
UNITED NEWS OF ASIA. खैरागढ़। छत्तीसगढ़ में जलवायु परिवर्तन और मानव हस्तक्षेप से जैव विविधता पर गंभीर असर पड़ रहा है। खासकर, राज्य में कभी बड़ी संख्या में पाए जाने वाले सारस पक्षी अब विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुके हैं। प्रदेश में 2005 में जहां करीब 20 सारस पक्षी थे, वहीं अब सिर्फ एक जोड़ा ही जीवित बचा है।
सिर्फ सरगुजा में बचा आखिरी जोड़ा
एक समय था जब छत्तीसगढ़ के तालाबों और जलस्रोतों के आसपास सारस पक्षी आमतौर पर देखे जाते थे, लेकिन आज पूरा प्रदेश सिर्फ एक जोड़े तक सीमित रह गया है। यह जोड़ा सरगुजा के लखनपुर ब्लॉक में देखा गया है। पर्यावरणविदों का कहना है कि सारस पक्षी आर्द्रभूमि (वेटलैंड) के स्वास्थ्य का संकेतक होते हैं, और इनकी घटती संख्या पर्यावरण असंतुलन की ओर इशारा करती है।
20 साल में 20 से घटकर सिर्फ 2
- 2005: प्रदेश में 8 से 10 जोड़े (करीब 20 सारस) थे।
- 2015: यह संख्या घटकर 4 जोड़े (8 सारस) रह गई।
- 2024: अब सिर्फ 1 जोड़ा बचा है।
प्राचीन काल से सारस का महत्व
सारस सिर्फ एक पक्षी नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और साहित्य का अहम हिस्सा है। महर्षि वाल्मीकि ने रामायण की रचना सारस पक्षी से जुड़ी एक करुणा भरी घटना से प्रेरित होकर की थी। यह दर्शाता है कि यह पक्षी सदियों से हमारे समाज और लोककथाओं में विशेष स्थान रखता है।
सारस संरक्षण पर हुआ शोध
पर्यावरण विशेषज्ञों प्रतीक ठाकुर, ए.एम.के. भरोस, डॉ. हिमांशु गुप्ता और रवि नायडू ने सारस पक्षियों की स्थिति पर गहन अध्ययन किया। शोध में सामने आया कि लखनपुर के जमगला और तराजू वॉटर टैंक के आसपास यह आखिरी जोड़ा देखा गया। 2022 में इनके दो चूजे हुए थे, लेकिन दिसंबर 2023 में एक को जंगली जानवर ने मार दिया, जबकि दूसरा भी लापता हो गया।
सारस के अस्तित्व पर बढ़ते खतरे
1. तालाबों में मछली पकड़ने की गतिविधियां: जालों से सारस के घोंसलों को खतरा।
2. कीटनाशकों का बढ़ता इस्तेमाल: जहरीले रसायन इनके भोजन को प्रभावित कर सकते हैं।
3. आवारा कुत्तों का हमला: चूजों के लिए सबसे बड़ा खतरा।
4. अवैध रेत खनन: जलस्रोतों और प्राकृतिक आवासों का नष्ट होना।
बिलासपुर और सरगुजा में मिला दुर्लभ शिकारी पक्षी
हाल ही में सीपत डेम (बिलासपुर) और सरगुजा के तराजू गांव में पहली बार पूर्वी मार्श हैरियर (Eastern Marsh Harrier) नामक शिकारी पक्षी देखा गया। यह संकेत है कि अगर छत्तीसगढ़ के जलस्रोतों का संरक्षण सही तरीके से किया जाए, तो अन्य दुर्लभ पक्षी प्रजातियां भी लौट सकती हैं।
क्या सरकार और समाज बचा पाएंगे सारस?
सारस की घटती संख्या हमारी पर्यावरण सुरक्षा और जैव विविधता को बचाने की जिम्मेदारी पर सवाल खड़े कर रही है। प्रशासन और पर्यावरणविद सारस संरक्षण के लिए जागरूकता अभियान चला रहे हैं, लेकिन जब तक आम जनता इसमें सक्रिय भागीदारी नहीं करेगी, तब तक इनकी संख्या बढ़ाने की उम्मीद करना मुश्किल होगा।
अब सवाल यह है – क्या हम छत्तीसगढ़ में सारस पक्षियों को बचाने के लिए कोई ठोस कदम उठा पाएंगे, या फिर यह ऐतिहासिक पक्षी सिर्फ किताबों और कहानियों तक सिमट कर रह जाएगा?













