
पटना: बिहार के शिक्षा मंत्री प्रो. चंद्रशेखर (प्रो. चंद्रशेखर) ने हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथ रामचरितमानस (रामचरितमानस) को लेकर बयानबाजी की है। शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर बुधवार को पटना के नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी (नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी) के दीक्षांत समारोह में पहुंचे थे। इस दौरान छात्रों को संदेश देते हुए उन्होंने कहा कि रामचरितमानस, मनुस्मृति और गोलवलकर की किताब समाज को अनुशासन और द्वेष फैलाने वाला बताया। वहीं, शिक्षा मंत्री प्रो. चंद्रशेखर ने रामचरितमानस के कई चौपाई के अर्थों में रामचरितमानस को समाज से जुड़े ग्रंथ को बताया।
ये सभी समाज में नफरत फैलाने का काम करते हैं- शिक्षा मंत्री
प्रो. चंद्रशेखर छात्रों को रामचरितमानस के इस ‘अधम जाति में विद्या पाए, भयहु यथा अहि दूध पिलाए’ चौपाई को सुनाया। इसका अर्थ बताते हुए उन्होंने कहा कि अधम का मतलब नीचा होता है। उस अधेड़ उम्र को शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार नहीं था। इस चौपाई का अर्थ है जिस प्रकार से सांप के दूध पीने से दूध विषैला हो जाता है उसी प्रकार शूद्रों (नीच जाति) को शिक्षा देने से वे और खतरनाक हो जाते हैं। शिक्षा मंत्री ने आगे कहा कि इसका बाबा साहब अंबेडकर ने बताया था कि यह जो ग्रंथ समाज में द्वेष फैलाने वाला है। एक युग में मनुस्मृति दूसरे युग में रामचरितमानस और तीसरे युग में गोलवलकर की किताब ‘बंच ऑफ थॉट्स’ ये सब समाज में द्वेष फैलाने का काम करते हैं।
‘मनुस्मृति ग्रंथों को जलाया गया’
शिक्षा मंत्री ने कहा कि द्वेष हमें महान नहीं बनाएंगे। जब भी महान बने तो दोस्ती निभाएं। मनुस्मृति ग्रंथ को प्रकाशित किया गया था, जिसमें एक तबका के लोगों के खिलाफ गैलियां दी गई थीं। इसी दौरान उन्होंने रामचरितमानस का दूसरा चौपाई ‘पूजहि विप्र सकल गुण हीना, शुद्र न पूजहु वेद प्रवीणा’ सुनाया। इस चौपाई का अर्थ बयान देते हुए उन्होंने कहा कि इस चौपाई के अनुसार ब्राह्मण चाहे कितना भी ज्ञान गुण से अनुपयोगी हो, उसकी पूजा करनी ही चाहिए, और शूद्र चाहे कितना भी गुणी ज्ञानी हो वह सम्माननीय हो सकता है, लेकिन कभी पूजनीय नहीं हो सकता है . बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर चाहे जो भी संविधान निर्माता बने हों लेकिन इस ग्रंथ के अनुसार वे पूजनीय नहीं हो सकते हैं। ऐसे ग्रंथ समाज में नफरत फैला सकते हैं।
जिससे संगठन का काम हो सकता है- प्रो. चंद्रशेखर
प्रो. चंद्रशेखर ने वहां मौजूद छात्रों को रामचरितमानस के इस ‘जे बरनाधम ऑयली कुम्हारा। स्वपच किरात कोल कलवार’ चौपाई को सुनाया। इसका अर्थ यह भी है कि उन्होंने कहा कि तेली, कुम्हार, चाण्डाल, भील, कोल और कलवार यह सब नीची जाति के हैं। अब जब हमारा ग्रंथ इस तरह की बातें साझा करता है तो साझा करने का काम हो सकता है लेकिन प्रेम बनाने का काम नहीं हो सकता है।
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