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बच्चों की परवरिश तो सभी करते हैं, लेकिन उन्हें समझने की कोशिश शायद ही हर कोई नहीं पाता। इसके चलते उम्र के साथ बच्चों में आने वाले बदलाव उनके और माता-पिता के बीच की दूरी के कारण बन जाते हैं। पेसरेंट की इसी झल्लाहट को संभालने के लिए पेरेंटिंग कोच डॉ पल्लवी राव चतुर्वेदी ने सोशल मीडिया पर एक बात की शुरुआत की। गेट सेट पेरेंट विद पल्लवी नाम की इस आर्गेनाइजेशन में छोटी उपब्रिंगिंग से जुड़े टिप्स को लोगों तक पहुंचाया जाता है। दस साल तक अटका केमिकल इंजीनियर काम करने के बाद डॉ पल्लवी ने कार्पोनरेट की दुनिया छोड़ दी शादी के बाद फैमिली बिजनेस को आगे बढ़ाया।
आइए जानते हैं, एक सफल इंटरप्रेन्योर, रोटेटिंग कोच और बेहतरीन शिक्षाविद के तौर पर खुद को साबित करने वाले डॉ पल्लवी के जीवन के कुछ खास पहलू।
डॉ पल्लवी एआईएसईसीटी ग्रुप (अर्ली चाइल्डहुड एसोसिएशन ऑफ इंडिया) के एक्ज़िक्यूटिव विज़न प्रेसिडेंट हैं। वे बच्चों की स्थिति और सुंदरता को समझते हुए 25,000 आवास डेवेलपमेंट सेंटर को शामिल करते हुए प्राईवेट युनिवर्सिटीज़ को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं। उन्होंने अपने वीडियोज़ के बैनर गेट सेट पेरेटसं विद पल्लवी नाम की इस आर्गेनाइजेशन से लोगों को जोड़े और आज इस पर उनके छह लाख फालोअर्स हैं। इसके अलावा वो बिजनेस वर्ल्ड 40 अंडर 40 अवार्ड के भी विजेता बन रहे हैं। साथ ही इस्तांबुल में जी 20 युवा जोड़ों के शिखर सम्मेलन सहित कई प्रतिष्ठित राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उन्होंने एक वक्ता के रूप में अपनी विशेष भूमिका निभाई।
इस यात्रा को तय करने में आपको टुकड़े से फंसे हुए।
मेरा मानना है कि उपलब्धि और हार्डवर्क एक साइकिल के समान है, जो यूँ ही चलता रहता है और उसका कोई अंत नहीं होता। सामान्य हर फील्ड में आता है। एक उद्यम के तौर पर सबसे बड़ी चुनौती यही है कि आपके कोड को कैसे एक्जिक्यूट करें। दरअसल, काम कोई भी हो। कड़ी मेहनत की संभावना होती है।
अगर हमारी नजर हर घंटे हमारे लक्षय पर रहेगी, तो हम उसे आसानी से अचीव कर देंगे। टीम वर्क बहुत जरूरी है और इसमें कंसिस्टेंसी अहम रोल अदा करती है। दूसरा है वर्किंग बैलेंसिंग, हमें हर काम की बैलेंसिंग करके चलना होगा। चाहे घर हो या ऑफिस, सभी चीजों को लेकर एक बड़ा चैलेंज है। तीसरा कम्पिटिशन है। इस कंपीटीटिव दुनिया में लोगों के संपर्क में रहना और हर चीज पर नजर बनाए रखना जरूरी है।
आपकी लाइफ में वो कौन सी चीज है, जो आपको हर दम आगे बढ़ने के लिए मोटिवेट करती है।
इस बात का श्रेय मेरे माता-पिता को जाता है। उन्होंने हनेशा हम दोनों बहनों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। हमें विश्वास है कि कोई भी काम मुश्किल नहीं है है। बस इसी सोच के साथ हम आगे बढ़ने लगे। देखते ही देखते, ये हमारी जीवनशैली का हिस्सा बन गया। मेरी मां एक स्कूल की प्रिंसिपल थीं और हमेशा मेरी रोल मॉडल रहती थीं।
उन्हें जाने के बाद पूरा सपोर्ट मिला। इसके अलावा मेरे पति और पिता इन लॉ ने भी काम में पूरा सहयोग दिया है। डॉ पल्लवी कहती हैं कि हमें हमेशा अपने आसपास के इकोसिस्टम से एनर्जी मिलती है। जो हमें आगे बढ़ने के लिए पुश करता है। मैं चाहता हूं कि मैं भी अपने बच्चों के लिए रोल मॉडल बनूं।
दस साल के इंजीनियर करियर को छोड़ें, शादी के बाद फैमिली बिजनेस को ज्वाइन करने के बारे में कैसे सोचा।
डॉ पल्लवी बताती हैं कि वे और उनके पति मार्केटिंग प्रोफेशनल थे। विवाह के बाद उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर अपने पारिवारिक व्यवसाय को आगे बढ़ाने की ठानी। कार्पोरेट लाइफ को छोड़कर उन्होंने अपने पिता को इन लॉ के 45 साल पुराने एजुकेशन बिजनेस को आगे ले जाने का डिसिजन लिया।
वर्कप्लेस और घर दोनों को कैसे करती है।
COVID ने सिखाया है कि काम करने के लिए जरूरी नहीं कि किसी विशेष कार्यस्थल की आवश्यकता हो। आप कहीं भी काम कर सकते हैं। पोस्ट कोविड हमारी सोसायटी अब ये सीख चुकी है कि आप अपने काम को कैसे कर सकते हैं। बच्चों की परवरिश के साथ आप काम को संतुलित कर सकते हैं। दरअसल, हमारे आस पास बनी सीमा समाप्त हो चुकी है हैं। नौकरीपेशा महिलाओं को इससे बहुत खुशी होती है। साथ ही इसका लाभ इंटरप्रिन्योर्स को भी मिला है।
टीनएज में कदम रखते ही बच्चों का इंटरएक्शन पेरेंटस से कम होने लगता है, इस दूरी को कैसे मिटाया जाए।
छोटी उम्र से ही बच्चों का हर बीमारी पेरेंटस लेंते हैं। बच्चा भी अपने हर काम के लिए कहीं न कहीं माता पिता पर निर्भर होता है। किशोरों में कदम रखने के बाद बच्चों के व्यवहार में परिर्वतन आने लगता है। मगर परेंटस का स्वभाव अथारिटिटेटिव ही रहता है। जो बच्चा अक्सर पसंद नहीं करता है। पहले की तरह ही माता-पिता पिता बच्चों के डिसिजन लेने पर उनके काम में इंटरफेयर करते हैं, जो वो पसंद नहीं करते।
इसके कारण बच्चा विद्रोह करना सीखता है। वो माता पिता से दूरी बना लेते हैं। हमें बच्चों को बात पर निर्देश देने की जगह उन्हें अपने सुझावों को शेयर करना चाहिए और उन्हें सुनने की आदत डालनी चाहिए। उन्हें समझाने के तरीके में बदलाव लाना होगा। डायरेक्ट अपनी बात को कनवे करने की जगह उन्हें उदाहरण देकर समझाते हैं।
पढ़ाई से लेकर खेल तक बच्चे हर काम के लिए स्थायी हैं, बच्चों को पहचानने से कैसे दूर रहें।
हमारे इको सिस्टम का एक हिस्सा टूट गया है। हम गली पीढ़ी के साथ कदमताल करके चलते-फिरते आ रहे हैं। अपने समय के सुझाव और उदाहरण उन्हें साझा करने के बजाय नई जीवनशैली को अपनाते हैं। दरअसल, उनका जन्म गैजेट्स के दौर में हुआ है। ऐसे टीवी में उन्हें मोबाइल टेलीफोन, ब्लॉग, और कंप्यूटर से दूर रखना संभव नहीं है। उनकी पढ़ाई से लेकर फन टाइम तक सब कुछ इर्द-गिर्द सिमट चुका है।
स्क्रीन टाइम को सीमित करने की कोशिश करें कि बच्चों के सामने ज्यादा टीवी और फोन न देखें। डबल्यू विवरण की गाइडलाइंस के मुताबिक 1 घंटे से ज्यादा बच्चों को स्क्रीन टाइम न दें। विशेष रूप से, बच्चे के निष्क्रिय और सक्रिय स्क्रीन टाइम में संतुलन बनाएं। सक्रिय स्क्रीन टाइम यानी वो समय जब बच्चा पढ़ाई या अन्य गतिविधियों के लिए स्क्रीन देख रहा है। ऐसे में सक्रिय स्क्रीन टाइम को ज्यादा प्रेफर करें। पैसिव स्क्रीन टाइम में भी बच्चे को नोटिस करें कि वो किस तरह का वीडियो देखने में अपना समय व्यतीत करता है।
भारतीय माताओं का व्यवहार बच्चों की नाराजगी में कैसे अहम रोल स्वीकार करता है।
भारत, जापान और चीन की मदर्स की परवरिश पश्चिमी सप्ताहों की निगरानी से बिल्कुल अलग है। हांलाकि, वो इंडियन मदर्स जो अब से 40 साल पहले हुआ करती थीं। अब उनके व्यवहार बिल्कुल बदल गए हैं। अब माता-पिता बच्चों को लेकर ज्यादा पोजेसिव हो चुके हैं। बच्चों के लिए पेरेंटस ओवरथिंक करते हैं और पूरे दिन वैसे भी किसी न किसी नरीके के साथ रहते हैं। इससे बच्चा ओवरडिपेंडेट होने लगता है।
माता-पिता पिता से हर समय सेक्स करने के कारण बच्चे फेलियर से डर जाते हैं। हमारी एक्सपेक्टेंशस बच्चों से बढ़ने लगती हैं। पेरेंटिंग कोच डॉ पल्लवी बताते हैं कि बच्चों के लिए जीतने के साथ हारना भी जरूरी है। हमें बच्चे को स्वतंत्र बनाने की दिशा में काम करना चाहिए। ।
ट्रेड के बच्चे पेरेंटस पर ओवरडिपेंडेंट हो गए हैं, बच्चों को रिस्पॉन्सिबल बनाने के लिए कुछ टिप्स भेजें।
बच्चा जब तक फियर ऑफ फेलियर से बाहर नहीं निकलेगा, वो रिस्पॉस्बिल नहीं बन जाएगा। बच्चों को अपने काम खुद करने दें। उम्र बढ़ने के साथ साथ उनके खाते को लेते हैं। अपने स्कूल बैग को पैक करने से लेकर पैसों के मामले तक, हर काम में उनकी भागीदारी जरूरी है। बच्चों को हर काम में अपने साथ रखें। इससे बच्चे हर दिन कुछ नया सीखें।
टीनएजर बॉडी चेज़िज़ को लेकर शाई फील करते हैं, इस सिचुएशन को कैसे हैंडल करें।
इसकी शुरुआत घर से ही होती है। घर का माहौल ऐसा बनाए रखें कि हर समय लुक्स के बारे में बात न करें। हर वक्त ऐसा न बोलें कि तुम सुंदर लग रही हो। बच्चों को ल्यूक बेस्ड कैंप्लिमेंट्स देने से बचें। उन्हें उनकी पेंटिंग, स्पोर्टस और नए कोसिज़ के लिए देखें। विशेष रूप से, बच्चा हर छोटी बड़ी बात और आब्जर्व करता है और फिर भी समान व्यवहार करता है। दूसरा, बच्चों के अंदर काफिडेंस बिल्डिंग के लिए ग्रूमिंग की ओर ध्यान दें। तीसरा, बच्चों का ध्यान बार इस ओर न ले जाएं कि आपके दांत टेढ़े हैं, चेहरे पर पिंपल आ गए, आप सीधे नहीं चलते। वजराह वजराह। इन सभी चीजों को अवाइड करें।
बच्चों की लाइफ में टाइम जितना जरूरी है।
बच्चों को अपने काम करने की आदत डालें। उन्हें एक सिस्टम रहने दें कि उन्हें कौन-सा व्यसन क्या काम करता है। इससे बच्चों की लाइफ में अनुशासन बढ़ता है। साथ ही बच्चों को छोटा करें और उनमें से एक को जीवन भर पैदा करने का प्रयास करें।
एक उद्यम के तौर पर भविष्य को लेकर आपकी क्या योजना है
गेट सेट पेरेंट विद पल्लवी की शुरूआत कोविड में की गई थी। मेरा एक्सपेरिएंस अर्ली चाइल्डहुड से ग्रीटिंग्स था और हमने कम्युनिटी के पेरेंटस को एडवाइस करना शुरू किया। हमारा मकसद पेरेंटस की ज्यादा से ज्यादा रीच को बढ़ा रहा है। ब्रेनी बियर प्री स्कूल और ब्रेनी बियर स्टोर के संस्थापक डॉ पल्लवी का कहना है कि वे 0 से 8 साल के बच्चों के लिए खिलौना बनाते हैं। अब तक 60 से ज्यादा बुक्स पब्लिश कर चुके हैं। हमारा यही उद्देश्य है कि हम ज्यादा इनोवेटिव प्रोडक्ट्स जो बच्चों के लिए लाभ साबित हों।
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