
UNITED NEWS OF ASIA. रायपुर | पं. नेहरू चिकित्सा महाविद्यालय और उससे जुड़ा डॉ. भीमराव अंबेडकर स्मृति चिकित्सालय ने एक बार फिर साबित कर दिया कि शासकीय चिकित्सा संस्थान गंभीर और जटिल मामलों में उत्कृष्ट इलाज की मिसाल पेश कर सकते हैं। एक ऐसा ही अद्भुत उदाहरण सामने आया है, जब मंगलवार और बुधवार की दरम्यानी रात को अंबेडकर अस्पताल स्थित एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट (ACI) में चार महीने की गर्भवती महिला को हार्ट अटैक के बाद एंजियोप्लास्टी से जीवनदान दिया गया।
गर्भवती महिला की जान बचाने की चुनौतीपूर्ण यात्रा
रात के एक से दो बजे के बीच एक महिला, जो गंभीर दर्द से कराहते हुए और गर्भावस्था के जटिल जोखिमों के साथ एक निजी अस्पताल से अंबेडकर अस्पताल पहुंची, उसकी स्थिति बेहद नाजुक थी। कॉर्डियोलॉजी विभाग और स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग की टीम ने तुरंत कार्रवाई करते हुए एंजियोप्लास्टी की प्रक्रिया शुरू की और महिला और उसके गर्भस्थ शिशु की जान बचाई।
महिला के हृदय की मुख्य नस “लेफ्ट एंटीरियर डिसेंडिंग आर्टरी” 100 प्रतिशत ब्लॉक थी, जो किसी भी क्षण दिल का दौरा (हार्ट अटैक) दे सकती थी। यही नहीं, मरीज के पास न तो कोई आयुष्मान कार्ड था और न ही किसी अन्य औपचारिकता को पूरा करने का समय था, लेकिन डॉक्टरों ने बिना किसी देरी के मरीज की जान बचाने के लिए आवश्यक कदम उठाए।
आपातकालीन कार्रवाई में जान बचाने वाले डॉक्टरों की टीम
एसीआई के कार्डियोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. स्मित श्रीवास्तव, गायनेकोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. ज्योति जायसवाल, और डॉ. रूचि किशोर गुप्ता की संयुजित टीम ने डॉ. एस. के. शर्मा और डॉ. कुणाल ओस्तवाल की मदद से सफल एंजियोप्लास्टी की। टीम का मानना था कि इस जीवनदायिनी कार्रवाई को बिना किसी औपचारिकता के और बिना कोई अतिरिक्त देरी किए किया गया, क्योंकि मरीज की जान और गर्भस्थ शिशु की सुरक्षा सबसे प्राथमिक थी।
विशेषज्ञों ने दी प्रतिक्रिया: “यह संयोग था, लेकिन साथ ही एक असाधारण साहसिक कदम भी”
इस स्थिति में एंजियोप्लास्टी करना अपनी तरह का एक संयोग था क्योंकि अक्षय तृतीया का दिन था और इस दिन को दान-पुण्य के लिए विशेष महत्व दिया जाता है। डॉक्टरों का कहना था कि यह संयोग मात्र था कि मरीज को उसी दिन अस्पताल लाया गया, लेकिन उनका साहस और त्वरित निर्णय ही जीवनदायिनी साबित हुआ।
डॉक्टरों ने दी टीम को बधाई, मरीज की स्थिति में सुधार
पं. नेहरू चिकित्सा महाविद्यालय के डीन डॉ. विवेक चौधरी और अंबेडकर अस्पताल के अधीक्षक डॉ. संतोष सोनकर ने इस गंभीर और संवेदनशील उपचार में शामिल पूरी मेडिकल टीम की सराहना की। उन्होंने गर्भवती महिला और उसके शिशु के बेहतर स्वास्थ्य की कामना की है।
डॉक्टर स्मित श्रीवास्तव की जुबानी: “हमें मरीज की जान की कीमत औपचारिकताओं से अधिक थी”
डॉ. स्मित श्रीवास्तव के अनुसार, यह केस बेहद जटिल था, जिसमें महिला की हाई रिस्क प्रेग्नेंसी के साथ प्लेसेंटा प्रिविया जैसी जटिल समस्याएं थीं। मरीज का हीमोग्लोबिन भी बेहद कम था (6-7 ग्राम), जिससे उसकी स्थिति और गंभीर हो गई थी। ऑपरेशन के बाद अब वह कैथ लैब आईसीयू में डॉक्टरों की निगरानी में भर्ती है, और 24 घंटे के बाद उसकी हालत में सुधार देखा गया है।
टीम का योगदान
इस जीवनदायिनी प्रक्रिया में डॉ. स्मित श्रीवास्तव के साथ डॉ. एस. के. शर्मा, डॉ. कुणाल ओस्तवाल, डॉ. प्रतीक गुप्ता, और डॉ. रजत पांडे के अलावा, गायनेकोलॉजी विभाग की डॉ. ज्योति जायसवाल, और डॉ. रूचि किशोर गुप्ता ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। एनेस्थेटिस्ट डॉ. शालू, और स्टॉफ नर्स डिगेन्द्र और मुक्ता ने भी इलाज में अहम योगदान दिया।
यह कहानी एक ज्वलंत उदाहरण है कि कैसे शासकीय चिकित्सा संस्थान, उत्कृष्टता और मानवता के साथ मरीजों की जान बचाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। अंबेडकर अस्पताल ने न केवल जीवन को बचाया, बल्कि यह भी साबित किया कि देशभर के शासकीय अस्पतालों में भी इलाज की गुणवत्ता उत्कृष्ट हो सकती है।
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