अफगानिस्तान के साथ शुरू से ही यह परेशानी हो रही है कि वह देश के रूप में कभी एकजुट नहीं हो रहा है। वहां की जनता ने हमेशा कभी बाहरी शासकों और कभी घरेलू शासकों के अत्याचार को सहा। आज वहां के लोगों का राज है और उनकी सजा उन लोगों को कमजोर पड़ रही है।
नमस्कार, प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में आप सभी का स्वागत है। आज के एपिसोड में हम बात करेंगे अफगानिस्तान की। भारत के इस पड़ोसी देश में लॉकडाउन का राज है। भारत के लिए पड़ोस में पाकिस्तान और चीन जैसे दुश्मन शायद कम नहीं थे इसलिए अफगानिस्तान में भी आ गए। क्या ताले भारत के लिए बहुत बड़ा खतरा है और क्या चमक कुछ घटनाओं को देखें तो प्रत्यक्ष ताले अब पाकिस्तान के खून के पत्ते हो गए हैं? ऐसे कई सवाल हैं जो इस समय लोगों के मन में उठ रहे हैं। इन सभी मुद्दों पर प्रभासाक्षी ने ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) डीएस त्रिपाठी से बातचीत की। पेश हैं इस बातचीत के मुख्य अंश-
प्रश्न-1। इससे पहले कि हम अफगानिस्तान की वर्तमान स्थिति पर चर्चा करें मैं आपसे जानना चाहता हूं कि अफगानिस्तान का इतिहास क्या रहा है?
उत्तर-अफगानिस्तान के साथ शुरू से ही यह परेशानी हो रही है कि वह देश के रूप में कभी एकता नहीं बना रहा है। वहां की जनता ने हमेशा कभी बाहरी शासकों और कभी घरेलू शासकों के अत्याचार को सहा। आज वहां के लोगों का राज है और उनकी सजा उन लोगों को कमजोर पड़ रही है। जहां तक भारत और अफगानिस्तान के रिश्तों की बात है तो दोनों देश सदियों से नाता हैं। दोनों देशों के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों के अलावा हजारों परिवारों के बीच पारिवारिक रिश्ते भी हैं।
प्रश्न-2. इस समय अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच चमन सीमाओं पर जो संघर्ष चल रहा है, उसके कारण क्या है और इस संघर्ष का परिणाम आप क्या देखते हैं?
उत्तर-अफ़ग़ानिस्तान ने कभी उस रेखा को नहीं माना जो पाकिस्तान के गठन के समय खींची गई थी। अफगानिस्तान का कहना है कि पाकिस्तान का गठन बाद में हुआ जबकि अफगानिस्तान का अस्तित्व पहले से ही है। इसलिए अफगानिस्तान का कहना है कि पाकिस्तान के इलाके में पश्तूनों के इलाकों पर चढ़ाई का कोई हक नहीं है। इसके अलावा जब अफगानिस्तान को अफगानिस्तान में सत्ता मिल गई तो उन्होंने अब पाकिस्तान के उन क्षेत्रों को भी अपने साथ लेने की योजना बनाई जिसे वह अपना मानते हैं।
प्रश्न-3। चाहे तहरीक ए पाकिस्तान हो या असैन्य आन्दोलन, दोनों ही पाकिस्तान के खून के प्यासे हो रहे हैं। ऐसी स्थिति क्यों आ गई जबकि जब अफगानिस्तान पर कब्जा हो गया था तब पाकिस्तान ने जश्न मनाया था?
उत्तर- दरअसल पाकिस्तान ने यह सोचा था कि आन्दोलन के आ जाने से उसे अपने मिशन कश्मीर को पूरा करने में मदद मिलेगी लेकिन आन्दोलन की बढ़ती महत्वाकांक्षा ने उसकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। दूसरा हवाई अड्डा जब अफ़ग़ानिस्तान का सत्ता से बाहर था तब उसे पाकिस्तान की ज़रूरत थी लेकिन आज उसकी ज़रूरत खत्म हो गई है। इसके साथ ही ताले को यह भी दिख रहा है कि पाकिस्तान अब उसकी किसी भी तरह से मदद करने की स्थिति में नहीं है इसलिए भी चाहे पाकिस्तान के हवाई अड्डे हों या फिर जुड़ गए हों…दोनों ही पाकिस्तान के खिलाफ हो गए हैं।
प्रश्न-4। खबर है कि पाकिस्तानी मौलवियों का एक प्रतिनिधि दक्षिण-पश्चिमी चमन सीमा क्षेत्र में सीमा पार शत्रुता को समाप्त करने के लिए अफगान अधिकारियों के साथ बातचीत करने के लिए इस सप्ताह अफगानिस्तान की यात्रा करेगा। जब सुरक्षा शेयरों की बैठक में मुद्दे नहीं बनेंगे तो क्या मौलवियों की बैठक में मुद्दे हल हो जाएंगे?
उत्तर- मौलवियों का प्रतिनिधि मंडल कुछ नहीं पाएगा क्योंकि पाकिस्तान के कट्टरपंथियों से बड़े कट्टर काबुल में बैठे हुए हैं। वह पाकिस्तान के मौलवियों का सत्तासीन जरूर होगा, लेकिन उनकी बात कभी नहीं मानेंगे। आन्दोलन अपनी छवि को लेकर काफी सख्त रुख रखता है इसलिए वह कभी भी नर नहीं पड़ेगा।
प्रश्न-5. पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी ने कहा है कि उनके मुल्क अफगानिस्तान के शासक शासकों से निपटने के लिए अपनी रणनीति पर विस्तार कर सकते हैं। आपको क्या लगता है कि दोनों देश आपस में भिड़ सकते हैं? ऐसे में यह सवाल भी उठ रहा है कि पाकिस्तान किसकी ओर रुख करेगा?
उत्तर- पाकिस्तान की नीति अफगानिस्तान के प्रति हमेशा से ही गलत रही है। पाकिस्तान कभी भी लोकतांत्रिक अफ़ग़ानिस्तान नहीं देखना चाहता था इसलिए उसने आन्दोलन को प्रशिक्षण दिया, उसे हथियार दिए और अमरीका और अफ़ग़ानिस्तान की चुनावी सरकार से लड़ने के लिए प्रेरित किया, लेकिन अब जब उसका पाठ पाकिस्तान को सिखाता है तो पाकिस्तान की बात नहीं सुन रहा है तो बिलावल भुट्टो रणनीति पर निरंतरता की बात कर रहे हैं। जहां तक पाकिस्तान कट्टरपंथियों की बात है तो वह यह भी देखता है कि संघर्ष की स्थिति में पलड़ा किसका भारी है और इसी आधार पर वह आगे का फैसला करेगा।
प्रश्न-6। तालेबंदी ने शुरू में कहा था कि अब हम कमज़ोर हो गए हैं, लेकिन जिस तरह से पहले से महिलाओं के अधिकारों को कुचला जा रहा है, उसी में उन्हें किस तरह विश्वविद्यालय में शिक्षा हासिल करने से रोका गया है, उन्हें कैसे देखें क्या तुम हो
उत्तर-आंदोलन ने दोहा वार्ता के सभी संभावनाओं पर घिरे हुए हैं जोकि गलत है। लेकिन यह सवाल है कि उन्हें समझाए कौन। वहां महिलाओं के साथ जो अत्याचार हो रहे हैं दुनिया उसे बस देख रही है। स्विमिंग को कट्टर सोच से बाहर निकलना होगा और महिला शिक्षा तथा स्वतंत्रता की दिशा में कदम उठाना होगा।
प्रश्न-7. भारत की अफगानिस्तान नीति क्या है? क्या यह नीति सफल है? अगर नहीं तो इसमें क्या सुधार जल्द होने चाहिए?
उत्तर- भारत की अफगानिस्तान नीति हमेशा से ही अपने इस पड़ोसी देश की मदद करने की कर रही है। आदि काल में राजाओं और शासकों ने की। स्वतंत्र भारत ने भी अफगानिस्तान को हर तरह से मदद दी। अफगानिस्तान की संसद का निर्माण हो या वहां पुल और सड़कें बनने की बात हो या फिर सौर ऊर्जा के जरिए बिजली पहुंचने की बात हो… भारत ने वहां कभी भी अपना हाथ पीछे नहीं खींचा। अभी भी जब अफगानिस्तान को सबसे अधिक मानवीय मदद की जरूरत है तब भारत ही वहां रिकॉर्ड में अन्न, दवाइयां, कंबल, टैंट और अन्य जरूरी सामान ला रहे हैं ताकि कोई भूखा न रहे।
इसके साथ ही अफगानिस्तान में जब-जब सर्वे हुए हैं, तब-तब यह सामने आया है कि अफगान जनता के दिल में भारत और भारतीय बसते हैं क्योंकि यहां के लोग उस देश की निस्वार्थ मदद करते हैं। इसके अलावा तालेबान भी देख रहा है कि अफगानिस्तान के विकास में भारत कितनी बड़ी भूमिका निभा रहा है इसलिए उसकी नजरिया भी भारत के प्रति बदले में नजर आ रही है। ही साथ भारत अफगानिस्तान को लेकर कितना गंभीर है इसका अंदाजा इसी से लगता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने अफगानिस्तान को लेकर कई देशों की एक बैठक दिल्ली में बुलाई थी। इस दिल्ली डॉयलॉग से कई उपयोगी बातें निकल कर आई थीं। यही नहीं हाल ही में कुछ विदेशी मंचों पर भी भारत ने अफगान को लेकर विभिन्न देशों के साथ वार्ताएं की हैं।