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प्रभासाक्षी न्यूज़रूम: वो कौन-सा डर था जिसकी वजह से शहबाज शरीफ ने अचानक विश्वास हासिल कर लिया?

एएनआई

पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा में चुनाव के लिए पाकिस्तान के निर्वाचन आयोग को धन दावों की मांग सरकार द्वारा पेश किए गए धन को राष्ट्रीय विधानसभा द्वारा खारिज किए जाने के बाद शाहबाज सरफ के अधिकारों से विश्वास मत हासिल करने की वजह बन रहा है थे।

पाकिस्तान आर्थिक मोर्चों पर तो बदली प्रभाव के साथ ही वहां राजनीतिक मोर्चों पर भी भारी बोझ है। सर्वोच्च न्यायालय कह रहा है कि चुनाव कराओ लेकिन सरकार का कहना है कि पैसे नहीं हैं। यही नहीं पाकिस्तान की वहां सरकार के सर्वोच्च न्यायालय से कह रही है कि भारत पर हमला कर सकता है इसलिए सरकार का ध्यान अभी चुनाव पर दावा ठीक नहीं होगा। लेकिन इन सभी अटकलों के बीच पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने गुरुवार को अचानक से नेशनल असेंबली में विश्वास हासिल कर लिया है। सरकार और शीर्ष न्यायपालिका के बीच बढ़ते टकराव के बीच चौंकाने वाले एक घटना के तहत 180 सांसदों ने शहबाज सरफराज के नेतृत्व में पूर्ण भरोसा जताया। वैसे विश्वास मत हासिल करने के लिए शहबाज शरीफ को केवल 172 वोटों की जरूरत थी। पाकिस्तान पार्टी (पीपीपी) के प्रमुख लोग और विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी ने निचले सदन में प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ के नेतृत्व में पूर्ण विश्वास को लेकर एक प्रस्ताव पेश किया। प्रस्ताव को 342 सदस्यों की नेशनल असेंबली में 180 सांसदों का समर्थन मिला। हम आपको बता दें कि पिछले साल अप्रैल में जब शहबाज शरीफ प्रधानमंत्री फिर गए थे, तब उन्हें 174 सांसदों का समर्थन हासिल हुआ था। प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने बाद में सदन को संदेश दिया और उन पर विश्वास जताने के लिए सांसदों को धन्यवाद दिया। हालांकि, इसकी सूचना सबसे पहले मरियम औरंगजेब ने उन खबरों को खारिज कर दिया था कि शीर्ष न्यायपालिका के साथ विवाद के बीच प्रधान मंत्री शहबाज सरफराज संसद में विश्वास हासिल करेंगे।

आपको बता दें कि पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा में चुनाव लड़ने के लिए पाकिस्तान के चुनाव आयोग (ईसीपी) को हम दावों की दावेदारी सरकार द्वारा पेश किए गए धन लोगों को राष्ट्रीय विधानसभा द्वारा खारिज किए जाने के बाद शाहबाज सरफ के दावों से दावा किया गया मत हासिल करने की छलांग लगा रहे थे। इस साल अगस्त में नेशनल असेंबली का पांच साल का कार्यकाल पूरा हुआ। संविधान के मुताबिक, छोटे-छोटे घरों के विखंडन के 90 दिनों के भीतर चुनाव होंगे। इसका मतलब यह है कि अक्टूबर के मध्य तक चुनाव होना चाहिए। पाकिस्तान में पिछला आम चुनाव जुलाई 2018 में हुआ था। हम आपको बताते हैं कि इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) प्रांतीय विधानसभाओं के चुनाव को लेकर दबाव बनाने के लिए दबाव बना रही है। लेकिन सरकार निर्णय में एक साथ चुनाव के लिए अपने रुख पर कायम है।

इस बीच, पाकिस्तान में चुनाव को लेकर जारी गतिरोध को समाप्त करने के लिए गुरुवार को सरकार और संबंधित के बीच बैठक हुई और दोनों ने शुक्रवार को भी इस मुद्दे पर बातचीत जारी रखने का फैसला किया। सूत्रों ने बताया कि पहले दौर की बातचीत संसद भवन की संसदीय सूची की संख्या-3 में हुई और बैठक दो घंटे तक चली। सूत्र ने बताया कि बातचीत अच्छे माहौल में हुई और दोनों ने अपना-अपना रुख सामने रखा। सरकार की वार्ता टीम के एक प्रमुख सदस्य जोसेफ रजा गिलानी ने पहले दौर के बाद मीडिया को बताया कि वार्ता शुक्रवार को फिर से शुरू होगी। उन्होंने कहा कि पीटीआई की मांग करने वाले अपने और सरकार के गठबंधन सहयोगियों को अलग-अलग जागरूक करेंगे।

हम आपको यह भी बताते हैं कि पाकिस्तान की सरकार ने ऐसा समय विश्वास मत हासिल किया है जब इस तरह की छलांग लगा रही है कि पाकिस्तान में मार्शल लॉ लागू किया जा सकता है। डर और आतंक की बढ़ती घटनाओं के कारण पाकिस्तान सरकार की अलोकप्रियता भी चरम पर है। ऐसे में सदन का विश्वास हासिल कर शाहबाज शरीफ ने अपने राजनीतिक और अन्य सुधारों पर वृद्धि की सफलता की चाल तो चल दी है लेकिन यह देखने को मिलेगा कि सेना और सर्वोच्च न्यायालय उन्हें कितने दिन तक पद पर बने रहने देंगे।

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Saurabh Namdev

| PR Creative & Writer | Ex. Technical Consultant Govt of CG | Influencer | Web developer
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