
UNITED NEWS OF ASIA. अमृतेश्वर सिंह, रायपुर | मुख्यमंत्री साय की नई पंजीयन नीति से छोटे व्यापारी और असंगठित श्रमिक परेशान, तकनीकी और प्रशासनिक अव्यवस्थाओं का शिकार
छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में लागू की गई संशोधित दुकान एवं स्थापना अधिनियम 2017 की नई डिजिटल पंजीयन व्यवस्था अब व्यापारी वर्ग और असंगठित श्रमिकों के लिए संकट बनती जा रही है।
13 फरवरी 2025 से लागू इस अधिनियम के तहत अब पंजीयन की प्रक्रिया पूरी तरह ऑनलाइन कर दी गई है। लेकिन राज्य के अधिकांश छोटे दुकानदारों और श्रमिकों के पास न स्मार्टफोन है, न इंटरनेट, और न ही डिजिटल पोर्टल का उपयोग करने का कौशल।
डिजिटल अव्यवस्था के बीच जुर्माना और दंड
पंजीयन में देरी होने पर 25% जुर्माना
प्रशमन शुल्क का अतिरिक्त भार
फिर भी सामाजिक सुरक्षा या किसी लाभ की स्पष्ट जानकारी नहीं
यह सब मिलाकर पंजीयन प्रक्रिया आम नागरिकों के लिए भय और असमंजस का कारण बन गई है।
डेडलाइन दबाव: 14 अगस्त 2025
सरकार ने 14 अगस्त 2025 की अंतिम तिथि निर्धारित कर दी है, लेकिन न कोई सहायता शिविर, न जन-जागरूकता अभियान और न ही कोई स्थानीय प्रशिक्षण।
OTP फेल, दस्तावेज़ रिजेक्शन, और पोर्टल लॉगिन न होना जैसी तकनीकी बाधाएं रोज़मर्रा की परेशानी बन चुकी हैं। इसके बावजूद श्रम विभाग के मंत्री ज़मीनी समस्याओं से कटे हुए दिख रहे हैं।
पूर्ववर्ती भूपेश बघेल सरकार की तुलना में अंतर
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की नीतियाँ संवाद, संवेदनशीलता और सहयोग पर आधारित थीं:
सरल समाधान योजना (2023) – 25,681 व्यापारियों को टैक्स व जुर्माना माफी
गुमाश्ता लाइसेंस समाप्ति – लाखों दुकानदारों को राहत
गौठान एवं RIPA योजना – 80,000+ महिलाएं व श्रमिक रोजगार से जुड़े
परंपरागत व्यवसायों को समर्थन – तेलघानी, रजक, चर्मकार बोर्ड के माध्यम से
निष्कर्ष: अवसर से अधिक दंड?
संशोधित अधिनियम एक अवसर हो सकता था, अगर इसे सहयोग, प्रशिक्षण और संवेदनशील संवाद के साथ लागू किया जाता।
लेकिन जिस तरीके से इसे बिना ज़मीनी तैयारी के थोपा गया, वह इसे एक दंडात्मक अभियान में तब्दील कर रहा है।
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