भारत भाग्य विधाता

मोदी की उम्मीदवारी पर आडवाणी बोले- BJP दिशा भटक रही: नरेंद्र मोदी को PM बनाने के लिए RSS ने कैसे खोले रास्ते “भारत भाग्य विधाता” के आखिरी क्रम में “नरेंद्र मोदी के किस्से”

9 जून 2013 की घटना है। गोवा में BJP राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक का आखिरी दिन था। तब के पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह सबसे आखिर में भाषण देने आए। 25 मिनट तक राजनाथ ने सामान्य चुनावी बातें कीं और पार्टी नेताओं के बड़े दिल की तारीफ की।

भाषण के आखिर में राजनाथ ने कहा, ‘मैंने फैसला किया है कि केंद्रीय स्तर पर भी सेंट्रल कैंपेन कमेटी बनाई जाए और मैं नरेंद्र मोदी को उस सेंट्रल कैंपेन कमेटी का चेयरमैन घोषित करता हूं।’ राजनाथ के भाषण का वीडियो…

दरअसल, इस फैसले की सुगबुगाहट तो थी, लेकिन इस मीटिंग में ऐसी किसी घोषणा की उम्मीद नहीं थी। पार्टी के कई नेता इस फैसले से सहमत नहीं थे। मंच पर मोदी को देने के लिए गुलदस्ता तक नहीं था। ऐसे में राजनाथ ने किसी और को दिया हुआ गुलदस्ता उठाया और मोदी के हाथों में थमा दिया।

9 जून 2013 की तस्वीर जब राजनाथ सिंह ने नरेंद्र मोदी को 2014 लोकसभा चुनाव के लिए BJP चुनाव समिति का अध्यक्ष घोषित किया।

इस ऐलान के साथ ही 2014 लोकसभा चुनाव के पूरे कर्ताधर्ता मोदी बन गए। राजनाथ सिंह की ये घोषणा नरेंद्र मोदी के भारत का प्रधानमंत्री बनने की दिशा में बड़ा कदम था। हालांकि, नरेंद्र मोदी ने इसकी तैयारी काफी पहले शुरू कर दी थी।

“भारत भाग्य  विधाता ” सीरीज के 14वें और फाइनल एपिसोड में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने की कहानी और उनसे जुड़े किस्से…

गुजरात से नरेंद्र मोदी का राजनीतिक वनवास
BJP की सियासत में नरेंद्र मोदी का सीधा दखल तब शुरू हुआ जब 1987 में संघ ने उन्हें गुजरात का संगठन सचिव बनाया। उस समय गुजरात BJP में शंकर सिंह वाघेला और केशुभाई पटेल का दबदबा था।

1995 के चुनाव में BJP को बड़ी जीत मिली और केशुभाई CM बने। उन्होंने अपने मंत्रिमंडल में वाघेला खेमे के किसी भी विधायक को जगह नहीं दी। इधर वाघेला भी पलटवार के लिए सही मौके की तलाश में थे।

मोदी ने संगठन के अंदरूनी मामलों में केशुभाई का साथ देना शुरू कर दिया। वो उन्हें अपना राजनीतिक गुरु भी मानते थे। इस तस्वीर में बाएं से दाएं केशुभाई पटेल, नरेंद्र मोदी और शंकर सिंह वाघेला दिख रहे हैं।

सितंबर 1995 में CM केशुभाई अमेरिका के दौरे पर गए और इधर वाघेला ने 55 विधायकों के साथ सरकार गिराने की साजिश रच डाली। मसला हल करने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी को अहमदाबाद जाना पड़ा।

दो दिन तक मान-मनौवल चलता रहा। केंद्रीय नेतृत्व को शंकर सिंह वाघेला की 3 शर्तें माननी पड़ीं। सबसे बड़ी शर्त के मुताबिक केशुभाई को मुख्यमंत्री पद से हटाना पड़ा, वाघेला समर्थक विधायकों को मंत्री बनाया गया और नरेंद्र मोदी को सूबे की सियासत से हटाकर दिल्ली में राष्ट्रीय सचिव बना दिया गया।

1995 से 1997 तक गुजरात में राजनीतिक उठा-पटक चलती रही। इस दौरान 3 मुख्यमंत्री बने, लेकिन कोई लंबे वक्त तक सरकार नहीं चला सका। आखिरकार 1998 के चुनाव में BJP ने गुजरात विधानसभा में बड़ी जीत दर्ज की। 4 मार्च 1998 को केशुभाई पटेल दूसरी बार प्रदेश के CM बने।

केशुभाई के कार्यकाल के दौरान गुजरात में भूकंप और सूखे ने भयंकर तबाही मचाई थी। उनका प्रशासन आपदा प्रबंधन में बुरी तरह नाकाम रहा था। संघ, केशुभाई के काम से खुश नहीं था। विश्व हिंदू परिषद के नेताओं से भी उनके रिश्ते अच्छे नहीं थे। वहीं नरेंद्र मोदी दिल्ली में रहकर गुजरात का रास्ता बना रहे थे। वो अक्सर संघ के हेडक्वॉर्टर ‘केशव कुञ्ज’ में देखे जाते।

कहा जाता है कि नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में केशुभाई पटेल के खिलाफ माहौल बनाना शुरू किया। यहां तक कि उन्होंने दिल्ली में कुछ संपादकों से केशुभाऊ के खिलाफ नकारात्मक खबरें करने को कहा था। आउटलुक के संपादक विनोद मेहता ने अपने संस्मरण में ऐसी ही एक मुलाकात का जिक्र किया है। मेहता के मुताबिक, ‘मैं पार्टी के दिल्ली ऑफिस में काम कर रहा था तभी नरेंद्र मोदी मेरे ऑफिस आए। वह कुछ कागज लाए थे जिनसे साबित होता था कि गुजरात के CM केशुभाई कुछ गलत कर रहे हैं।’

मोदी की ये कोशिशें रंग लाईं और पार्टी नेतृत्व ने केशुभाई को CM पद से हटाने का फैसला किया। अब सवाल था कि नया CM किसे बनाया जाए। इसमें मोदी के RSS, अटल और आडवाणी से रिश्ते काम आए।

अटल बोले- पंजाबी खाना खाकर मोटे हो गए, दिल्ली छोड़कर गुजरात जाइए
1995 में गुजरात छोड़ने के 6 साल बाद 2001 में नरेंद्र मोदी की गुजरात वापसी हुई। केशुभाई पटेल को हटाकर उन्हें CM बनाया गया। इसका भी किस्सा इंट्रेस्टिंग है।

एक इंटरव्यू में नरेंद्र मोदी ने बताया, ‘मुझे PM वाजपेयी ने बुलाया। उन्होंने मुझसे कहा कि पंजाबी खाना खा-खाकर आप मोटे हो गए हैं। आपको वजन कम करना चाहिए। यहां से जाइए, दिल्ली छोड़ दीजिए। मैंने पूछा कि कहां जाऊं? उन्होंने कहा- गुजरात जाइए, वहां आपको काम करना है। मुझे ये अंदाजा नहीं था कि अटल जी मुझे मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं।’

अक्टूबर 2001 में मोदी ने पहली बार गुजरात CM पद के लिए शपथ ली थी।

मोदी को मुख्यमंत्री बने सालभर भी नहीं हुआ था कि 2002 में गुजरात में दंगे हो गए। इसमें करीब एक हजार लोगों की जान गई। दंगों के करीब 1 साल बाद विधानसभा चुनाव होने थे, लेकिन 3 महीने पहले ही करा लिए गए। इसमें मोदी की अगुआई में BJP ने कुल 182 में से रिकॉर्ड 127 सीटें जीत लीं। मोदी दूसरी बार CM बने। इसके बाद 2007 में तीसरी बार और 2012 में चौथी बार गुजरात के CM बने।

नरेंद्र मोदी ने खुद को गुजरात से बाहर भी प्रोजेक्ट करना शुरू किया
बतौर CM अपने आखिरी कार्यकाल में मोदी ने पूरे गुजरात में सद्भावना यात्रा निकाली थी। उनके महत्वाकांक्षी इरादे पहली बार इस रैली के जरिए ही सामने आए। मोदी ने गुजरात में व्यापार को बढ़ावा देकर ‘गुजरात मॉडल’ को चर्चा में ला दिया था। मार्च 2012 में टाइम मैगजीन के कवर पेज पर ‘मोदी मीन्स बिजनेस’ शीर्षक वाली कवर स्टोरी छपी।

2009 से 2012 तक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे हरीश खरे अपनी किताब ‘हाउ मोदी वन इट’ में लिखते हैं, ‘मोदी ने BJP के बाहर के अपने सभी सहयोगियों को आक्रामक रूप से सक्रिय करना शुरू कर दिया था। उन्होंने सबसे पहले कॉर्पोरेट जगत के लोगों को अपने पक्ष में किया। इसके बाद बाबा रामदेव और श्री श्री रविशंकर जैसी धार्मिक हस्तियों को अपने फेवर में कर लिया।’

श्री श्री रविशंकर के साथ नरेंद्र मोदी की तस्वीर

हरीश खरे लिखते हैं, ‘ये वो वक्त था जब मोदी ने गुजरात का इस्तेमाल केंद्र की कांग्रेस सरकार पर हमले के लिए करना शुरू कर दिया था।’ नरेंद्र मोदी मनमोहन सरकार के भ्रष्टाचार, महंगाई, डॉलर के मुकाबले रुपए की गिरती कीमत पर बयान दे रहे थे।

आडवाणी की नाराजगी के बावजूद 2014 में मोदी को बड़ी जिम्मेदारी
22 जनवरी 2013 को महाराष्ट्र में पूर्ति ग्रुप ऑफ कंपनीज पर इनकम टैक्स की रेड पड़ी। इसमें नितिन गडकरी का नाम भी आया। उन्हें BJP अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा। नए अध्यक्ष बने राजनाथ सिंह।

हरीश खरे के मुताबिक, ‘मोदी के लिए गडकरी की जगह राजनाथ का अध्यक्ष बनना फायदेमंद रहा, क्योंकि गडकरी की तुलना में उनके लिए राजनाथ को मैनेज करना आसान था।’

इतिहासकार और लेखक गौतम चिंतामणि अपनी किताब ‘राजनीति: ए बायोग्राफी ऑफ राजनाथ सिंह’ में लिखते हैं, ‘अध्यक्ष बनने के कुछ हफ्ते बाद ही राजनाथ सिंह ये समझ चुके थे कि पार्टी कैडर के बीच मोदी को BJP का नेतृत्व सौंपने का विचार मजबूत हो रहा है। हालांकि, उन्हें पार्टी के अंदर मोदी के विरोध का भी अंदाजा था।’

BJP की एक बड़ी लॉबी नरेंद्र मोदी को चुनावी चेहरा बनाने के लिए लामबंद हो चुकी थी। उधर आडवाणी खेमे को इस बात का अंदाजा था कि जून 2013 में होने वाली गोवा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में मोदी को लेकर कोई बड़ा ऐलान हो सकता है। इसके चलते आडवाणी समेत कई नेताओं ने इस बैठक में शामिल होने से इनकार कर दिया।

गौतम चिंतामणि के मुताबिक, ‘इसी बीच BJP गठबंधन की बरसों पुरानी सहयोगी पार्टी JDU के मुखिया नीतीश कुमार ने राजनाथ को फोन किया और मोदी के नाम पर अपनी असहमति जताई। राजनाथ सिंह का कहना था कि BJP का संसदीय बोर्ड मोदी को कुछ अतिरिक्त जिम्मेदारियां सौंपेगा। नीतीश इस पर भी नहीं माने।’

गौतम चिंतामणि लिखते हैं कि अगर बैठक में मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने के निर्णय पर आम सहमति न बनती और बैठक बेनतीजा रहती तो गलत मैसेज जाता। इसलिए राजनाथ ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया। बैठक के लिए मोदी जब गोवा पहुंचे तो उनका जोरदार स्वागत हुआ। तब के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर ने मोदी का समर्थन किया। आखिरकार 9 जून को राजनाथ ने चुनाव समिति के अध्यक्ष के पद के लिए मोदी के नाम की घोषणा कर दी।

आडवाणी का भावुक इस्तीफा, नीतीश ने गठबंधन तोड़ने की धमकी दी
इस घोषणा के बाद नीतीश ने राजनाथ को फोन करके कहा कि उन्होंने गठबंधन से अलग होने का निर्णय ले लिया है। राजनाथ का कहना था कि चुनाव समिति की जिम्मेदारी देने के अलावा अभी कोई बड़ी घोषणा नहीं हुई है, लेकिन नीतीश कुमार के लिए उसी पल सब साफ हो गया था जब राजनाथ ने मोदी को ‘नेता’ कहा था।

इधर आडवाणी अपने ब्लॉग में शरशैया पर लेटे भीष्म पितामह का जिक्र कर रहे थे। अगले ही दिन यानी 10 जून को आडवाणी ने पार्टी के सभी पदों से अपने इस्तीफे का ऐलान कर दिया।

उन्होंने राजनाथ सिंह को पत्र में लिखा, ‘पिछले कुछ समय से मैं अपने आप को पार्टी में सहज नहीं पा रहा हूं। मुझे नहीं लगता कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दीन दयाल उपाध्याय और अटल बिहार वाजपेयी ने जिस पार्टी को बनाया, खड़ा किया, ये वही पार्टी है। BJP दिशा भटक चुकी है। इस पत्र को मेरा इस्तीफा समझा जाए।’

आडवाणी का राजनाथ को भेजा वह पत्र जिसमें उन्होंने अपने इस्तीफे की बात कही थी।

इसके बाद BJP के बड़े नेताओं की आडवाणी के घर तक दौड़ शुरू हो गई। राजनाथ ने कहा, ‘मैं ये इस्तीफा स्वीकार नहीं कर सकता। मोदी को चुनाव प्रचार समिति का चेयरमैन बनाने का फैसला सबकी सहमति से लिया गया था। ये बदला नहीं जाएगा।’

आडवाणी के घर पहुंचीं सुषमा स्वराज ने कहा, ‘मैं उनके इस्तीफे से हैरान हूं।’ हालांकि ये भी भरोसा जताया कि वे आडवाणी को मना लेंगी।

आडवाणी के करीबी माने जाने वाले वेंकैया नायडू, पार्टी के तब के महासचिव अनंत कुमार और प्रवक्ता मुख्तार अब्बास नकवी भी आडवाणी के घर पहुंचे।

आडवाणी को मनाने की कवायद सफल हुई। 11 जून को संघ प्रमुख मोहन भागवत से फोन पर बात करने के बाद आडवाणी ने इस्तीफा वापस ले लिया।

BJP की इस रस्साकशी पर कांग्रेस कटाक्ष कर रही थी। कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री हरीश रावत ने कहा, ‘रक्तबीज से जब दूसरा रक्तबीज पैदा होता है तो वह ज्यादा ताकतवर होता है। सब BJP नेता समझ रहे हैं कि अगर ये पहलवान (मोदी) दिल्ली आ गया तो हमारा क्या होगा।’

RSS की जरूरत ने मोदी के लिए दिल्ली का रास्ता खोला
दिल्ली की सियासत में पैर जमाने में मोदी को संघ का सहयोग मिला। इसकी अपनी वजहें थीं।

वरिष्ठ पत्रकार पीआर रमेश के मुताबिक, 15 मार्च 2013 को जयपुर में RSS की बैठक में ही यह तय हो गया था कि 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी BJP के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे और उत्तर प्रदेश के एक निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ेंगे।

31 मार्च 2014 को ओपेन मैगजीन में रमेश ने इसके बारे में विस्तार से लिखा है। रमेश के मुताबिक, ‘BJP में आंतरिक कलह थी, संघ को लगा कि उसका दखल जरूरी है। कांग्रेस की हार सुनिश्चित करने के लिए नरेंद्र मोदी जैसा ऊर्जावान व्यक्तित्व संघ परिवार की पहली पसंद था। बावजूद इसके कि मोदी के संघ से अच्छे संबंध नहीं थे।’

हरीश खरे कहते हैं, ‘मोदी के लिए संघ का ये प्रेम अचानक नहीं उपजा था। 2010 से ही इसकी पृष्ठभूमि तैयार हो चुकी थी। संघ को चिंता थी कि UPA सरकार संघ के खिलाफ कार्रवाई करना चाहती थी। जुलाई 2010 में ये खबरें छपने लगी थीं कि जांच एजेंसियां कई मुस्लिम पूजा स्थलों पर हुए आतंकी हमलों में हिंदुओं के शामिल होने के सबूत जुटा रही हैं। 25 अगस्त 2010 को केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम ने पहली बार भगवा आतंकवाद शब्द का इस्तेमाल किया था।’

हरीश खरे के मुताबिक, ‘जब संघ ‘भगवा आतंक’ को लेकर असहज स्थिति में था, उसी वक्त मोदी, कथित इशरत जहां एनकाउंटर के मामले में असहजता का सामना कर रहे थे। ऐसा लग रहा था कि जांच एजेंसियां पहले अमित शाह और फिर खुद मोदी पर शिकंजा कसने जा रही थीं। शाह, मोदी के सबसे करीबी और वफादार साथी थे। उन्हें राज्य में गृहमंत्री का पद छोड़ना पड़ा था। 25 जुलाई 2010 को शाह गिरफ्तार हुए और कुछ दिन जेल में भी रहना पड़ा।’

इस सबके बीच मोदी की अगुआई में BJP ने 2012 का गुजरात विधानसभा का चुनाव लड़ा। BJP 182 में से 115 सीटों पर जीती। इस चुनाव से साफ हो गया कि कांग्रेस का सामना मोदी ही कर सकते हैं।

हरीश लिखते हैं, ‘2014 के चुनाव में संघ का सीधा दखल दिखा। संघ ने न सिर्फ मोदी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनने का रास्ता साफ किया, बल्कि कार्यकर्ताओं को भी निर्देश दिया गया कि वह BJP के लिए पुरजोर मेहनत करें। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अपने विजया दशमी के भाषण में सौ प्रतिशत वोटिंग की अपील की। इमरजेंसी के बाद ये पहली बार था जब संघ युद्ध स्तर पर चुनाव अभियान में जुटा।’

गडकरी ने आडवाणी को फोन पर बताया- मोदी PM उम्मीदवार होंगे
करीब तीन महीने बाद 13 सितंबर 2013 को BJP संसदीय बोर्ड की बैठक हुई। वरिष्ठ पत्रकार पीआर रमेश के मुताबिक, दोपहर करीब 3 बजे बोर्ड की बैठक के लिए आडवाणी अपने आवास से निकलने ही वाले थे कि गडकरी का फोन आ गया। उन्होंने बताया कि बैठक में नरेंद्र मोदी को PM पद का उम्मीदवार बनाए जाने पर फैसला लेना है।

आडवाणी ने राजनाथ सिंह को एक पत्र में लिखा, ‘मैंने आपको पहले ही बताया था कि मैं परेशान हूं। अब बेहतर होगा कि मैं बैठक में शामिल न होऊं।’

लालकृष्ण आडवाणी को छोड़कर, 12 सदस्यीय बोर्ड का हर सदस्य इस बैठक में शामिल हुआ। इसमें नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया गया।

गौतम चिंतामणि के मुताबिक, ‘संघ और BJP के नेता चाहते थे कि मोदी के नाम की घोषणा के वक्त आडवाणी बैठक में मौजूद रहें, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। आडवाणी का कहना था कि मोदी को उम्मीदवार बनाने से कांग्रेस के खिलाफ महंगाई और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे ठंडे बस्ते में चले जाएंगे और गुजरात के विवादास्पद CM का मुद्दा उछाला जाएगा।’

आडवाणी की ‘शिष्या’ सुषमा स्वराज ने भी अपनी आपत्तियां बोर्ड के सामने रखी थीं, लेकिन अरुण जेटली और वेंकैया नायडू जैसे नेताओं ने उन्हें समझा लिया। बाद में हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में सुषमा एकजुटता दिखाते हुए मोदी के बगल में बैठीं।

मध्य प्रदेश के CM शिवराज सिंह चौहान और छत्तीसगढ़ में उनके समकक्ष रमन सिंह ने ट्वीट करके मोदी की उम्मीदवारी का समर्थन किया। JDU ने मोदी के नाम की घोषणा के बाद गठबंधन तोड़ दिया था। वहीं दूसरी सहयोगी पार्टी शिवसेना और अकाली दल ने इस फैसले का स्वागत किया।

मोदी के लिए वाराणसी सीट नहीं छोड़ना चाहते थे मुरली मनोहर जोशी
27 फरवरी 2014 को BJP ने लोकसभा सीट के उम्मीदवारों की घोषणा शुरू कर दी। BJP नेताओं का कहना था कि मोदी दो सीटों से चुनाव लड़ेंगे- वाराणसी और वडोदरा। वाराणसी के मौजूदा सांसद मुरली मनोहर जोशी को इस बारे में RSS के भैयाजी जोशी ने पहले ही बता दिया था, लेकिन जोशी अड़ गए कि उन्हें पार्टी ने व्यक्तिगत रूप से इस बारे में नहीं बताया है।

गौतम चिंतामणि कहते हैं कि जोशी ड्रामा क्वीन की भूमिका में थे। BJP के नेता उन्हें मनाते रहे, लेकिन वे अड़े रहे। आखिर में 13 मार्च 2014 को UP में BJP के प्रभारी अमित शाह ने जोशी से साफ शब्दों में कहा कि उन्हें कानपुर से चुनाव लड़ना होगा। 15 मार्च को उम्मीदवारों की अगली सूची आई। इसमें वाराणसी के कॉलम के आगे लिखा था- नरेंद्र मोदी

2014 लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी की अगुआई में BJP ने 282 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत हासिल किया।

26 मई 2014 की शाम 6 बजे राष्ट्रपति भवन कंपाउंड में नरेंद्र मोदी ने भारत के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली।

आखिर में 3 किस्से, जो मोदी को मोदी बनाते हैं…

1. गुजरात दंगों के बाद सवाल उठे, मोदी को लोकप्रियता और क्लीन-चिट दोनों मिली
7 अक्टूबर 2001 को नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने। 24 फरवरी 2002 को राजकोट-2 विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और करीब 14 हजार वोट से जीते। 27 फरवरी 2002 को गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के S-6 कोच में आग लगी और 59 कारसेवकों की मौत हो गई। इसके बाद गुजरात के कई इलाकों में भीषण दंगा फैल गया।

गुजरात दंगे की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 5 सदस्यों की एक स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम बनाई थी, जिसे दंगों से जुड़े 9 मामलों की जांच करनी थी। सुप्रीम कोर्ट ने SIT को गुजरात दंगों में नरेंद्र मोदी की भूमिका की जांच की अतिरिक्त जिम्मेदारी सौंपी। ये आदेश पूर्व कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी की शिकायत पर दिया गया था।

SIT ने मोदी को 11 मार्च 2010 को एक नोटिस जारी किया, जिसमें उनको आरोपों पर जवाब देने के लिए बुलाया गया था। जांच के बाद फरवरी 2011 में SIT ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी। इस रिपोर्ट में मोदी को क्लीन चिट दी गई। जकिया जाफरी ने मोदी को क्लीन चिट देने के खिलाफ पिटीशन दायर की। 27 दिसंबर 2013 को कोर्ट ने जकिया की याचिका खारिज कर दी और SIT ने मोदी को क्लीन चिट देते हुए अपनी क्लोजर रिपोर्ट लगा दी।

दूसरी तरफ दंगों के बाद दिसंबर 2002 में गुजरात विधानसभा चुनाव हुए और इस बार मोदी राजकोट-2 के बदले मणिनगर विधानसभा सीट से चुनाव लड़े। इस बार जीत का अंतर 75 हजार से ज्यादा था। BJP भी प्रचंड बहुमत से जीती। इसके बाद लगातार मोदी मणिनगर सीट से करीब 1 लाख वोट से जीतते रहे।

2. जब PM अटल ने राजधर्म की याद दिलाई, लेकिन मोदी ने बीच में टोक दिया
2002 के गुजरात दंगों के बाद प्रधानमंत्री अटल बिहारी गुजरात दौरे पर गए। पत्रकारों ने अटल से सवाल किया तो उन्होंने अपनी चिरपरिचित शैली में कहा, ‘मुख्यमंत्री के लिए मेरा सिर्फ एक संदेश है कि वह राजधर्म का पालन करें… राजधर्म… ये शब्द काफी सार्थक है। मैं उसी का पालन कर रहा हूं। पालन करने का प्रयास कर रहा हूं। राजा के लिए, शासक के लिए प्रजा-प्रजा में भेद नहीं हो सकता। न जन्म के आधार पर, न जाति के आधार पर, न संप्रदाय के आधार पर।’

तब उनके बगल में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भी बैठे थे। बीच में ही नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘हम भी वही कर रहे हैं साहेब।’ इसके बाद वाजपेयी जी ने आगे कहा, ‘मुझे विश्वास है कि नरेंद्र भाई यही कर रहे हैं।’

उस प्रेस कॉन्फ्रेंस की तस्वीर, जिसमें अटल ने ‘राजधर्म’ की बात कही थी।

एक और किस्सा 12 अप्रैल 2002 का है। गोवा में BJP की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक होनी थी। आडवाणी एक इंटरव्यू में बताते हैं कि गोवा के सफर में वे प्रधानमंत्री अटल के साथ थे। उनके अलावा विदेश मंत्री जसवंत सिंह और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अरुण शौरी भी जहाज में बैठे थे।

गुजरात की चर्चा हुई तो जसवंत सिंह ने अटल से पूछा कि वह क्या चाहते हैं। अटल ने कहा, कम से कम इस्तीफे का ऑफर तो करते। (मोदी को कम से कम इस्तीफे की पेशकश करनी चाहिए थी)।

गोवा पहुंचने के बाद आडवाणी ने मोदी से कहा कि उन्हें इस्तीफे की पेशकश करनी चाहिए। बैठक में मोदी ने गोधरा और बाद के घटनाक्रम के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने अपने भाषण के आखिर में कहा, ‘फिर भी सरकार के मुखिया के बतौर मैं अपने राज्य में जो कुछ हुआ है उसकी जिम्मेदारी लेता हूं। मैं अपना इस्तीफा देने के लिए तैयार हूं।’

मोदी के इतना कहते ही, बैठक का हॉल ‘इस्तीफा मत दो- इस्तीफा मत दो’ के शोर से गूंज उठा। वाजपेयी हालात समझ गए और बोले इस पर बाद में फैसला लेंगे।

3. मोदी के आने के बाद BJP का अभूतपूर्व विस्तार
मोदी के युग में BJP ने संख्याबल, राज्यों में सरकार और वोट शेयर के मामले में अभूतपूर्व बढ़ोतरी हासिल की है।

मोदी युग से पहले BJP ने 1999 के लोकसभा चुनाव में अधिकतम 182 सीटें जीती थीं। 2014 में नरेंद्र मोदी के कमान संभालने के बाद 282 सीटों के साथ पहली बार अकेले पूर्ण बहुमत हासिल किया। 2019 के लोकसभा चुनाव में सीटें बढ़कर 303 हो गईं।

2014 लोकसभा चुनाव के बाद तमाम राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी BJP ने रिकॉर्ड जीत दर्ज की। 2018 तक 21 राज्यों की सत्ता में BJP आ चुकी थी।

BJP ने 2014 के बाद अपना कैडर भी बढ़ाया। BJP के मुताबिक 2015 में पार्टी के 11 करोड़ रजिस्टर्ड सदस्य थे। 2019 में जब BJP का सदस्यता अभियान खत्म हुआ तो ये तादाद 7 करोड़ बढ़कर कुल 18 करोड़ हो गई थी। कार्यकर्ताओं के लिहाज से BJP खुद को दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करती है।

 

 


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