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पाकिस्तान ने भारत से व्यापार बंद कर खुद को दी चोट, दवाइयों की भीषण किल्लत से हाहाकार

UNITED NEWS OF ASIA नई दिल्ली/इस्लामाबाद | भारत को जवाब देने के जोश में पाकिस्तान ने खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है। पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत की सख्त प्रतिक्रिया से बौखलाए पाकिस्तान ने भारत के साथ सीमित व्यापार भी बंद कर दिया। अब इस फैसले का बुरा असर पाकिस्तान की जनता पर पड़ने लगा है। देश में दवाइयों की भीषण किल्लत गहराने लगी है, जिससे स्वास्थ्य तंत्र पर बड़ा संकट मंडरा रहा है।

दवा संकट ने मचाया हड़कंप, आपात योजना की तैयारी

पाकिस्तानी मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, ड्रग रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ पाकिस्तान (DRAP) दवाओं की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए आपातकालीन आपूर्ति योजना पर काम कर रही है। हालांकि, अभी तक DRAP की ओर से इस संबंध में कोई औपचारिक अधिसूचना जारी नहीं की गई है।
स्वास्थ्य अधिकारियों को डर है कि अगर जल्द वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की गई तो आवश्यक दवाओं का संकट आम जनता के लिए घातक साबित हो सकता है।

2019 से भी नहीं ली सीख, फिर वही गलती

गौरतलब है कि 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद भी पाकिस्तान ने भारत के साथ व्यापार बंद कर दिया था। उस समय भी दवाइयों की आपूर्ति बाधित हुई थी और मरीजों को भारी संकट का सामना करना पड़ा था। बावजूद इसके, पाकिस्तान ने फिर वही गलती दोहरा दी है।

API सप्लाई रुकने से बढ़ेगा संकट

जानकारों के मुताबिक, पाकिस्तान अपनी दवा जरूरतों का 30-40 प्रतिशत सक्रिय फार्मास्यूटिकल सामग्री (API) भारत से आयात करता था। इसके अलावा मेडिकल उपकरण और अन्य कच्चा माल भी बड़ी मात्रा में भारत से आता था। अब व्यापार रुकने के चलते पाकिस्तान को महंगे विकल्पों जैसे चीन, रूस और यूरोप की ओर देखना पड़ेगा, जिससे दवाओं की कीमतों में तेज उछाल और उपलब्धता में भारी कमी आना तय माना जा रहा है।

अस्पतालों और क्लीनिकों पर पड़ेगा सीधा असर

स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अगर समय रहते सप्लाई चैन बहाल नहीं की गई, तो पाकिस्तान के अस्पतालों और क्लीनिकों का संचालन ठप हो सकता है। इससे न केवल गंभीर बीमारियों के मरीज प्रभावित होंगे, बल्कि रोजमर्रा के इलाज भी बाधित होंगे।

अंतरराष्ट्रीय मदद का सहारा लेने की नौबत?

सूत्रों के अनुसार, यदि स्थिति और बिगड़ती है तो पाकिस्तान को इमरजेंसी मेडिकल सप्लाई के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों का सहारा लेना पड़ सकता है।

 


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