
UNITED NEWS OF ASIA. नई दिल्ली। इंसाफ की लड़ाई में एक ऐतिहासिक मोड़ आया है। राजस्थान की एक रेप पीड़िता को आखिरकार 40 साल बाद न्याय मिला है। सुप्रीम कोर्ट ने 1986 में हुए रेप केस में आरोपी की दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए उसे 7 साल की सजा सुनाई है। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संजय करोल की पीठ ने फैसले में देरी पर दुख जताते हुए कहा कि, “चार दशकों तक पीड़िता को न्याय का इंतजार करना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।”
1986 में हुआ था रेप, 2013 में हाईकोर्ट ने किया था बरी
इस दर्दनाक घटना की शुरुआत 1986 में हुई थी, जब पीड़िता नाबालिग थी। आरोपी गुलाब चंद ने उसके साथ रेप किया था। मामले की सुनवाई के बाद 1987 में ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को 7 साल की सजा सुनाई थी। हालांकि, 2013 में राजस्थान हाईकोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया था। इसके बाद पीड़िता के परिवार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
सुप्रीम कोर्ट ने पलटा हाईकोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए आरोपी की दोषसिद्धि को बहाल किया और उसे 4 सप्ताह के भीतर आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि पीड़िता की चुप्पी को उसके खिलाफ इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। पीठ ने कहा कि सदमे के कारण पीड़िता चुप थी, जिसे आरोपी के पक्ष में नहीं माना जा सकता।
कोर्ट ने कहा – फैसले में देरी पर दुख है
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और संजय करोल ने कहा,
“यह बेहद दुखद है कि इस पीड़िता और उसके परिवार को न्याय के लिए 40 साल तक इंतजार करना पड़ा। न्याय में देरी ने पीड़िता को मानसिक और शारीरिक रूप से गहरा आघात पहुंचाया है।”
क्या था मामला
- 1986 में राजस्थान के एक गांव में नाबालिग लड़की के साथ हुआ था रेप।
- ट्रायल कोर्ट ने 1987 में आरोपी को 7 साल की सजा सुनाई थी।
- 2013 में राजस्थान हाईकोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया।
- सुप्रीम कोर्ट ने 2025 में हाईकोर्ट के फैसले को पलटा और 7 साल की सजा को बरकरार रखा।
फैसले के प्रमुख बिंदु:
- आरोपी की दोषसिद्धि बरकरार
- 7 साल की सजा का आदेश
- 4 सप्ताह के भीतर आत्मसमर्पण करने का निर्देश
- पीड़िता की चुप्पी को आरोपी के पक्ष में मानने से इनकार













