
हमारे देश की वित्त मंत्री एक महिला हैं। इसके बावजूद भारतीय साइबर में वित्तीय साक्षरता दर केवल 24 प्रतिशत है। वित्तीय मामलों के बारे में ये नासमझी सिर्फ महिलाओं में ही नहीं पुरुषों में भी मौजूद है। केवल 27 प्रतिशत पुरुष ही आर्थिक मामलों की न्यूनतम समझ रखते हैं। जबकि भारत में पढ़ी-लिखी आबादी का पात्र 77 प्रतिशत के पार है। हालांकि यहां भी महिलाओं और पुरुषों के अनुपात में अंतर है। साक्षारता और वित्तीय साक्षरता के बीच मौजूद इस उत्सुकता को पाटने के उद्देश्य से नेहा नागर (Finance Influencer Neha Nagar) ने सोशल मीडिया के माध्यम से बनाया है।
वे ऐसी मनोरंजक रील और पोस्ट अपना अकाउंट अकाउंट पर पोस्ट करते हैं, जिससे लोग आसान भाषा में वित्तीय समझ विकसित कर पाते हैं। उनकी सामग्री कितनी जरूरी है इसका अंदाजा उनके मिलियन फेलोअर्स को देखकर ही लगाया जा सकता है। वीडियो शॉट्स के इस विशेष साक्षात्कार में नेहा नागरिक जुड़कर जानते हैं उनके इस मिलने के बारे में।
कभी नट्टू काका का आधार पैन से लिंक करवाना हो, तो कभी जुड़े हुए मोबाइल फोन को फोटोशॉप में रिपेयर करवाना, नेहा नागर बहुत ही मनोरंजक तरीके से अपने दर्शकों को उनके आर्थिक अधिकारों के बारे में जागरुक कर रहे हैं। कब और कैसे हुई इस यात्रा की शुरुआत आइए जानते हैं खुद के वित्त और डिजिटल सामग्री क्रिएटर नेहा नागर से।
टैक्स फर्म्स से सोशल मीडिया सामग्री तक
इस यात्रा की शुरुआत कैसे हुई इस बारे में विस्तार से बात करते हुए नेहा बताती हैं, “मैंने चार्टर्ड अकाउंटेंसी का कोर्स किया था, लेकिन फाइनल एजेज्माइजेशन क्लियर नहीं हो पाया। टैक्सेशन, मोटे तौर पर वित्तीय मामलों के बारे में मैं काफी कुछ पढ़ चुका था। पर यह सब काम नहीं आया, तो मैंने एमबीबीएस करने का फैसला किया। एमबीए करने के बाद मुझे जो शेयर मिला वह वेल्थ की स्थिति में था। जहां करोड़ों की वेल्थ की कमाई की जाती थी, पर ये सभी बड़े बिजनसे पर्सन थे।
वहां से मुझे पता चला कि अपना कोई व्यवसाय करना शुरू कर देगा। बिजनेस होगा तो ही वेल्डी होंगे। हालांकि सीए करते वक्त भी यही सोचा था कि नौकरी तो नहीं करती। वहां नौकरी करने के बाद यह सोच और मजबूत हो गई कि अब नौकरी का काम खुद का कुछ काम है।
अब खुद का क्या करें, यह सवाल जब मन में आया तो सोचा कि मैं वेल्थ टेक्सेशन से ज्यादा टेक्सेशन की समझ और अनुभव दुश्मन हूं। इस तरह मैंने अपनी टेक्सेशन कंपनी की शुरुआत की। वह 2019 का समय था, हम काफी कुछ इंटरनेट पर सीख चुके थे। मैंने तय किया कि पहले ही ऑनलाइन ही अपनी फर्में स्थापित कर लें, उसके बाद उसमें व्यय कर लें। इस तरह मेरी टेक्सेशन कंपनी की शुरुआत हुई।
फिर हुआ कोरोना का टच
हमने इसे शुरू ही किया था कि अगले ही साल कोरोना आ गया। ये हम सभी के लिए एक संघर्षपूर्ण दौर था। ग्राहक परेशान थे कि उन्हें हेल्प मिल कैसे मिलेगी। इस तरह मैं सोशल मीडिया पर आई। हालांकि उद्देश्य अपनी कंपनी का प्रचार करना था। पर मुझे ऐसा लगा कि सोशल मीडिया पर सब तरह की सामग्री है, पर किरणों से संबंधित कोई सामग्री नहीं है।
मैं जिस दृष्टिकोण से था, लगता था कि इतने लोगों को मैं सहज ही होगा। दो-तीन वीडियो ही दिए गए थे कि सामग्री वायरल हो गई, उसके बाद कमेंट सेक्शन में जो सवाल और ट्वीट आए, उससे मुझे पता चला कि हमारे समाज में वित्तीय साक्षरता का कितना बड़ा गैप है। उन्हें देखकर बहुत सारे लोगों को फायदा हुआ। उनकी रेटिंग्स ने मुझे और सामग्री बनाने के लिए प्रेरित किया।
सबसे बड़ा उपभोक्ता वर्ग स्त्रियां हैं, फिर भी नहीं ले रिकॉर्ड्स वित्तीय मानदंड
ये एक बहुत बड़ा सच है। सेविंग्स में महिलाओं का जवाब नहीं। नोटबंदी के समय भी सबसे ज्यादा पैसा महिलाओं के पास से निकल कर आया। बहुत कम पैसों में भी वे कुछ न कुछ बनाने का हुनर रखते हैं। वे अभी तक केवल बजट तक ही सीमित हैं। इसके अलावा जो निर्णय लिए जाते हैं वह पुरुषों द्वारा लिए जाते हैं। मैं खुद गांव से हूं, वहां मैंने देखा है कि संपत्ति, बैंक खाते, कई मामलों में उनके भाई, पिता या पति ही संभालते हैं।
लड़कियां यह सोचती हैं कि ज्यादातर यह मेरा काम नहीं है। यह तो भैया या पापा कर देंगे। घर में ऐसा माहौल नहीं है कि वे आर्थिक मामलों पर चर्चा में शामिल हों। उन्हें यह अटैचमेंट ही अटैचमेंट नहीं किया गया है कि यह उनका भी काम है। इस तरह लड़कियों का यकीन भी कमजोर हो गया और उन्हें लग गया कि वह इसे नहीं कर पाएंगी।
कुछ समय पहले राजस्थान में एक प्रदर्शन कार्यक्रम आयोजित किया गया था, जहाँ आसपास की सैकड़ों महिलाएँ आई थीं। पढ़े लिखे होने के बावजूद अधिकांश अरब लड़कियों की आर्थिक अल्पतम थी। मैं इसके लिए उन्हें भी ज़िम्मेदार ठहराऊंगा, क्योंकि YouTube पर मुफ़्त सब कुछ मौजूद है, वह भी आपकी अपनी भाषा में। आपको प्राथमिकता बस में आने की जरूरत है।
दूसरा कारण जो लड़कियां बताती हैं उनमें पैसे की कमी होती है। जबकि आज बहुत सारी महिलाएं नौकरीपेशा हैं। तीसरा कारण यह है कि महिलाओं के पास वित्तीय मामलों की निगरानी के लिए समय नहीं है। वक्त का आश्यू समझा जा सकता है, क्योंकि उन पर बहुत सारे जिम्मेदार लाद दिए गए हैं। इन सबके बीच वे अर्थ प्रबंधन को पिछली पंक्ति में डाल देते हैं। मगर पैसे का कारण मुझे समझ नहीं आता। सौ सौ पांच महीने रुपये तो कोई भी महिला बचा सकती है और इसे इनवेस्ट कर सकती है।
इन तीनों का ही समाधान है, कि आप ज्यादा से ज्यादा साक्षर हो सकते हैं। हो सकता है कि शुरुआत में आपको कुछ समझ न आए, पर कुछ समय के बाद आपको यह सब समझ दिखाई देगी और आप विश्वास के साथ अपने आश्चर्य को दोहराते रहेंगे।
पितृसत्तात्मक सामाजिक संयोजन की देन है वित्त प्रबंधन से खुद को अलग रखना
हां अभी तक यही है। मैं खुद ग्रामीण इलाकों से हूं। जहां महिलाओं की राय को बहुत ग्रेविटेशन से नहीं लिया गया। पूरे समाज में यह बहुत गहरा धंसा हुआ है। जब मैं वेल्थ के लिए क्लाइंट के पास जा रही थी, तो एक महिला और युवा होने के नाते वे लोग मुझे बहुत सहजता से लेते थे। ये भेदभाव बिजनेस क्लास में भी है। देखिए आप टॉप में दिख रही हैं सिर्फ 20 महिलाएं। वहां तक पहुंचने की यात्रा में कुछ महिलाएं तो रास्ते में ही निकल जाती हैं। कभी प्रेगनेंसी, कभी परिवार, शादी और फिर काम कल्चर ऐसा बना दिया गया है कि उन्हें सब छोड़ परिवार में ही बिजी हो गए हैं।
जब कोई पुरुष काम छोड़ता है तो उससे कई सवाल किए जाते हैं। लेकिन जब कोई महिला काम छोड़ती है, तो उससे सवाल किए जाने की मुलाकात उसे देखती है। घर और बाहर लगभग एक जैसा माहौल है। न तो वे ग्रेटर के पास गए और न ही उन्हें पता चला।
उन पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए उन्हें वित्तीय मामलों से दूर रखा गया। पर अब हमारे पास इंटरनेट है। अब आपको कोई इससे दूर नहीं रख सकता। अगर आप मेकअप और घबराहट के लिए सोशल मीडिया देख सकते हैं, तो जोखिम के लिए क्यों नहीं।
वित्तीय विश्लेषकों के बीच एक स्त्री होने का चुनाव
युवा और महिला होने के रिश्तेदारों ने सबसे पहले आपको ग्रेब्रिएट्स से नहीं लिया। मगर जब आप लगातार प्रयास करती हैं, तो आपको भी वैसे समझा ही जाता है जैसे अन्य पुरुष को।
वेल्थ में सिर्फ 20 महिलाएं हैं। जबकि जब इसके लिए पढ़ाई की शुरुआत होती है, तो वहां नामांकन का अनुपात 50:50 होता है। पहले अक्षर तक यह घटत 40 तक हो जाता है। जैसे करियर आगे बढ़ते जा रहे हैं। शीर्ष पर महिलाओं की संख्या बहुत कम है।
स्टार्ट अप इंडिया या स्टैंड अप इंडिया में महिलाओं को प्राथमिकता दी जा रही है। सरकार सबसे पहले कर रही है, निजी कारणों से अब भी वे पिछड़ रही हैं। वे सुविधाओं का भी लाभ नहीं लेते हैं, जो उन्हें मिल रहे हैं।
हर घटना में मैं एक या दो महिलाएं ही दिखती हैं। नई तकनीक में तो और भी कम। जूनियर लेवल पर बहुत सारी महिलाएं हैं। वरिष्ठ तक क्लोजर, फिर भी उतनी ही संख्या कम होने लगती है। इसमें बदलाव जरूरी है। अगर आप टॉप 10 हानिकारक इंफ्लुएंसर निकालेंगे, तो एक या दो महिलाएं ही दिखेंगी।
इसके लिए सरकार को सबसे पहले क्या चाहिए, जैसे अगर रजिस्ट्री में महिलाओं के लिए छूट नहीं होती है, तो सभी महिलाएं अपने घर की मालकिन नहीं होंगी।
इस गैप को कैसे कम किया जा सकता है?
यह वास्तव में शिक्षा का भी मामला है। वह ग्रेजुएशन तक खुद को अधिकृत करता है। बहुत सारी महिलाएं यह भी नहीं मानती हैं कि स्टैंप ड्यूटी में उन्हें छूट मिलती है। होम लोन पर भी महिलाओं को छूट मिलती है। वे अतिरिक्त डिडक्शन भी क्लेम कर सकते हैं। हो सकता है कि आपके घर के पुरुष आपके नाम का लाभ ले रहे हों, पर आपको यह पता ही नहीं है। यह जागरुकता का अंतर है। आपने बहुत मेहनत की है, पर यहां आए आपने सब कुछ छोड़ दिया।
शादी होती ही अपने आर्थिक आर्थिक अधिकार पूरी तरह से सरेंडर कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि अब यह उनका काम नहीं है। जबकि हर महिला के लिए यह जरूरी है कि वह अपना बैंक खाता अकाउंट अलग से संचालित करें। सेविंग्स अलग हैं। उन्होंने नहीं कि जिस परिवार में चल रहे हैं, उसी में हिस्सा दिया।
दूसरा अपने अधिकारों के बारे में जाग्रत हो और तीसरा आपको अपनी आर्थिक योजना बनानी चाहिए, भले ही आपके साथ पिता, पति और परिवार का सहयोग हो।

आपको एसआईपी में निवेश करना चाहिए। इसके लिए न ज्यादा हैवी नॉलेज की जरूरत है और न ही ज्यादा राशि की। आपको बस भारत के टॉप 10 प्राधिकरण में निवेश करना है। सौ या सौ पांच रुपये से भी आप निवेश की शुरुआत कर सकते हैं। इस उद्देश्य के साथ कि आपको आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना है। जब आप दस-बीस साल बाद देखेंगे, तो आपका पैसा दोगुना हो जाएगा। यहां आपको 14 प्रतिशत का फायदा होता है। जबकि FD में आपको सिर्फ 6 या 7 प्रतिशत का फायदा दिया जा रहा है।
जब आप आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होते हैं, तो आप अपने संबंधों को बहुत बेहतर तरीके से ही एंजाय कर पाएंगे और उन्हें निभाएंगे।
डर को कैसे हैंडल किया जाए?
कुछ बाज़ार के लिए भी तकाजे हैं कि महिलाएं पैसो के मामले में जोखिम लेने से डरती हैं। बहुत सारे फ्रॉड और एक विज्ञापन में तेजी से बोली गई एक पंक्ति, “म्युचुअल फंड बाजार जोखिम के लिए असंभाव्य”, ये बहुत डराने वाला वाक्य है।
नेहा कहते हैं, “हालांकि जोखिम हर जगह है। आपका बैंक खाता भी इससे बचा नहीं है। आप शायद नहीं जानते कि जब कोई बैंक डूबता है, तो आपको केवल 5 लाख रुपये ही मिलते हैं। एफडी में भी जोखिम है। इस जोखिम की जरूरत नहीं है, इस जोखिम को समझने की जरूरत नहीं है। आपको समझ आ रहा है कि लार्ज टर्म में चार्ट हमेशा ऊपर जा रहा है। अपने दस्तावेज़ों को अच्छी तरह पढ़ें, बाज़ार को समझें और निवेश करें।”
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लोग पहले फेज में ही ज्यादातर उलझ कर रह जाते हैं। पैसा आया और तुरंत खर्चा। इस पर लगाम लगाने की जरूरत है, कि आपकी जरूरत क्या है और आप गैर-जरूर चीजों में भौतिक खर्च कर रहे हैं। अपने पैसे को सही तरीके से संभालने के लिए सबसे पहले आप जानिए, दूसरा बजट। बजट बनाने के लिए 50-30-20 का फॉर्मूला तैयार किया जाता है। जितना आप कमा रहे हैं, उसका पचास प्रतिशत खर्च, तीस प्रतिशत अपनी ख्वाहिशों पर और 20 सेविंग में डालिए।
तीसरे चरण में आप अपना लक्ष्य समझेंगे और उन्हें योजना बनानी होगी। आप कितने साल बाद घर खरीद रहे हैं, कार खरीद रहे हैं या आप बच्चों की पढ़ाई के लिए विंग कर रहे हैं, उन्हें योजना बनाएं। चौथा, बाज़ार को थोड़ा बहुत समझने की ज़रूरत नहीं है। थोड़ी-बहुत समझ से भी आप बेहतर सेविंग कर पाएंगे। और पाँचवाँ वित्तीय निर्णय स्वयं प्रेरित हुआ।
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कई लोग बंद होते हैं, कंट्रियल करने की कोशिश की जाती है, पर अब हमें खुद अपना चार्ज लेते हैं। खुद को जगाना होगा। इस बार कम से कम यह प्रण लें कि आप खुद को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाएं।
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(नेहा नगर को हिट प्रमाणों शी स्लेज सोशल मीडिया स्टार विद कॉज श्रेणी में नामित किया गया है। उन्हें वोट दें और उनके जैसे और मिलने वाले यात्रियों के बारे में जानने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें – शी स्लेज एस.आई.एस)













