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परिवार और समाज किसी भी व्यक्ति की प्रतिभा और सपने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। जॉबर से लड़कियां अपने सपने पूरे करने के लिए इन दोनों से ही संघर्ष करना छोड़ती हैं। पर अब जब चीजें बदल रही हैं, तब परिवार भी बदल रहे हैं। यहां सिर्फ लड़के ही नहीं, बल्कि लड़कियां भी जी भरकर सपने देख रही हैं। और परिवार उनके साथ हैं, उनके सपनो की उड़ान में सहयोग करने के लिए। गुड्डे गुड़ियों से खेलने की उम्र में ही ये बच्चे एयरक्राफ्ट का सपना देखने लगे थे। आइए अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर आसमान की रौशनी छुएं 5 महिला पायलट की सफलता की कहानी (महिला पायलटों की सफलता की कहानी)।
तू थककर न बैठ तेरी उड़ान अभी बाकी है
ज़मीं खत्म हुई तो क्या अभी आसमान बाकी है
भारत में वीमेन पायलेट्स का अनुपात मात्र 12.4 प्रतिशत है। मगर निराश न हों, क्योंकि विकसित माने जाने वाले देशों की तुलना में यह कहीं बेहतर स्थिति है। महाशक्ति और प्रगतिशील माने जाने वाले अमेरिका में महिला पायलटों की संख्या मात्र 5. 5 प्रतिशत है। ब्रिटेन में स्थिति थोड़ी बेहतर है और वहाँ 4. 7 महिलाएँ जहाज़ उड़ रही हैं।
वाणिज्यिक जहाज की शुरूआत
भारत में सन् 1959 फर्स्ट कमर्शियल वीमेन पायलट दूर्वा बनर्जी लाइव। वहीं भारत में एयरक्राफ्ट की दौड़ में सर्वप्रथम सरला ठकराल का नाम आता है। सन् 1936 में उन्होंने प्रथम एविएशन पायलट का लाइसेंस हासिल किया। वहीं दूर बनर्जी ने 1959 में अपना करियर स्पॉट पायलट शुरू किया। उसके बाद एक के बाद एक महिला पायलट आगे मिलेंगी। साल 1990 में निवेदिता भसीन ने 26 साल की उम्र में भारत के अलावा दुनिया भर में पहली युवा कमर्शियल पायलट बनने का खिताब अपने नाम किया।
निवेदिता बताती हैं कि तीस साल पहले लोग अक्सर विमान उड़ाते हुए डर का अनुभव करते थे। ऐसे में उन्हें ज्यादा शराब पीने के गड्ढे में गु ज़ारने के लिए ही कहा जाता था। 8 अक्टूबर 1932 यानी आज से करीब 90 साल पहले देश में एयरफोर्स की बुनियाद रखी गई थी।
पायलट रिक्की गुप्ता : पापा ने दिया खिलौना वाला हवाई जहाज़
पल पल बंद आंखों में अपने सपने को मापता हुआ आगे बढ़ें इन कमर्शियल पायलेट्स के फेहरिस्ट में सबसे पहले बात रिक्की गुप्ता की करेंगे। तीन साल की उम्र में ही लखनऊ जैसे छोटे शहर से तालुक रखने वालों का रिक्की तय कर लिया था कि वे पायलट बन गए हैं। पापा का वो एयरक्राफ्ट खिलौना हर रोज रिक्की के जुड़ाव को और पुख्ता करता जा रहा था।
एक बिजनेस मैन परिवार और चार भाई-बहनों में सबसे बड़े रिक्की ने 12वीं तक की पढ़ाई पूरी करने के बाद फ्लाइंग ट्रेनिंग लेना शुरू कर दी। वर्ष 2006 में रिक्की ने किंगफिशर एयरलांइस को ज्वाइन किया। उस समय उन्होंने 72-500 उड़ान भरी।
उसके बाद वर्ष 2012 से 2018 तक वे जेट एयरवेज में रहे। जहां उन्होंने 72-500 और बोइंग 737 एनजी की फ्लाइट भरी। सात हज़ार घंटे का फ्लाइंग टाइम पूरा कर चुकी हैं रिक्की ने 2018 में मैटरनिटी लीव ली। प्लेन के लिए वो अब भी बेताब थे। अपने पिता श्यामकृष्ण गुप्ता से प्रेरणा प्राप्त करें करनेवाला फिर से विमान प्रशिक्षण के लिए यूरोप पहुंचता है। इसके बाद उन्होंने इस क्षेत्र में कदम रखा। अकासा एयरवेज को ज्वाइन किया। इनका अब तक का फ्लाइंग टाइम सात हजार घंटे है।
मेल डोमिनेटेड इंडस्ट्री में मिलिट्री पायलट साक्षी हैं
अब बात करते हैं, एक ऐसे पायलट की मौसम वार्ड में ऐसा माहौल हुआ, जहां उनके प्रस्थान में हर घंटे एयरक्राफ्ट का शोर रहता था और आस पास फ्लाइंग की बातें होती थीं। कनेक्शन मिलिट्री पायलट अपने करियर की शुरूआत करने वाले साक्षी के पिता भारतीय नेवी में पायलट थे। घर का माहौल और अपने पिता की तरह देश की सेवा करने की सोच रखने वालों ने फ्लाइंग कमर्शल ट्रेनिंग लेना शुरू की।

अपने पिता को अपनी बोलने वाली बोलने वाली साक्षी ने आठ साल तक इंडियन कोस्ट गार्ड में फ्लाइंग कर अपनी हिम्मत और जदीद हौसलेन का परिचय दिया। अपने काम के साथ साक्षी अपनी दो साल की बच्ची की बखूबी परवरिश कर रही हैं। साथ ही अपने परिवार को भी पूरे समय देते हैं। उन्हें अपने पेशे में अपने माता-पिता सहित अपने पति का भी पूरा सहयोग प्राप्त हुआ है।
डांस को स्किप एयर फ्लाइंग ने बनाया अपना भविष्य : कैप्टन पूर्वा शर्मा
अब बात करते हैं। एक ऐसा पिता जिसने न केवल अपनी बेटी के सपने को पूरा करने के लिए उसे आकाश खोल दिया बल्कि उसे ख्वाबों के पंख झटकना भी सिखाया। इंडिगो एयरलांइस में बिल्कुल कमर्शियल पायलट कैप्टन पूर्व के पिता एयर इंडिया में पायलट के तौर पर अपनी ड्यूटी निभा रहे थे। बचपन से ही हाथों में विमान पकड़ने वाले अपूर्वा ने एक एक पिता से नृत्य की दुनिया में कदम रखने की इच्छा छोड़ें। मगर उनके पिता उनके अंदर एक जुनून देख रहे थे।

उन्होंने अपनी बेटी को आलस्य के लिए उकसाया। अब पूर्वा अब तय कर चुकी थी, कि उड्डयन ही उनका भविष्य है। उन्होंने 12वीं के बाद डीजीसीए सहित कई एक्जाम्स क्लीयर करने के बाद अपनी ट्रेनिंग शुरू की। फ्लाइंग स्कूल ऑफ अमेरिका से अपनी ट्रेनिंग पूरी करने के बाद पूर्वा ने अपना करियर बनाया।
हैंलाकि उन्हें अपने 16 साल के करियर में इस मेल डोमिनेटिंग सोसाइटी में कई अपवादों का सामना करना पड़ा। इंडिगो में अपना कर्तव्य निभाते हुए पूर्वा अब तक 5,000 घंटे का प्लेन रिकॉर्ड कायम रखता है।
शादी के सपने का अंत नहीं : कैप्टन खाता जैन
एक साधारण मारवाड़ी परिवार की बेटी ख्वाबों के पंजर झाड़ते हुए आकाश की सैर करती है। शायद कभी किसी ने नहीं सोचा था। नन्ही उम्र में ही अंकित मन ही मन ये तय कर चुकी थी, कि उन्हें प्लेन ही उड़ाना है। 9 साल की उम्र में अंकिता जब पहली बार प्लानिंग में बांधी। उनका ये सफर एक जर्नी ही नहीं, बल्कि वो ख्वाब था, जो वो हर रोज अब और भी पेंची से संजोने लगीं।

कंजर्वेटिव परिवार से ताल्लुक रखने वाली अंकिता ने 12वी के बाद वास्तुकला करना शुरू किया। इत्तफाक से उनके पति केबिन क्रू में थे। अब उनके कदम पायलट बनने की दिशा में बढ़ने लगे। अपने पति और बाकी परिवार वालों की मदद से उन्होंने फ्लाइंग लेना शुरू किया। उनका आठवां बेटा था। उस समय वे टेनिंग के लिए स्पेन में करीबन ढाई महीने तक जारी। उनकी आंखों में एयरक्राफ्ट दुर्घटना जैसी बड़ी घटना हुई सपना शायद और भी बढ़ जाता है हो गया।
सिंगल पेरेंट पिता ने बेटी के सपनों को भरी उड़ान : भाग्यलक्ष्मी व्यास

भाग्यलक्ष्मी का बचपन एक ऐसा गांव में विवाहिता जहां अक्सर बिजली गुल रहती थी। छत पर लगे एयरक्राफ्ट को देखते हुए देखते थे। मां के इस दुनिया से अलविदा कहने के बाद पिता और दादी ने ही भाग्यलक्ष्मी को पाल पोसकर बढ़ाया। वार्ड के साथ उन्होंने नन्ही बच्ची के सपनो को माकाम तक पहुंचाने में उसे पूरा सहयोग दिया। कारवाईमेंट से चलने के बाद इस शख्सियत ने दरिसा में सबसे पहले लेना शुरू किया। पांच साल के इस फलाइंंग प्रसंगों में ये अब तक 3,000 घंटे पूरे कर चुके हैं।
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