
UNITED NEWS OF ASIA. कृष्णा नायक, सुकमा । माओवाद प्रभावित बस्तर रेंज में अब गोलियों की गूंज नहीं, बदलाव की आहट सुनाई दे रही है। यह बदलाव किसी सरकार के आदेश से नहीं, बल्कि उस जनआंदोलन से जन्म ले रहा है जिसका नाम है — “पूना मारगेम: पुनर्वास से पुनर्जीवन”। यह पहल सिर्फ एक पुनर्वास कार्यक्रम नहीं, बल्कि शांति, सामाजिक सौहार्द और समावेशी विकास की दिशा में एक जनचेतना है, जो बस्तर के दिलों में उम्मीद का संचार कर रही है।
पुनर्वास नहीं, पुनर्जीवन की राह
माओवाद छोड़कर मुख्यधारा में लौटे युवाओं को सरकार सिर्फ सुरक्षित भविष्य नहीं, बल्कि आत्मसम्मान के साथ पुनर्निर्माण का अवसर दे रही है। पुनर्वास की यह प्रक्रिया केवल सुरक्षा की नहीं, बल्कि जीवन की नई शुरुआत है। इन आत्मसमर्पित माओवादियों को मिल रहे हैं —
✅ कौशल विकास प्रशिक्षण
✅ स्वरोजगार हेतु आर्थिक सहायता
✅ मनोवैज्ञानिक परामर्श और सामाजिक पुनःस्थापन
इस अभियान के अंतर्गत सुकमा, दंतेवाड़ा, बीजापुर, नारायणपुर, कोंडागांव, बस्तर और कांकेर — सभी जिलों में कार्यवाही चरणबद्ध रूप से आगे बढ़ रही है।
“पूना मारगेम” का संदेश: अब हिंसा नहीं, भरोसे का रास्ता चुनें
बस्तर रेंज के आईजी सुंदरराज पट्टिलिंगम ने इस अभियान की भावना को स्पष्ट शब्दों में व्यक्त किया —
“यह केवल एक पुनर्वास योजना नहीं, बल्कि आशा, बदलाव और विश्वास का प्रतीक है। यह उन लोगों के लिए रास्ता खोलता है जो अपने अतीत को पीछे छोड़कर समाज और राष्ट्र के निर्माण में योगदान देना चाहते हैं।”
उन्होंने माओवादियों से अपील की कि वे हिंसा छोड़ें, और शांति, पुनर्वास तथा विकास का रास्ता अपनाएं।
1400 से अधिक आत्मसमर्पण, बदलाव की लहर जारी
पिछले 18 महीनों में ही 1400 से अधिक माओवादी कैडर आत्मसमर्पण कर चुके हैं। इसमें वरिष्ठ कमांडर से लेकर क्षेत्रीय कैडर तक शामिल हैं। यह बदलाव सरकार की नीतियों और स्थानीय प्रशासन की सतत पहल का परिणाम है।
“पूना मारगेम” के 5 प्रमुख उद्देश्य
🔹 माओवादी कैडरों से संवाद स्थापित कर, उन्हें मुख्यधारा में लौटने के लिए प्रेरित करना।
🔹 आत्मसमर्पण एवं पुनर्वास नीति-2025 के लाभों की जानकारी देना।
🔹 यह विश्वास दिलाना कि माओवादी संगठन अब बिखर चुका है और कोई वैकल्पिक दिशा नहीं बची।
🔹 कौशल प्रशिक्षण और आत्मनिर्भरता की ओर प्रेरित करना।
🔹 उन्हें समाज के सकारात्मक परिवर्तन में भागीदार बनाना।
🔶 बस्तर के लिए एक नई सुबह
“पूना मारगेम” अब केवल एक नीति नहीं, बल्कि बस्तर की आत्मा में उतरती एक नई शुरुआत है — जिसमें बंदूक छोड़कर कलम, हल और हुनर से नया इतिहास लिखा जा रहा है।
बस्तर बदल रहा है, बस्तर चल रहा है — शांति, विकास और पुनर्जीवन की ओर।
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