
UNITED NEWS OF ASIA. रायपुर । राजधानी रायपुर में एक महिला द्वारा संत अमनदत्त ठाकुर उर्फ स्वामी अभिरामदास पर अपने पुत्र को सन्यास के लिए बरगलाने का गंभीर आरोप लगाए जाने से विवाद खड़ा हो गया है। महिला प्रमिला बारबुरिक ने रायपुर एसएसपी से लिखित शिकायत करते हुए यह दावा किया कि उनके पुत्र प्रशांत कुमार बारबुरिक को स्वामी ने धर्म के नाम पर बहला-फुसलाकर सन्यास लेने के लिए प्रेरित किया है। महिला ने यहां तक कहा कि अगर न्याय नहीं मिला, तो वे स्वामी के घर के सामने आत्मदाह करेंगी।
शिष्य प्रशांत ने जारी किया वीडियो संदेश
महिला के आरोपों के बाद प्रशांत बारबुरिक ने खुद सामने आकर वीडियो संदेश जारी किया और बताया कि—
“मैं बालिग हूं और अपनी इच्छा से स्वामी अभिरामदास जी से दीक्षा ली है। यह मेरे आत्मिक और सामाजिक विकास के लिए आवश्यक था। मुझे किसी ने मजबूर नहीं किया है।”
प्रशांत ने यह भी कहा कि वह किसी के प्रभाव में नहीं, बल्कि अपने जीवन के मार्गदर्शन हेतु गुरुजी से जुड़ा है।
राधाकृष्णालय लोक न्यास की सफाई
महिला के आरोपों के बाद राधाकृष्णालय लोक न्यास की ओर से भी आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने आई। न्यास ने कहा कि—
प्रशांत को स्वामीजी अपने साथ वृंदावन नहीं ले गए हैं।
गुरुजी ने उसे यहीं रहकर स्वावलंबी बनने और अपने परिवार की सेवा करने की सलाह दी है।
महिला के पुत्र को बरगलाने या जबरन आश्रम ले जाने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता।
दुष्प्रचार का आरोप सौतेले रिश्तेदार पर
न्यास की ओर से यह भी दावा किया गया कि सोशल मीडिया में स्वामी अभिरामदास को बदनाम करने वाला व्यक्ति प्रशांत का सौतेला ममेरा भाई है, जो बचपन से ही स्वामीजी के प्रति द्वेष रखता है।
“यह एक संगठित आपराधिक षड्यंत्र है, जिसमें स्वामीजी को झूठे आरोपों में फंसाने का प्रयास किया जा रहा है।” – राधाकृष्णालय लोक न्यास
परिवार का आरोप – भोले-भाले लोगों को बनाते हैं शिकार
प्रमिला बारबुरिक का कहना है कि स्वामी अभिरामदास भोले-भाले युवाओं को आध्यात्मिक जीवन का लालच देकर अपने जाल में फंसाते हैं और फिर वृंदावन आश्रम में उन्हें नौकरों की तरह काम करने पर मजबूर किया जाता है।
फिलहाल क्या है स्थिति?
पुलिस शिकायत की जांच कर रही है।
प्रशासन इस पूरे प्रकरण को धार्मिक स्वतंत्रता, बालिग अधिकार और संभावित उत्पीड़न की दृष्टि से देख रहा है।
स्वामी अभिरामदास की ओर से फिलहाल कोई व्यक्तिगत प्रतिक्रिया नहीं दी गई है, लेकिन उनके आश्रम और शिष्यगण खुलकर समर्थन में सामने आए हैं।
यह मामला धर्म, पारिवारिक संवेदनशीलता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच की जटिल रेखा को उजागर करता है। प्रशासन की निष्पक्ष जांच ही अब तय करेगी कि यह एक युवाशक्ति की आध्यात्मिक खोज है या एक परिवार की विघटनकारी पीड़ा।
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