मनोज बाजपेयी ने यह भी बताया कि फाइनली उन्होंने ‘गुलमोहर’ जैसी फिल्म क्यों डेट की। साथ ही एक्टर से जब बॉलीवुड फिल्मों का बायकॉट लेकर सवाल किया तो उन्होंने एक लाख तक की बात कह दी। पेश है उनसे एक खास बातचीत।
‘गुलमोहर’ को वजह कि क्या वजह थी?
– किसी भी स्क्रिप्ट को क्रिएट करने की वजह से स्क्रिप्ट होती है। आप कोई भी फिल्म करते हैं तो सबसे पहली स्क्रिप्ट देखते हैं कि इसमें ऐसा क्या है। जब आप सामान्य होते हैं तभी आपको पता चल जाता है कि मैं इसका हिस्सा होने वाला हूं या नहीं अगर सच बताऊं, तो मैं 25-30 पेज शेयर करता हूं ज्यादातर स्क्रिप्ट का। मैं कभी पूरी स्क्रिप्ट नहीं पढ़ता हूं क्योंकि मैं एक पाठक के तौर पर 25-30 पेज तक अगर मैं कहानी से जुड़ा नहीं पाया या स्टोरी के क्राफ्ट से जुड़ा नहीं पाया या फिर चरित्रों से संबंधित नहीं पाया तो उतने के बाद तो ऑडियंस भी नहीं देख पाएंगे। लेकिन जो फिल्में आप करते हैं तो आपको पता ही नहीं चलता कि आपने शुरू कब किया और कब खत्म हो गई, तो इस फिल्म की जो सबसे अलग लगी कि ये फैमिली फिल्म है तो ही लेकिन ये वो फैमिली फिल्म नहीं है जो हम देखते आए हैं। इसकी कुछ विचित्र बात है कि सब कुछ होते हुए भी, फैमली फिल्म होते हुए भी, सुंदर फिल्म होते हुए भी एक बहुत ही प्रगतिशील या यों कहते हैं कि कुछ एक किनारा इसके मिट्ठू से रूखे हुए हैं, तो वो जो रूखापन है वो मुझे बड़ी पसंद है इस फिल्म में आए।
अब आपके लिए कैसे खास तौर पर रोल लिखे जाते हैं, तो इस बदलाव को देखते हैं?
-मैं बहुत भाग्यशाली रहा अगर सच कहूं तो। ओटीटी की कल्पना किसी की नहीं थी। मैं इंडस्ट्री में उस समय आया था, जब स्क्रिप्ट का चलन भी नहीं था, वो ट्रेडिशन भी नहीं था कि किसी से आप स्क्रिप्ट सको और उसके बाद ‘सत्या’ आई तब मुझे एक पावर मिला और तब मैंने स्क्रिप्ट मांगना शुरू किया लेकिन तब भी उस तरह से स्क्रिप्ट नहीं मिलती थी। वहां से यहां तक और मुझे नहीं लगा कि मेरे जैसे कलाकार जो थिएटर से आए थे या बहुत सारे महान कलाकार आए थे फिर चाहे वो फ़िर हो, केके हों, नवाज हो, या पंकज हो या विजय या जयदीप ये सारे ही लोग तो बहुत चमत्कार के कलाकारों को जो मौका मिला वो एक हद तक सिनेमा हमको दे सकता था लेकिन हमारे कैसे जीवन, हमारे कैसे का चुनाव और हमारे कैसे के सपनों को पूरा करने की काबिलियत अगर किसी में थी, तो वो ओटीटी के पास ही थी, क्योंकि जब आप नंबर से पहले शुरू करेंगे तो हम कहीं भी टिक नहीं पाएंगे। हम जो भी करना चाहते थे, हमने किया लेकिन बॉक्स ऑफिस नंबर की वजह से हमें हमेशा पिछली क्लास में रखा गया।
लेकिन ओटीटी ने हमारे जैसे कलाकारों को ना सिर्फ काम दिया बल्कि लोगों को बताया कि उन्हें सेलिब्रेट करना चाहिए, उन्हें इज्जत देना या उनके काम को देखना। बॉक्स ऑफिस नंबर के लिए एक खास तरीके के स्टार हैं, हर दिन फिल्में देखने के लिए ऑडियंस जाती है, क्योंकि वो इंटरटेनमेंट करना चाहते हैं और हम मनोरंजन के लिए कुछ करते ही नहीं हैं। हम कहानी कहना चाहते हैं। तो इसलिए थिएटर में हम एक हद तक ही जा सकते थे और इसके आगे हमको ओटीटी ही लेकर जा सकते थे।
एक एक्टर के तौर पर आपके लिए सब मुश्किल दौर कौन-सा था?
-बहुत से मुश्किल दौर हैं। मैं बहुत-सी अच्छी फिल्मों की हूं, लेकिन कोई भी फिल्म ट्रेड के होश से अच्छी नहीं हो रही थी। फिर चाहे वो दिल पर मत ले यार हो या फिर 1971 जो कि इतना कमाल की फिल्म है। जब वो यूट्यूब पर आई, तो उसे डिजिटल ब्लॉकबस्टर कहा गया। ‘पिंजर’ हो या ‘बुधिया सिंह’ हो, तो ये सभी फिल्में बॉक्स ऑफिस के नंबर के हिसाब से सही नहीं थी। उसके बाद लोगों ने मुझे काम देना बंद कर दिया या यों कहूं की काम की इजाजत देना बंद कर दिया। तो वो जो दौर था काम का ना होना या अपनी तरह की स्क्रिप्ट का नहीं मिलना और उस पर वो काम करना, जिससे आपकी सोच चली तो वो सबसे मुश्किल दौर था मेरे लिए। क्योंकि मैं वो काम करना ही नहीं चाहता था, फिर भी मुझे करना पड़ रहा था क्योंकि सर्वाइव करना था। आप जब सर्वाइव करने के लिए काम कर रहे हैं, तो वो अच्छी स्थिति नहीं है। एक कलाकार के लिए इससे बहुत दुखद और कुछ नहीं हो सकता है कि जो अपने तरीके से जीवन को चला ना सके या अपने तरीके से काम ना कर सके।
एक पिता या एक पति होने से आपके अभिनेता होने में कितना सहयोग मिला है?
-देखिए जब आप घर का सम्मान करते हैं, तो घर आपका सम्मान करता है और मेरा ये लाइव फील होता है। मेरी शादी जो इतनी अच्छी चल रही है, इसमें मेरी पत्नी का बहुत बड़ा हाथ है। उन्होंने हमारी बच्ची को पालने में जो त्याग किया है वो मेरे ख्याल से और जो भी त्याग करता है उसका ऋण आप कभी चुका नहीं सकते हैं और ज्यादातर मामलों में त्याग औरत ही करता है। वो कर्ज है, जो मेरे मन को कचोटा भी है अब जब मेरी बेटी की सदस्यता चली गई है तो जब मैं अपनी पत्नी को किसी फोकसमेंट में देखता हूं या शाम को बैठे हुए या लोगों से बात करता हूं या एक इंडिविजुली हूं को व्यक्त करता हूं तो इससे ज्यादा खुशी मुझे कभी नहीं हुई और ये इसलिए क्योंकि इतने सालों से नहीं किया है। वे इस बात पर ध्यान देते हैं कि एक मां का रोल कैसे बनता है। आज मैं जो कुछ भी हूं उसकी श्रेयसी मैं अपने मां-बाप को इसलिए नहीं देता क्योंकि मैं 18 साल की उम्र में घर से निकल गया था, हां ठीक है, उन्होंने एक आजादी दी थी कि तुमको जो करना है करो। लेकिन उसके बाद जब से मेरी शादी हुई है तब से जिस तरह से शबाना (उनकी अभिनेत्री पत्नी) ने मेरा साथ दिया है, तो अगर वो नहीं होता तो शायद मैं यहां नहीं होता।
शर्मिला टैगोर के साथ कैसा अनुभव रहा है ?
-उन्हें देखते ही हमको सिर्फ गाने याद आते हैं। मैं तो उनकी उपस्थिति में भी गाना गाता था। मेरे माता-पिता फिल्म देखने के बड़े शौकीन थे और शायद इसीलिए मैं एक्टर बना। जब भी शहर के हर कोने से लोग आते थे तो हमेशा हमें फिल्म दिखाने के लिए वायलेट से लेकर आते रहते थे। तो हमारे शहर में फिल्में हमेशा दूसरी या तीसरी बार आती थीं, उनमें मुझे याद था कि शर्मिला जी का इवनिंग इन पेरिस पर हस्ताक्षर जैसे फिल्मों के हम दीवाने हुए थे, तो हम उनके सामने हमेशा पंखे ही रहे हैं और आज भी उनके फैन हैं ही है, लेकिन उन्होंने हमें इतनी आजादी दी कि हम उनसे बात कर सकते हैं और उस तरह से बात कर सकते हैं। वो सामने वाले को हर तरह से कमाल कर देते हैं, वो बहुत ही कमाल है।
बॉयकॉट पर आपकी राय क्या है?
-बॉयकॉट पर इतना ध्यान क्यों दें? सोशल मीडिया को इतना तवज्जो हम अन्यथा ही देते हैं। अगर आप फोन देखना बंद कर देते हैं और अगर किसी दोस्त के साथ रेस्टोरेंट में बैठकर खाना खा रहे हैं तो सोशल मीडिया का बॉयकॉट आपको बॉदर ही नहीं करेगा। तो आप इतनी उत्सुकता मत दीजिए कि लोग आपको क्या कह रहे हैं। अगर आप रेडियो पर भी जा रहे हैं तो अपनी बात कह कर निकल जाइए। इंस्टा पर अपनी खूबसूरत-सी फोटो डालिए और निकल जाइए। बाकी दुनिया जले तो अवलोकन दें।