झूठा गुमान लोगों को देता है। इस तरह के अहम में पड़ने वाले लोग खुद की तुलना में श्रेष्ठतर समझते हैं। भागवत बीएसी स्वामीनारायण संप्रदाय के प्रमुख स्वामी शताब्दी के हिस्से के तहत यहां 600 एकड़ से अधिक क्षेत्र में स्थापित प्रमुख स्वामी महाराज नगर में बोल रहे थे।
प्रमुख स्वामी का 95 वर्ष की आयु में अगस्त 2016 में निधन हो गया था। आरएसएस प्रमुख ने अपने जुड़वाँ लोगों से कहा कि सामाजिक रूप से अब भी मौजूद है क्योंकि हमने लगभग 2,000 वर्षों तक अधर्म को धर्म समझा था। धर्म में यह अवधारणा नहीं होती कि कौन श्रेष्ठ है और कौन दंश… उपदेश देने के बजाय लोगों को अपने दैनिक जीवन में व्यवहार में लाना चाहिए, जैसा कि प्रमुख स्वामी महाराज ने किया था। किसी के परिवार, संपत्ति या भौतिक चेहरे के बारे में झूठे अभिमान लोगों को यह सोचने के लिए मजबूर करता है कि वे अन्य की तुलना में श्रेष्ठ हैं।
भागवत (आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत) ने कहा कि सामाजिक शाश्वत धर्म का परिणाम नहीं है। हमारे संतों ने भी यह बात कही है। धार्मिक ग्रंथ भी इस अवधारणा का समर्थन नहीं करते हैं। हमें संतों का निवास करने की आवश्यकता है। हमें अपना फेयर शान, लायब्रेरी अभिमान से निपटने की जरूरत है क्योंकि ये अवगुण हमें अपनी आदतों को बदलते हुए देखते हैं। उन्हीं पर संतों का मार्गदर्शन महत्वपूर्ण हो जाता है। प्रमुख स्वामी महाराज एक महान संत थे। उन्होंने समाज की तलाश के लिए काम किया। वे लोगों को सही रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करते थे।
हाल ही में संघ प्रमुख (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख) मोहन भागवत का एक बयान चर्चा का विषय बना था। बीते रविवार को भागवत ने मुंबई में एक कार्यक्रम में कहा था कि यदि भारत, अमेरिका और चीन को देखकर विकास होता है तो यह भारत का विकास नहीं हो सकता है। यह विकास तो हो सकता है, लेकिन तब हमारा देश भारत, चीन और अमेरिका की तरह ही हो जाएगा। भारत का विकास लोगों की आकांक्षाओं पर आधारित होना चाहिए। भारत के विकास के लोगों की आशाओं, आकांक्षाओं, संस्कृति और दुनिया के प्रति भारतीयों की निगाहों के आधार पर होना चाहिए।