
अनुभव सिन्हा ने आपकी नई फ़िल्म ‘भीड़’ का निर्देशन किया है और पलायन के ख़तरे के मंज़र पर आधारित है। आपके लिए निजी तौर पर वो दौर कैसा रहा?
-इस मामले में मैं काफी खुशकिस्मत रहा हूं, क्योंकि एक साल में मैं व्यास में था। हम वहां प्रतिबंधित थे, लेकिन मुझे निजी तौर पर कोई नुकसान नहीं हुआ। हां, मेरे कुछ दोस्तों के यहां कोरोना के कारण ट्रेज भी हुआ। बहुत दुख हुआ। वह वक्त सभी के अंदर एक डर था, क्योंकि पूरी दुनिया जाम थी और हम एक एक्टिविस्ट माहौल में जी रहे थे। हर वायरस पल का खतरा सिर पर मंदरा रहा था। एक चीज मैंने उस दौरान आशंका कर ली थी। कई लोगों को ये सही लगता है और कइयों को गलत। मैंने साल-डेढ़ तक टीवी नहीं देखा। मैं अपने ऊपर इस बात का असर नहीं डालना चाहता था। उन हादसों को लगातार लार्जर डेन लाइफ दिखा रही है कि खतरा और दुखों का कारण ही हो रहा था। दूसरे वेव में मैंने मुंबई में था और उसे मैंने बहुत ही मैसेज लिया था। मुझे परिवार और आपके साथ काम करने का मौका मिला। हमें अपने आस-पास की घटनाओं के बारे में सोचने का मौका मिला, कम में जीना मुझे खुशी हुई। मगर जब भी हम भटकते हैं और नज़र-प्यासे लोगों की खबरें देखते हैं और देखते हैं तो दिल पसीज जाता है।
श्याम बेनेगल की आरोहण से आपने 1982 में अपने करियर की शुरुआत की और उसके बाद 40 साल में आपने कई न लिप्से जाने वाले रोल किए, लेकिन आपके चाहने वालों को लगता है कि आप जैसे उत्कृष्ट अभिनेता को उनका ड्यू नहीं मिला। तुम क्या हो?
– मैं ऐसा नहीं सोचता। मुझे लगता है कि ऊपर वाले का बहुत करम और मेहरबानी है कि मुझे इतना काम और पहचान मिली है। मैं बेहद खुश और पक्का हूं। बाकी तो गालिब का शेर है, ‘बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले।’ लेकिन जब मैं देखता हूं कि मैं कहां पैदा हुआ था और मैंने कहां से शुरुआत की और पिछले 45 सालों में जहां से निकल कर यर कहता हूं, मैंने अपने करियर में कितना काम किया, इन सभी चीजों को देखते हुए धन्यवाद के कुछ नहीं बोले । आज की तारीख में भी उसी ऊपर वाले की मेहरबानी से काम मिलता है। मुझे ये नहीं लगता कि मेरा बकाया बाकी है, लेकिन हां, मेरे दर्शकों को ये जरूर महसूस होता है। एक अभिनेता के रूप में मैं सोचता हूं कि थोड़ा भूख बाकी रहनी चाहिए। ओवरईटिंग सही नहीं है।
सुप्रिया पाठक जैसे समर्थ, शांत और सौम्य अभिनेत्री की पत्नी के रूप में पाकर आप कितनी तारीफ महसूस करते हैं?
– बहुत ही कमाल के इंसान हैं सुप्रिया। वे गर्मी से भरी इंसान हैं। बहुत अच्छी पत्नी और जादू की मां हैं। वे बहुत अच्छे साथी हैं। हम दोनों बहुत करीबी दोस्त भी हैं। अंग्रेजी का एक सेंटेंस है, ‘इंडिपेंडेंस इन टुगेदर्नेस’ साथ बने हुए भी हम पूरी आजादी से एक-दूसरे को काम करने का मौका देते हैं। हमने साथ में भी काम करने की कोशिश की। 4-5 साल की कंपनी भी डूब जाएगी। अलग-अलग तरह से वो अपना अभिनय करती हैं, मैं अपनी एक्टिंग करता हूं। हम दोनों परिवार को साथ रखने की कोशिश करते हैं। हमारा प्रयास यही रहता है कि फैमिली टाइम के साथ-साथ हम एक-दूसरे को भी वक्त दें। अरसे बाद ये बात समझ में आती है कि प्यार के अलावा आपसी सम्मान भी जरूरी है। मगर ये समझ आपको आती-आते ही दिखाई देती है। जो चीजें अच्छी लगती हैं, आप उनका आदर करें और जो चीजें उन्हें पसंद हैं, आप उनकी इज्जत करें। भगवान की कृपा से हमारे बीच सब ठीक ठाक चल रहा है। मैं इससे बेहतर अभिनय की कल्पना नहीं कर सकता।
आपके बेटे सहयोगी कपूर भी अभिनेता के रूप में खुद को कई बार साबित कर चुके हैं। हाल ही में फर्जी सीरीज में उनका काम कनेक्शन किया गया। पिछले सालों में पिता-पुत्र के रूप में आप दोनों का रिश्ता कितना जुड़ गया है?
-मैच्योरिटी के साथ-साथ एक पिता के रूप में अपने बच्चे का बढ़ता हुआ दृश्य बहुत अच्छा लगता है। जब आप अपने सभी विवरण को संभालते देखते हैं और अभिनेता के पिता होने के नाते अभिनेता के रूप में बढ़ते देखते हैं, तो गर्व की चिंता होती है। खुशी होती है कि मेरा बेटा कितना अच्छा कैसे और किस समझ के साथ गड़बड़ काम कर रहा है। फिर थोड़ा-सा ये भी महसूस होता है कि अब वक्त आ गया है अपने बेटे से सीखने का। उन्हें देखते हुए आपको अपमान होता है कि ये आज की पौध है। वे आसानी से आज की तारीख में, आज के दौर में किस तरह का काम होता है, तो कुछ जानकारियां भी लो ताकि आप भी कॉन्टेमपररी रह सको। माफ को देखकर बड़ा मान होता है और साथ में ये भी महसूस करता है कि इससे कुछ खुशी होगी। पिता-पुत्र के रूप में हमारा जुड़ाव जादू की तरह है और उसके अलावा मैं अपने पोते-पोतियों के बेहद करीब हूं। उनका मेरा काफी अनुमान है। मेरी डॉटर इन लॉ मीरा बहुत प्यारी है और मेरी बेटी की तरह है। जब कभी मौका मिलता है, हम साथ में वक्ता जरूर कहते हैं। मुझे उन लोगों के साथ टाइम स्पेंड करना बहुत अच्छा लगता है।
आपकी बेटी सना कपूर भी आपके बहुत करीब हैं?
-बिलकुल। मुझे उनके काम पर बहुत फख्र महसूस होता है। वह बहुत प्यारी और दयालु लड़की है। सख्त भी काम करता है, उन्हें हमेशा उम्मीद मिलती है। एक बात और जो उन्हें देर से पता चलता है कि वे बहुत अधिक काम कर रहे हैं। उनमें से लेटर और डायरेक्ट करने का भी माद्दा है। शक्ल-सूरत भी उन्हें ऊपर वाले ने अच्छी दी है। बाकी तो हर किसी की एक नियति होती है। वही तय करता है कि आपका रास्ता क्या होगा? हाल ही में उनकी एक सीरीज आई है फैमिली कनेक्शन, जिसमें उन्होंने बड़ा कॉमेडी काम किया है। आप जरूर देखें। खिचड़ी सीरियल टाइप की कॉमेडी है। इसमें रत्ना जी (रत्न पाठक शाह) और राज बब्बर भी हैं। हमारा समधियाना (सना कपूर के सास-ससुर सीमा पाहवा और मनोज पाहवा) भी काफी क्रिएटिव है तो सभी अपने अच्छे-अच्छे काम करते हैं। अब छोटे वाले (उनके छोटे बेटे रुहान कपूर) का इंतजार है कि वे कब काम शुरू करेंगे।
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ऑस्कर के मंच पर भारत की जीत पर क्या कहना चाहेंगे?
– मुझे बहुत खुशी और मन लग रहा है। मैं ऑस्कर पाने वालों से यही पीड़ित हूं, ‘देर आए दुरुस्त आए’ ऐसा नहीं है कि हमारा भारतीय सिनेमा कभी भी कहीं कम हो रहा है। लेकिन हां, खनिज-पहुंचते वक्त लग ही जाता है। हमारे यहां वर्ल्ड लेवल की फिल्मों का स्टैंडर्ड तो सन 50 में ही तय हो गया था। हमारे गुरुदत्त साहब, मृणाल दा, और भी कई फिल्मकार हैं, जिन्होंने महान सिनेमा बनाया। कई ऐसे फिल्म निर्माता भी हैं, जो ऑस्कर तक पहुंचने के बावजूद योग्य होने की कोशिश नहीं करते हैं। मुझे लगता है कि ऑस्कर को उसी मान को नहीं माना जाएगा, अगर माना भी जाए, तो बहुत बधाई, मगर इसके आगे भी मुकाम और भी हैं, जहां पहुंचने की सलाइत और अधिकार हमारे फिल्म निर्माता, कहानियों और कलाकारों में है। लेकिन जो यहां तक पहुंचे और आगे ले जाएंगे, उन सभी को मेरी दिल से शुभकामनाएं। यही दिल से कहते हैं कि और आगे बढ़ते और आगे बढ़ते हैं और दुनिया को बताते हैं कि हमारे यहां न तो कहानियों की कमी है और ना ही टेक्नोलॉजी की, न ही टैलेंट की और ना ही क्रिएटिविटी की।
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