
UNITED NEWS OF ASIA. रिजवान मेमन, नगरी/धमतरी । राजस्थान में हाल ही में हुए स्कूल भवन हादसे ने पूरे देश को झकझोर दिया, लेकिन धमतरी जिले के गाताबहारा गांव के ग्रामीणों ने इस हादसे से सीख लेकर अपने बच्चों की सुरक्षा और भविष्य को सर्वोपरि मानते हुए एक मिसाल पेश की है। यहां अब खंडहर जैसे जर्जर स्कूल भवन में बच्चे नहीं पढ़ेंगे । ग्रामीण श्रमदान कर झोपड़ी बनाकर बच्चों की पढ़ाई की व्यवस्था कर रहे हैं।
वनवासी अंचल में शिक्षा की जिद और जागरूकता
नगरी ब्लॉक की ग्राम पंचायत खल्लारी के अंतर्गत आने वाला गाताबहारा गांव, ब्लॉक मुख्यालय से महज 40 किमी दूर है, लेकिन आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। गांव के प्राथमिक स्कूल भवन की हालत बेहद खराब है—दीवारों में दरारें, छत से गिरते स्लेट के टुकड़े और बारिश में पानी से भर जाता परिसर। ग्रामीणों के अनुसार, यह भवन अब पठन-पाठन के योग्य नहीं रहा।
वन विभाग के अधूरे क्वार्टर में चल रही पढ़ाई
गांव के बच्चों को फिलहाल वन विभाग द्वारा निर्माणाधीन एक कर्मचारी आवास में अस्थाई रूप से पढ़ाया जा रहा है। यह व्यवस्था भी अस्थायी है क्योंकि भवन पूरा होते ही उसमें वन विभाग का स्टाफ रहने लगेगा। ऐसे में पढ़ाई फिर संकट में पड़ सकती है।
झोपड़ी स्कूल: ग्रामीणों की सामूहिक पहल
गांव के रमेश मरकाम, गया प्रसाद नेताम, पुनीत मरकाम, आकाश नेताम, राजू मरकाम और कन्हैया राम मरकाम सहित कई ग्रामीणों ने मिलकर तय किया कि अब वे स्वंय की राशि और श्रमदान से बच्चों के लिए झोपड़ी बनाएंगे।
झिल्ली (तिरपाल) की खरीद हो चुकी है
लकड़ी की नींव डाल दी गई है
जैसे ही खेती-किसानी से समय मिलेगा, वे इस झोपड़ी स्कूल को खड़ा कर देंगे
यह झोपड़ी शिक्षा के प्रति ग्रामीणों के संकल्प और चेतना का प्रतीक बन रही है।
गांव में नहीं है एक भी सरकारी सामुदायिक भवन
गांव में एक भी रंगमंच, सामुदायिक भवन या पंचायत भवन नहीं है। ग्रामीणों ने बताया कि यदि ऐसा कोई भवन होता तो वहीं स्कूल चलाया जा सकता था। वर्तमान में कोई भी मीटिंग या सामाजिक कार्यक्रम खुले में या अन्य असुविधाजनक स्थानों पर करना पड़ता है।
राजस्थान हादसे ने चेताया, ग्रामीणों ने किया त्याग
गांव के लोगों ने बताया कि राजस्थान के जर्जर स्कूल भवन गिरने की घटना, जिसमें 14 मासूम बच्चों की मौत हुई और कई घायल हुए, ने उन्हें गहराई से दहला दिया। समाचार सुनते ही उन्होंने तय किया कि वे अपने बच्चों को जान जोखिम में नहीं डालेंगे। इसी सोच ने उन्हें जर्जर भवन से बाहर लाकर झोपड़ी स्कूल की ओर प्रेरित किया।
शिक्षा के लिए संघर्ष और समर्पण की मिसाल
गाताबहारा गांव के ग्रामीणों ने सिस्टम की उदासीनता के बीच एक नई उम्मीद की लौ जलाई है। यह कहानी सिर्फ शिक्षा के अधिकार की नहीं, बल्कि जागरूक नागरिकों की सामूहिक जिम्मेदारी और बच्चों की सुरक्षा के लिए अडिग संकल्प की भी है।
प्रशासन को चाहिए कि वह ऐसे प्रेरणादायी प्रयासों को संज्ञान में लेकर तत्काल सहायता एवं स्थायी समाधान की दिशा में कदम बढ़ाए।
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