छत्तीसगढ़

युक्तियुक्तकरण बनी आफत: प्राथमिक शाला केरलापाल एकल शिक्षक के भरोसे 75 बच्चों की शिक्षा संकट में, समाधान के इंतजार में प्रशासन

UNITED NEWS OF ASIA. कृष्णा नायक, सुकमा । छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा शिक्षा विभाग में लागू की गई युक्तियुक्तकरण नीति अब आदिवासी बहुल सुकमा जिले के बच्चों के भविष्य पर भारी पड़ने लगी है। नीति के अंतर्गत विद्यालयों का पुनर्गठन तो किया गया, लेकिन शिक्षकों की भारी कमी के चलते कई स्कूलों में एक ही शिक्षक के भरोसे पूरे विद्यालय का संचालन किया जा रहा है। इसी कड़ी में सुकमा ब्लॉक की जनपद प्राथमिक शाला केरलापाल का भी हाल बेहद चिंताजनक है, जहाँ 75 छात्र-छात्राएं केवल एक शिक्षक के भरोसे शिक्षा ग्रहण करने को मजबूर हैं।

अधिकारी अवगत, पर समाधान नहीं

शाला प्रभारी मनीराम नायक ने बताया कि शैक्षणिक सत्र शुरू होने से पहले ही इस गंभीर समस्या से खंड शिक्षा अधिकारी और जिला शिक्षा अधिकारी, सुकमा को अवगत करा दिया गया था। बावजूद इसके अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। स्थिति जस की तस बनी हुई है।

एक शिक्षक, कई कक्षाएं

विद्यालय में कक्षा 1 से 5 तक के 75 बच्चे पढ़ते हैं, जिनकी पढ़ाई, देखरेख, शैक्षणिक गतिविधियाँ, प्रशासनिक काम और मिड-डे मील जैसी व्यवस्थाओं की जिम्मेदारी सिर्फ एक शिक्षक पर है। यह न केवल शिक्षक पर अतिरिक्त दबाव डालता है, बल्कि बच्चों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा भी प्रभावित हो रही है।

पालकों ने की कलेक्टर से शिकायत

शिक्षकों की कमी को लेकर विद्यालयीन पालकों ने कलेक्टर सुकमा से मिलकर शिकायत भी दर्ज कराई है। लेकिन अब तक न तो अतिरिक्त शिक्षक की नियुक्ति हुई है और न ही कोई वैकल्पिक समाधान निकला गया है। इससे ग्रामीणों में गहरी नाराजगी है।

शिक्षा के अधिकार पर कुठाराघात

सुकमा जैसे संवेदनशील और पिछड़े क्षेत्र में जब आदिवासी परिवार अपने बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं, ऐसे में शासन-प्रशासन की उपेक्षा और लापरवाही बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ के समान है।

विशेष तथ्य:

  • विद्यालय का नाम: जनपद प्राथमिक शाला केरलापाल

  • ब्लॉक: सुकमा

  • छात्र संख्या: 75

  • शिक्षक उपलब्ध: केवल 1

  • समस्या रिपोर्ट: शाला प्रभारी द्वारा BEO और DEO को पहले ही दी जा चुकी

  • पालक स्तर पर प्रयास: कलेक्टर से व्यक्तिगत भेंट कर ज्ञापन सौंपा

सम्पादकीय टिप्पणी:

यदि शासन की युक्तियुक्तकरण नीति का उद्देश्य शिक्षा में समानता और गुणवत्ता लाना था, तो इसके क्रियान्वयन में संवेदनशील दृष्टिकोण की आवश्यकता थी। आदिवासी अंचलों में एकल शिक्षक स्कूल शिक्षा की आत्मा को ही खोखला बना रहा है। प्रशासन को चाहिए कि केरलापाल जैसे स्कूलों में त्वरित रूप से शिक्षक पदस्थापन सुनिश्चित करें ताकि बच्चों का भविष्य अंधकार में न जाए।

 


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