चारों ओर ‘भगवा बिकिनी’ के नाम से चर्चा
कहते हैं कि ‘मानो तो गंगा मां न मानो बहता पानी’, ‘मानो तो देव न मानो पत्थर’ …ये चीजें संस्कृति ने हमें हमें सिखाई हैं। मजे की बात ये है कि आज लोग बहते पानी को भी गंगा प्रांगण में ले रहे हैं और बिकनी जैसी चीजों में भी धर्म की तलाश कर रहे हैं। आप समझ ही गए होंगे कि यहां बात फिल्म ‘पठान’ की एक्ट्रेस का दीपिका पादुकोण और उनकी ऑरेंज बिकिनी की हो रही है। ये वही बिकिनी है जो चारों तरफ ‘भगवा बिकिनी’ के नाम से चर्चा बटोर रही है। एक्सएमएल, एक बार पूरी बात आपको फिर से संकेत हैं कि मजारा है क्या।
कुछ लोगों के बैनरों में दीपिका की ऑरेंज बिकिनी स्कैन हो गई
खास शाहरुख खान की फिल्म ‘पठान’ का पहला गाना मेकर्स ने 12 जोड़े को लॉन्च किया। गाने का टाइटल है ‘बेशर्म कलर’ और इसी गाने में कुछ झलकियों को लेकर लोगों की शिकायत लगातार बढ़ती जा रही है। बात केवल आपत्तिजनक नहीं है बल्कि अब फिल्म के बायकॉट को लेकर सिनेमाहॉल को भी बोलने की बात कही गई है। दीपिका का ये गाना हुआ रिलीज तो देखिए कुछ लोगों ने बर्नहेन तान दी पर अपने डांस स्टेप्स किए। इतने ही देर में कुछ लोगों की दावेदारी में दीपिका की ऑरेंज बिकिनी भी चढ़ गई। इसी के साथ शुरू हुई बिकिनी के रासों में धर्म को घूमने की कहानी भी। इसलिए तय करें कि महिलाएं अपने अंडरगारमेंट्स के लिए अपने अंडरगार्मेंट्स की खरीद-फरोख्त के लिए राइट्स के सिलेक्शन के बारे में इस दायरे में जाने के बारे में कभी नहीं सोचेंगी। विशेषता, धर्म और राजनीति, इनके साथ चलकर अपना ही आनंद लेते हैं और इसका जादू प्रभाव भी करता है। ऐसा ही हुआ। अब सवाल तो ये भी पैदा होता है कि फिल्मों में इससे पहले भी हिरोइनों ने भगवा रंग की बिकनी में नजर आई हैं और सेंसेशनल पोज़ भी दे चुकी हैं, ऐसे में दीपिका की ही बिकनी पर सवाल क्यों?
फिल्म के निर्माताओं को मिल ने चेतावनी दी है
यहां यह चर्चा का विषय है कि हाल ही में मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने भी ‘पठान’ के इस गाने पर आपत्तिजनक छाया और भगवा बिकनी और ग्रीन शर्ट पर एतराज अपनापन दिखाया। उन्होंने कहा कि यह गाना खराब होने का नतीजा है। इसलिए ही नहीं उन्होंने मेकर्स को चेताया कि अगर फिल्म के गाने के कुछ सीन को हटाया गया तो फिर वो डिसाइड करेंगे कि यह फिल्म उनके राज्य में रिलीज होगी या नहीं। यूपी की अयोध्या में भी ‘पठान’ में दिखें इस भगवा बिकनी का विरोध हुआ और महंत राजू दास ने कहा कि मैं दर्शकों से अपील करता हूं कि जिन भी थिएटर में पठान जाएं उन्हें फुंक दो। उन्होंने यह भी कहा कि ‘पठान’ फिल्म ने साधु संतों और राष्ट्र के रंग भगवा को ठेस पहुंचाई है, जो बहुत बुरा है।
फिल्मों का भी एक माहौल है, उन्हें सांस लेने की आजादी दें
हर जगह का माहौल होता है और फिल्मों का भी एक माहौल होता है और उनका भी अपना नामांकन होता है। इसे भी अपनी दुनिया में सांस लेने दें। बेशक आप फिल्मों में गंदगी फैलाते हैं तो मत देखिए न, कोई फोर्स नहीं, लेकिन इसे धर्म से जोड़कर तो कम से कम इसका विरोध मत कीजिए। मैं यह नहीं कहता कि आपको नेतागीरी नहीं करनी चाहिए, पर कौन से देश में वैसे मुद्दे कम पड़ रहे हैं कि अब हमारे नेताओं को बिकिनी में भी माई दिखने लगा है? हम सब आजाद हैं, हम अपने-अपने पहनावों के अपने पैरों को मान्यता के लिए हमारी अपनी अभिव्यक्ति है और यकीन मानिए अभिव्यक्ति पर निर्णय लेना भी किसी क्राइम से कम नहीं। अब क्या बिकनी और हमारे अंडरगारमेंट्स के रंग भी हम सरकार से पूछकर सिलेक्ट करें?
वर्किंग वाले को भी पता चल जाएगा कि वो डैमेज के निशान से नीचे हैं
और अगर ऐसा है तो इसके और भी तरीके हैं ताकि ऐसा कोई अनर्गल मेल विवाद का रूप ही न ले पाए। आपको ऐसा जो भी रंग लगता है वह उन पैसों की सूची में शामिल हो जाता है और बनवा एएसपी अपना ट्रेडमार्क बना लेता है ताकि उसका इस्तेमाल अंडरगार्मेंट्स जैसे कपड़ों के लिए साफ बैन हो जाए। या फिर एक और तरीका है कि बिकनी या अंडरगार्मेंट्स बनानी वाले बंधकों को उन पैसों की सूची ही दें, जिनका इस्तेमाल कंपनियां बिखौफ कर सकती हैं और लेने वाले को भी पता चल सकता है कि वो खतरों के निशान से नीचे हैं।
ये तब चीजें कर रहे हैं जहां हम आधुनिकता की बातें करते हैं
आश्चर्य ये है कि हम ये बातें इस दौर में कर रहे हैं जहां हम आधुनिकता की बातें करते हैं, हम हाई सोसाइटी और मिडल क्लास के मामले को भी अच्छी तरह से समझते और स्वीकार करते हैं। कहते हैं कि कला का सबसे लोकप्रिय माध्यम सिनेमा है, जिसका सीधा और साधारण सा मतलब मनोरंजन है। यह मनोरंजन कभी रोमांटिक हो सकता है, कभी रोमांच तो कभी रोमांच। क्यों न हम फिल्मों को सिर्फ फिल्म ही दें, इसे मनोरंजन और मस्ती तक बनाएं! क्यों इसके एक-एक धागे से हम इसे देश की राजनीति और धर्म के बीच का जाल बुनते हैं!
(डिस्क्लेमर: लेख में लिखी गई बातें लेखकों के विचार हैं)