
एडिटर डेस्क @UNA
भारत ने सिंधु जल संधि पर लगाया विराम, चरमपंथी हमले के बाद पाकिस्तान को सख्त संदेश
नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण चरमपंथी हमले के महज एक दिन बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान के साथ 1960 में हुई सिंधु जल संधि को तत्काल प्रभाव से स्थगित करने का निर्णय लिया है। मंगलवार को हुए हमले में 26 लोगों की मौत और 10 अन्य घायल हुए थे, जिसके बाद बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) की बैठक हुई।
बैठक में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल, और विदेश मंत्री एस जयशंकर भी मौजूद रहे। इसके बाद भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने रात करीब 9 बजे एक अहम प्रेस वार्ता में ऐलान किया कि “भारत सिंधु जल संधि को स्थगित करता है। यह निर्णय तब तक लागू रहेगा जब तक पाकिस्तान सीमा पार से आतंकवाद को समर्थन देना बंद नहीं करता।”
क्या है इस स्थगन का मतलब?
भारत ने संधि को निरस्त नहीं, बल्कि स्थगित किया है, जिसका अर्थ है कि संधि तकनीकी रूप से अभी भी अस्तित्व में है, लेकिन उसके तहत भारत की प्रतिबद्धताएं फिलहाल निलंबित रहेंगी।
द हिंदू की वरिष्ठ पत्रकार सुहासिनी हैदर के अनुसार, यह निर्णय बेहद संतुलित है। उन्होंने लिखा, “भारत ने न तो पाकिस्तान के उच्चायोग को बंद किया, न ही संधि को पूरी तरह रद्द किया, लेकिन सार्क वीज़ा सुविधा जैसे कुछ कदम वापस लिए हैं।”
क्या सैन्य कार्रवाई की संभावना है?
द इकनॉमिस्ट के रक्षा विशेषज्ञ शशांक जोशी ने लिखा है कि भारत यदि आगे कोई सैन्य कदम उठाता है तो विकल्पों में एयर स्ट्राइक, स्पेशल फोर्स ऑपरेशन, या LoC पर संघर्ष विराम खत्म करना शामिल हो सकता है। मिसाइल उपयोग की संभावना फिलहाल कम मानी जा रही है।

पाकिस्तान की प्रतिक्रिया
भारत के इस निर्णय पर पाकिस्तान में तीखी प्रतिक्रिया देखी जा रही है। पाकिस्तान के उपप्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इसहाक़ डार ने कहा कि, “भारत का यह फैसला एकतरफ़ा और गैरकानूनी है। यह संधि बाध्यकारी है और विश्व बैंक इसकी गारंटी देता है।”
पाकिस्तान के पूर्व उच्चायुक्त अब्दुल बासित ने दावा किया कि “भारत के पास ऐसा इन्फ्रास्ट्रक्चर ही नहीं है जिससे वह झेलम, चिनाब और सिंधु का पानी पूरी तरह रोक सके।” उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान को इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र और विश्व बैंक में उठाना चाहिए।

क्या भारत वाकई पानी रोक सकता है?
विशेषज्ञ मानते हैं कि भले ही भारत ने निर्णय ले लिया हो, लेकिन उसे लागू करने के लिए बड़े इन्फ्रास्ट्रक्चर और समय की ज़रूरत होगी। पाकिस्तान को हर साल करीब 133 मिलियन एकड़ फीट पानी सिंधु प्रणाली की नदियों से मिलता है, जिसे रोक पाना भारत के लिए तकनीकी रूप से अभी संभव नहीं है।
पाकिस्तानी विश्लेषक शहज़ाद चौधरी का कहना है कि, “इस संधि को लेकर अतीत में भी जंगें हुईं, लेकिन इसका संचालन बाधित नहीं हुआ। भारत का यह निर्णय अधिकतर राजनीतिक प्रतीक है और इसका तात्कालिक प्रभाव सीमित रहेगा।”
आगे क्या?
अब सबकी निगाहें भारत के अगले कदम पर हैं। क्या यह केवल एक राजनीतिक दबाव की रणनीति है या इसके आगे और कठोर निर्णय भी लिए जाएंगे? भारत-पाक रिश्तों के इस ताज़ा मोड़ पर सिंधु जल संधि अब सिर्फ एक जल बंटवारे की व्यवस्था नहीं, बल्कि कूटनीतिक शक्ति संतुलन का प्रतीक बन गई है।