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प्राण बर्थडे स्पेशल: फिर न कहें माइकल पीकर दंगा करता है! | – नेवस इन हिंदी

चार सौ, बीस गुंडे, बदमाश, लफंगे…. अगर आपको कोई सरेराह इन शब्‍दों से कॉले और घिनौनी निगाहों से देखे तो आप कैसा रिएक्‍ट करेंगे? कभी-कभी गलती से गड़बड़ी हो सकती है, हो सकता है कि प्रभाव भी बिगड़ जाए। लेकिन प्राण को जब किसी महफ़िल में या राह चलते हुए इस तरह गली दी गई थी तो वो नाराज होने की जगह खुश होते हैं, कहते हैं ‘मेरे अभिनय का, मेरे काम का इससे बढ़िया छाया और बेहतर उद्देश्य कुछ और हो ही नहीं हो सकता।’

हल्‍का सा नीचे की ओर झुका हुआ चेहरा, ऊपर उठी धमकती आंखें, तनी हुई भौंहें यह अभिनेता जब परदे पर आता था तो मां के साथ बैठा हुआ बच्‍चा डर के मारे अपने टखने में सिर छिपा लेता था। कुछ देर वहीं दुबका रहने पर पूछता है ‘मां, वो चला गया?’ ‘हां’ में जवाब मिलने पर ही बच्चेचा परदे को फिर से देखने की हिमाकत करता था। ऐसे थे अपने जमाने के खतरनाक विलन- प्राण. परदे पर कुल मिलाकर व्यक्तिगत जिंदगी में सभी समान वर्गीकरण और सरफराज।

अभिनय की दुनिया में दिखने वाले अमूमन हर नौजवान की गली ख्‍वाहिश होती है कि वो फिल्‍म में नायक बन जाते हैं। हीरो तो हीरो ही होता है, बाकी कलाकारों के मायने वो अलग और खास होते हैं जो रखता है। इसलिए हर कोई प्रयास तो हीरो बनने की ही करता है। लेकिन प्राण अपने दौर के इकलौते ऐसे विलन थे जिंघे नायक के रोल करने और मिलने के बावजूद खलनायक बनना पसंद किया। प्राण ‘बाई चांस’ नहीं ‘बाई छुवाइस’ विलन थे। प्राण कहते थे ‘मुझे हीरोइन के साथ रोमांस करना कटई नहीं भाता। हीरोइनों के साथ पेड़ के चारों ओर चक्ककर नाचना गाना और रोमांस करना मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है।’

आप प्राण नाम के लोगों को जानते हैं? क्‍या आपके आसपास या जानकारी में किसी का नाम प्राण है. मेरा अपना परिचय का क्षेत्र बहुत विस्तृत है। फिल्में करता हूं, पोस्टयुमेंट्री हूं, पत्रकारिता करता हूं, थिएटर से निशाने करता हूं, बैंक में नौकरी करता हूं, ट्राइबल पर काम करता है, पूरा मध्य प्रदेश घूमा है हजारों लोगों से मिला हूं पर मुझे आज तक प्राण नाम वाले किसी सज्जन या दुर्जन से मुलाकात नहीं हुई। अपवाद हो सकता है। ऐसा क्यों है ? आप समझ ही गए होंगे। लोग अभिनेता प्राण के कारण अपने बच्चे का नाम प्राण रखने से कतराते थे, शायद अभी भी कतराते हैं। ऐसी मिशाल दूसरी नहीं, ऐसी अमुक अभिनेता को नहीं मिलती, ऐसा सम्‍मान किसी के अभिनय को वंदनीय है। प्राण कृष्ण सिकंद नीला प्राण – ‘आपके काम को हजार बार सलाम।’

लेकिन लोडिए, अपनी बात का मैं खुद ही खंडन करना चाहता हूं। आपको बता दें कि एक बड़ी और चर्चित व्‍यक्ति है, जिसे हम प्राण के नाम से जानते हैं – वो थे कार्टूनिस्ट प्राण, प्राण कुमार शर्मा, जिन्‍यो अंकल चौधरी और साबू जैसे जबरदस्‍त पापुलर कैरेक्‍टर रचे। शुरुआत में बच्चियों की पत्रिका ‘लोटपोट’ के लिए उनके ये दून चरित्र बहुत लोकप्रिय हुए कि बाद में प्राण साहब ने इन्हें केन्‍द्र में व्याप्त कॉमिक्‍स मैगज़ीन प्रकाशित किए। एक और प्राण शर्मा थे जो ब्रिटेन में बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक थे। हिंदी गज़ल के उस्ताद शायर थे। बहरहाल, अपवाद अपवाद होते हैं, नियम नहीं बनते।

दिल्ली के बल्‍ली मारां मोहल्‍ले का नाम तो आपने सुना ही होगा। ‘बल्ली मारां के मोहल्ले की वो पचीदा सी गालियाँ…’ गुलज़ार जब ‘ग़ालिब’ का परिचय देते हैं तो कुछ इसी तरह उनकी पैदाइश के स्थान का पता बताते हैं। ‘ग़ालिब’ का जन्म भी इसी मोहल्ले में हुआ था। प्राण कृष्ण सिकंद ने भी इसी तरह के इलाके में पहली किलकारी भरी थी। 12 अगस्त 1920 को जन्‍मे प्राण के पिता केवल कृष्ण सिकंद एक सरकारी निगम थे जो ज्‍यादातर सड़क और पुल बनाते थे। एक्सपोजर के पास का कलसी पुल उन्‍हीं ने बनाया था।

पिता का काम ऐसा था कि एक शहर से दूसरे शहर से पीछा छुड़ाया था। इसलिए उनकी शिक्षा कपूरथला, उन्नाव, मेरठ, मिरर और रामपुर में हुई। विज्ञान में ज़हीन होने के बावजूद प्राण ने दसवीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी और अपने शौक को तरजीह देते हुए कैमरे के लैंस से दुनिया देखने का फैसला किया।

शौकत को प्रोफेशन बनाने के लिए दिल्‍ली की एक कंपनी में फोटोग्राफी की बैरिकियां सीखने पहुंच गईं। कुछ समय बाद कंपनी ने पैशाचिक भेज दिया। शिमले में एक बार काम के संबंध में रामलीला देखने पहुंचे। घटनाएं कुछ ऐसा हुआ कि सीता के रोल को प्राण ने हरकत, प्राण ने जो कभी भी एक्‍तर नहीं बनना चाहते थे। उनके शौक और जूनून सिर्फ और सिर्फ फोटोग्राफी थी। बता दें उस दिन महिला चरित्र पुरुष कलाकार ही अटके हुए थे। सीता का रोल करने और अपने अभिनय से दर्शकों को चमत्कारित करने के बाद भी वे अभिनय से दूर ही रहे। जानिए उनके साथ राम के पात्र छवि वाले अभिनेता कौन थे ? फिल्मी विलेन मदन पुरी। बर्नर।

कुछ समय बाद कंपनी ने लाहौर भेज दिया। वहां संयोग से उनकी मुलाकात पंजाबी फिल्मों के लेखक और निर्देशक वली मोहम्मद वली से हुई। उन्हों पहली नज़र में स्टालिस्ट और बांका नौजवान भा गए। उन्‍होंने प्राण को फिल्‍म में काम करने की पेशकश की। फिल्म में उन्मुक्त खलनायक का रोल मिला। इस पहली पंजाबी फिल्म का नाम था ‘यमला जट.’ ये 1940 की बात है। ‘खानदान’ की पहली हिंदी फिल्म थी जिसमें उन्‍होंने रोमांटिक हीरो का किरदार निभाया था। उनकी हीरोइनें नूर थीं जहां. बस फिर क्या था प्राण तो सुपर स्टार बन गए।

इस दौरान 1945 में शुक्ला अहलूवालिया से उनका विवाह हो गया था। आज़ादी के बाद वो बड़ी उड़ीमीदें लेकर मुंबई आ गए। मानक होटल में बीवी-बच्चे के साथ रुके। लेकिन यहां भी निराशा ही हाथ लगी। हालत यह हो गई कि आर्थिक तंगी के चलते एक छोटे सी लॉज को अपना ठिकाना बनाना पड़ा। लंबे संघर्ष के बाद उनकी किस्मत जागी जब उनके दोस्‍त मंटो ने उन्‍हें डायरेक्‍टर से भयभीत लतीफ से मिलवाया। इस तरह एक फिल्म मिली। यह फिल्म थी देवानंद और कामिनी कौशल स्‍टारर ‘जिद्दी’। इसके बाद प्राण ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

प्राण ने लगभग 400 फिल्मों में काम किया है। उन्‍हीं किसी विलन को नया अंदाज दिया। वे वर्टाईल एक्ट्टर थे, जब तक कि उन्नीस ग्रामीणों के लोग उनसे (उनके चरित्रों से) घृणा करते हैं। फिर उन्नीस ने बदला लिया और कलाकार कलाकार के रोल को अपनाया, पहली ही फिल्म में अपनी स्वीकार्यता से उन लोगों को यू टर्न लेने पर मजबूर कर दिया। ‘उपकार’ के मलंग बाबा (प्राण) को इतना प्यार मिला कि हीरो मनोज कुमार भी पीछे रह गए। राम और श्याम के क्रूर चरित्र वाले कलाकार ने जब ‘कस्‍मे कहा प्‍यार वफा सब बोले हैं वादों का क्‍या’ परदे पर गए तो दर्शकों को आंखों को रखने के लिए अफवाह निकालना पड़ा। अदाकारी की हर फील्ड में उन्‍हें न सिर्फ हाथ आजमे बल्कि हर जगह अपनी अदाकारी का लोहा भी मनवाया। किशोर कुमार के साथ ‘हाफ टिकट’ में उन्नीस कॉमेडी में भी हाथ साफ किया। इससे पहले ‘कश्मीर की कली’ में वे विलेन को कामिक टच दे चुके थे।

वे सीसीटीवी स्क्रीन में बातचीत अदायगी दूसरों से जुदा करती है। ‘इस इलाके में नए आए हो साहेब, वरना शेरखां को कौन नहीं जानता।’ जंजीर का ये डॉयलॉग उनके फैन आज भी दोबारा मिल जाएंगे। ‘खराब’ ‘प्राण’ ने जब ‘अच्छे’ चरित्रों की ओर आकर्षित किया तो भी केयरेक्टर्स में उनकी ठसक का अंदाज बना रहा। मजबूर फिल्म का माइकल अपने फैन से मुखातिब होकर कहता है ‘फिर न कहे माईकल दारू पीकर दंगा करता है।’

ब्लॉगर के बारे में

शकील खान

शकील खानफिल्म और कला समीक्षक

फिल्म और कला तथा समीक्षक स्वतंत्र पत्रकार हैं। लेखक और निर्देशक हैं। एक फैक्ट फिल्म लिखी है। एक सीरियल सहित कई पोस्ट्युमेंट्री और टेलीफिल्में लिखी और निर्देशित की गई हैं।

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