
UNITED NEWS OF ASIA. रायपुर | छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने नक्सलियों की ओर से शांति वार्ता के लिए जारी किए गए पत्र पर प्रतिक्रिया देते हुए राज्य सरकार से विचार करने की अपील की है। उन्होंने कहा कि यदि नक्सलियों ने शांति वार्ता के लिए ठोस निर्णय लिया है तो इस पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए। बैज ने यह भी सवाल उठाया कि सरकार शांति वार्ता के मकसद और शर्तों पर विचार करें, और यह स्पष्ट करें कि क्या यह बस्तर की शांति के लिए एक सकारात्मक कदम हो सकता है।
नक्सलियों ने संघर्ष विराम और शांति वार्ता की की अपील
हाल ही में, नक्सलियों ने एक पत्र जारी कर भारत सरकार से संघर्ष विराम और शांति वार्ता की अपील की थी। पत्र में माओवादियों ने मांग की है कि मध्य भारत में चल रहे युद्ध को तत्काल रोकने के साथ ही बिना शर्त संघर्ष विराम किया जाए। यह पत्र तेलुगु भाषा में था और इसमें सरकार से शांति वार्ता के लिए शर्तें भी रखी गई हैं।
माओवादी शांति वार्ता के लिए शर्तें
सीपीआई (माओवादी) की केंद्रीय समिति ने सरकार से मांग की है कि वे प्रभावित आदिवासी क्षेत्रों से सुरक्षा बलों की तत्काल वापसी करें, नए सैनिकों की तैनाती पर रोक लगाएं, और उग्रवाद विरोधी अभियानों को निलंबित करें। माओवादियों ने आरोप लगाया कि सरकार ने आदिवासी समुदायों के खिलाफ “नरसंहार युद्ध” छेड़ रखा है, और नागरिक क्षेत्रों में सैन्य बलों के इस्तेमाल को असंवैधानिक बताया है। इसके अलावा, उन्होंने मानवाधिकार उल्लंघन और हत्याओं के आरोप भी लगाए हैं।
केंद्रीय गृहमंत्री के दौरे से पहले माओवादी का बयान
माओवादी नेताओं का कहना है कि अगर सरकार उनकी शर्तों पर सहमत होती है तो वे शांति वार्ता में भाग लेने के लिए तैयार हैं। सीपीआई (माओवादी) का कहना है कि जैसे ही सरकार उग्रवाद विरोधी अभियान को रोक देगी, वे युद्धविराम की घोषणा करेंगे।
भूपेश बघेल का सवाल: शांति वार्ता का उद्देश्य क्या है?
दीपक बैज ने इस संदर्भ में यह भी सवाल उठाया कि सरकार शांति वार्ता के उद्देश्य और शर्तों पर स्पष्ट विचार रखे। उन्होंने यह भी कहा कि कहीं ऐसा तो नहीं हो रहा कि सरकार अपनी वाहवाही के लिए प्रोपेगेंडा कर रही हो। बैज ने यह भी कहा कि बस्तर की शांति के लिए क्या सबसे बेहतर हो सकता है, इस पर सरकार को निर्णय लेना चाहिए।
सार्वजनिक समर्थन की अपील
माओवादी ने सार्वजनिक समर्थन जुटाने के लिए बुद्धिजीवियों, मानवाधिकार संगठनों, और पर्यावरण कार्यकर्ताओं से सरकार पर दबाव बनाने का आग्रह किया है ताकि शांति वार्ता को आगे बढ़ाया जा सके।
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