
UNITED NEWS OF ASIA. वाराणसी। भारतीय योग परंपरा के जीवंत प्रतीक और पद्मश्री सम्मानित योग गुरु शिवानंद बाबा का शनिवार रात निधन हो गया। 128 वर्ष की आयु में उन्होंने बीएचयू अस्पताल में अंतिम सांस ली। उनका अंतिम संस्कार रविवार को हरिश्चंद्र घाट पर किया जाएगा। बाबा शिवानंद का देहावसान न केवल योग जगत, बल्कि भारतीय साधना परंपरा के लिए एक अपूरणीय क्षति है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके निधन पर गहरा दुख जताते हुए कहा, “योग साधक और काशी निवासी शिवानंद बाबा जी के निधन से अत्यंत दुख हुआ है। योग और साधना को समर्पित उनका जीवन देश की हर पीढ़ी को प्रेरित करता रहेगा।”
1896 में जन्मे, आजीवन ब्रह्मचर्य और सेवा का जीवन जिया
शिवानंद बाबा का जन्म 8 अगस्त 1896 को ब्रिटिश भारत के श्रीहट्टी (वर्तमान बांग्लादेश) में एक निर्धन ब्राह्मण भिक्षुक परिवार में हुआ था। चार वर्ष की उम्र में उन्हें नवद्वीप के बाबा ओंकारानंद गोस्वामी को सौंप दिया गया। छह साल की उम्र में ही उनके माता-पिता और बहन की भूख से मृत्यु हो गई थी। इसके बाद उन्होंने अपना जीवन योग, ब्रह्मचर्य, साधना और सेवा को समर्पित कर दिया।
योग, संयम और लोकतंत्र में था अटूट विश्वास
वाराणसी के कबीर नगर, दुर्गाकुंड में रहने वाले शिवानंद बाबा हर दिन नियमित रूप से योग और प्राणायाम करते थे। उनके जीवन की सादगी, संयम और निष्ठा उन्हें विशेष बनाती थी। उन्हें लोकतंत्र में भी पूरा विश्वास था—वे हर चुनाव में मतदान करते थे और इसे अपना कर्तव्य मानते थे।
पद्मश्री सम्मान ने दिलाई वैश्विक पहचान
साल 2022 में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने शिवानंद बाबा को पद्मश्री से सम्मानित किया था। वह नंगे पांव राष्ट्रपति भवन पहुंचे थे और घुटनों के बल बैठकर प्रधानमंत्री मोदी का आभार व्यक्त किया था। इस दृश्य ने देशभर के लोगों को भावुक कर दिया था।
एक युग का अंत, प्रेरणा का शाश्वत स्रोत
शिवानंद बाबा का निधन एक युग के अवसान के समान है। वे मात्र योगगुरु नहीं, बल्कि भारतीय परंपरा, सादगी और साधना के मूर्त स्वरूप थे। उनका जीवन आने वाली पीढ़ियों को आत्मसंयम, स्वास्थ्य और आध्यात्मिकता की प्रेरणा देता रहेगा।
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