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राज्यपाल के समान नहीं दिल्ली के उप-राज्यपाल, वर्ष 2002 मामले में प्रमाण से छूट नहीं: पाटकर

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सक्सेना की अर्जी पर मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट पीसी स्वामी की अदालत में अपने जवाब में नर्मदा बचाओ आंदोलन के नेता पाटकर ने आगे कहा कि संविधान के लेखा-361 में कुछ शीर्ष अधिकारियों को छूट उप-राज्यपाल पर लागू नहीं हुई। इस मामले में अगली सुनवाई 15 मार्च को होगी।

सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने बृहस्पतिवार को गुजरात की एक अदालत में दिल्ली के उप-राज्यपाल वी के सक्सेना की उस अर्जी का विरोध किया जिसमें उन्होंने वर्ष 2002 में नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता पर प्रतिक्रिया के मामले में शिकायत दर्ज कराने का अनुरोध किया था। है। उप-राज्यपाल ने अपने अर्जी में संविधान से मिली सुरक्षा का उल्लेख किया है।

सक्सेना की अर्जी पर मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट पीसी स्वामी की अदालत में अपने जवाब में नर्मदा बचाओ आंदोलन के नेता पाटकर ने आगे कहा कि संविधान के लेखा-361 में कुछ शीर्ष अधिकारियों को छूट उप-राज्यपाल पर लागू नहीं हुई। इस मामले में अगली सुनवाई 15 मार्च को होगी। सक्सेना को मई 2022 में दिल्ली का उप-राज्यपाल बनाया गया। नर्मदा बांध योजना का विरोध करने को लेकर पाटकर पर कथित तौर पर हमला किया गया था।

पिछले सप्ताह अर्जी में सक्सेना ने अनुरोध किया था कि उनके खिलाफ मामले की सुनवाई उनके उप-राज्यपाल पद पर बने रहने तक निलंबित कर दी जाए। इसके लिए उन्होंने संविधान के लेखों -361 का उल्लेख किया है। पाटकर ने अपने जवाब में सक्सेना की अर्जी को पूरी तरह से ‘गलत’ दलील देते हुए कहा कि यह याचिका केवल प्रक्रिया में देरी के लिए दाखिल हुई है।

उन्होंने कहा कि संविधान में प्रमाण पत्र से मिली छूट उप-राज्यपाल के लिए नहीं है क्योंकि दिल्ली के उप-राज्यपाल का पद किसी राज्य के राज्यपाल के अधिकार में नहीं है। पाटकर ने कहा, ” दिल्ली के उप-राज्यपाल… संविधान के लेखा-जोखा 153 के तहत राज्यपाल नहीं हैं, बल्कि केवल केंद्र शासित प्रदेश के ‘प्रशासक’ हैं जिन्हें राष्ट्रपति द्वारा उनकी ओर से कार्य करने के लिए नियुक्त किया गया है।

अस्वीकरण:प्रभासाक्षी ने इस खबर को निराशा नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआइ-भाषा की भाषा से प्रकाशित की गई है।



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