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दाद जागरूकता सप्ताह 2023: जानिए इस दर्दनाक त्वचा रोग के बारे में और इससे बचाव के तरीके- दाद जागरूकता सप्ताह 2023 : जानिए इस दर्दनाक त्वचा रोग और इससे बचाव के बारे में।

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त्वचा के लिए ओब्सेस्ड समाज में जहां शेड भी बहुत अंतर पैदा कर देता है, वहीं त्वचा संबंधी रोग कई तरह के मिथक पैदा कर देते हैं। ऐसी ही एक समस्या है दादा। सामान्य स्किन रैश से लेकर दाद तक यह कई तरह का हो सकता है। इससे पीड़ित मरीज से पहले ही शारीरिक और मानसिक दबाव का सामना करना पड़ता है, उसके बाद जागरुकता की कमी अन्य लोगों में प्रतिरक्षण एक अलग तरह की उत्तेजना पैदा करता है। इसलिए शिंगल्स जागरूता सप्ताह (दाद जागरूकता सप्ताह) में हम बात कर रहे हैं, उन मिथकों की असल में शिंगल्स या दादों की समस्या से कोई संबंध नहीं है।

इसके बारे में विस्तार से बात करने के लिए हमारे साथ हैं डॉ मोनिका महाजन। डॉ मोनिका मैक्स मल्टी स्पेशलिटी हॉस्पिटल, नई दिल्ली में मेडिकल डायरेक्टर हैं।

पहले जान लेते हैं क्या है शिंगल्स या दादा

त्वचा पर होने वाली इस समस्या को कुछ लोग पूर्णजन, पाप और जादू-टोन से जोड़कर देखते हैं। जबकि यह केवल एक स्किन डिजीज है। जो एक वायरस के द्वारा पैदा होता है। असल में यही वायरस चिकनपॉक्स होता है। कुछ समय पहले तक चिकनपॉक्स के बारे में ऐसी ही भ्रम की अवधारणाएँ उत्पन्न हुई थीं। दोनों बीमारियों के बीच एक और सामान्य कारक यह है कि चिकनपॉक्स से दाद का शिकार आसानी से हो सकता है।

शरीर के किसी भी हिस्से पर खुजली होना एक आम बात है। मगर धीरे-धीरे रैशेज की शक्ल लेने वाले उन चकत्तों के खुलने के निशान हो सकते हैं। चित्र: अडोबी स्टॉक

शिंगल्स जागरूकता सप्ताह 2023 (दाद जागरूकता सप्ताह)

दाद के बारे में प्रचलित विभिन्न संभावनाओं को दूर करना और इसके उपचार को ज्यादा लागों तक पहुंचाने के लिए हर साल मार्च के पहले सप्ताह में शिंगल्स अवेयरनेस वीक का आयोजन किया जाता है। इस सप्ताह के दौरान दाद के कारण और उपचार पर विस्तार से बात की जाती है। साथ ही उन लोगों को भी नॉर्मलाइज किया जाता है, जो इस समस्या से जूझ रहे हैं।

आइए जानते हैं दाद या दाद के बारे में प्रचलित मिथक और उनकी सच्चाई

1 दाद, गलत वैज्ञानिकों और पुराने पापों के कारण त्वचा पर उभर रहा है?

फैक्ट : जी नहीं, ऐसा बिल्कुल नहीं है। पाप या पुण्य का व्यक्ति के शरीर से कोई संबंध नहीं है। ये मिथोलॉजी और मेडिकल साइंस दो अलग-अलग दुनिया हैं। चिकित्सा विज्ञान में हम समस्या के कारण और उपचार पर अधिक ध्यान देते हैं, कार्यस्थल के प्रति द्वेष को प्रसारित करने के लिए।

डॉ मेनिका महाजन दाद के बारे में बात करते हुए कहते हैं, “यह समस्या चिकनपॉक्स वायरस द्वारा जनित है। अमूमन चिकन पॉक्स के बाद वेरिसेला ज़ोस्टर (वैरिसेला ज़ोस्टर) वायरस लंबे समय तक शरीर में रहता है। इसकी उपस्थिति किसी की भी नर्वस में हो सकती है। जिसके कारण धीरे-धीरे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है। परिणामस्वरूप त्वचा पर दाद और रैश उभरने लगते हैं।

2 क्या COVID-19 वैक्सीन लेने वाले लोगों को शिंगल्स का खतरा ज्यादा है?

फैक्ट : यह सही है कि COVID-19 महामारी के बाद लोगों में शिंगल्स का जोखिम बढ़ गया है। लेकिन इसका संबंध कहीं भी वैक्सीन से नहीं है। असल में सार्स-कोवि वायरस के कारण लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता गंभीर रूप से प्रभावित हुई है। शिंगल्स का संबंध कमजोर प्रतिरक्षा से है। यही कारण है कि किसी भी महामारी के बाद, जो आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को प्रभावित करता है, शिंगल्स का खतरा बढ़ जाता है।

3 अपने आप को साफ-सुथरा रखने वाले लोगों को शिंगल्स नहीं हो सकता!

फैक्ट : यह अगर हेल्दी लाइफस्टाइल से जोड़े तो यह कुछ हद तक सही है। इसका मूल बंधन आपकी प्रतिरक्षा से है। वे लोग जो खराब जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों से ग्रस्त हैं, वे विरोध भी साफ-सुथरे रहते हैं, उन्हें दाद हो सकता है। जैसे फाइलिंग, हार्ट डिजीज या किडनी संबंधी बीमारियां।

शिंगल्स से ग्रासित व्यक्ति को सही उपचार की जरूरत है
भ्रम संबंधी धारणाओं को फैलाना जरूरी है कि शिंगल्स से ग्रसित व्यक्ति का सही उपचार किया जाए। चित्र : उजागर करें

4 शिंगल्स से चिपकना है, इसलिए इसके साथ दूर रहना चाहिए!

फैक्ट : इसी तरह की साझेदारी को दूर करने के लिए शिंगल्स जागरुकता सप्ताह मनाया जाता है। ये कमजोर इम्युनिटी और वायरस से होने वाला इंफेक्शन है। यह मरीज के संपर्क में आने से कनेक्शन नहीं है। इससे पीड़ित रोगी भयानक दर्द का सामना करते हैं। ऐसे में उन्हें आपका समर्थन और उचित उपचार की आवश्यकता होती है। आपका पूर्वाग्रह और द्वेष उन्हें मानसिक आघात दे सकता है।

5 दाद एक लीलाज बीमारी है और यह व्यक्ति के साथ ही जाती है!

फैक्ट : ऐसा बिल्कुल नहीं है। इस समय चिकित्सा विज्ञान ने एकाधिकार कर लिया है कि शिंगल्स का उपचार संभव है। त्वचा पर जल्द उभरने वाले रोगी रोगी कम करने वाली दवाएं दी जा सकती हैं। वहीं इसके लिए वैक्सीन भी उपलब्ध है, जिसके जोखिम को कम किया जा सकता है।

जांबाज से मंदिर को इसकी वैक्सीन जरूर देनी चाहिए, इससे दोबारा दाद होने के जोखिम से बचा जा सकता है। यह न आकर्षण कि एक बार दाद होने के बाद वह वापस नहीं आएगा। बल्कि विशेषज्ञ परामर्श से उचित उपचार करवाएं।

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Saurabh Namdev

| PR Creative & Writer | Ex. Technical Consultant Govt of CG | Influencer | Web developer
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