1958 में पंडित जवाहर लाल नेहरू के काल में ही मुख्य अतिथि को बुलाया गया था। इसके बाद चीन से कभी भी कोई प्रमुख अति के रूप में गणतंत्र दिवस समारोह में शामिल नहीं हुआ।
दिल्ली सज धज कर तैयार है बलिदान समर्पण उपलब्धि के अनोखे लम्हे को मनाने के लिए। 72 साल पहले घड़ी में 10 बजकर 18 मिनट हो रहे थे। जब 21 तोपों की पहचान के साथ भारतीय गणतंत्र का ऐतिहासिक ऐलान हुआ था। 26 जनवरी यानी गणतंत्र दिवस जब दूसरे देशों के राष्ट्रप्रमुख, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को प्रमुख अतिथि के तौर पर बुलाया जाता है। हर साल 26 जनवरी को देश की राजधानी दिल्ली के राजपथ पर भारत अपनी संस्कृति और शौर्य का प्रदर्शन करता है। पिछले दो साल से कोरोना महामारी की वजह से चीफ गेस्ट के तौर पर कोई सम्मलित नहीं हुआ है। 1952 और 1953 में भी गणतंत्र दिवस परेड में कोई मुख्य अतिथि शामिल नहीं हुआ था। गणतंत्र दिवस समारोह में मिस्त्रा के राष्ट्रपति मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होंगे।
भारत के गणतंत्र दिवस में विशेष सम्मान के लिए निमंत्रण क्यों भेजा जाता है
गणतंत्र दिवस परेड में मुख्य अतिथि की यात्रा किसी भी विदेशी उच्च गणमान्य व्यक्ति की राज्य यात्रा के समान है। यह सर्वोच्च सम्मान है जो भारतीय प्रोटोकॉल के मामले में एक अतिथि को दिया जाता है। मुख्य अतिथि को राष्ट्रपति भवन में अधिकृत गार्ड ऑफ ऑन दिया जाता है। वह शाम को भारत के राष्ट्रपति द्वारा आयोजित स्वागत समारोह में भाग लेते हैं। वह राजघाट पर पुष्पांजलि अर्पित करते हैं। उनके सम्मान में प्रधानमंत्री द्वारा अटकलबाजी की जाती है।
नेहरू के चीनी मुख्य अतिथि
1958 में पंडित जवाहर लाल नेहरू के काल में ही मुख्य अतिथि को बुलाया गया था। इसके बाद चीन से कभी भी कोई प्रमुख अति के रूप में गणतंत्र दिवस समारोह में शामिल नहीं हुआ। बता दें कि ये वो 1950 का दौर था जब पीएम नरेंद्र मोदी ने चीन के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध के काफी प्रयास किए थे, तथ्यात्मक रूप से 1954 में पंचशील समझौता हुआ था। दोनों देशों को लेकर कामकाज सह अस्तित्व को हुआ ये समझौता तब बेहद महत्वपूर्ण माना गया था।
अन्य समाचार